अब तो माँ बन जाओ ( भाग 2)- रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi :

“ कृति अब तुम्हें क्या बताऊँ…. ना वो हादसा होता ना मैं अपने माता-पिता को खोता ना बड़ी माँ मुझसे उखड़ी उखड़ी रहती….. दोनों दीदी बड़ी माँ के बेटियाँ है……. याद है मुझे घर में सब बोल रहे थे हमारा एक और भाई या बहन आने वाला…. हम तीनों बच्चे स्कूल गए हुए थे…. मम्मी पापा डॉक्टर के पास शहर गए हुए थे….

उधर ही एक ट्रक ने ज़ोरदार टक्कर मार दी और दोनों वही….. (कह नकुल थोड़ा उदास हो गया….) उसके बाद बड़े पापा ने ही मुझे सँभाला…. सब बड़ी माँ को बोलते दो दो बेटियाँ है एक बेटा कर लो… पर बड़े पापा कहते नकुल है ना हमारा बेटा….. बड़ी माँ तब कहा करती थी…. बहुत जताते हो ना मेरा बेटा .. मेरा बेटा है…. अरे एक दिन ये भी हिस्सा लेकर चलता बनेगा…. आजकल अपने माता-पिता को तो लोग साथ नहीं रखते ये हमें क्या अपना मानेगा….. बस मुझे ये बात बहुत चोट करती थी…. सच कहूँ अपने माता-पिता को तो अब भूल ही गया हूँ जो है अब यही मेरे माता-पिता है…. और मैं बड़ी माँ को छोड़कर कहीं नहीं जाने वाला…. मैं इसलिए इसी शहर में पारिवारिक व्यवसाय करने लगा…. चाहता था कहीं अच्छी नौकरी करूँगा पर फिर बड़ी माँ को लेकर अपना ख़्याल त्याग दिया….. अब अपनी पत्नी से भी यही उम्मीद करता हूँ कि वो मेरा साथ दें और मेरी बड़ी माँ को माँ ही समझें ताकि उसे कोई और ताने सुनने की नौौबत ही ना आएँ … तुम मेरे लिए इतना कर सकोगी ना..?”

“ हाँ नकुल ….कौन सा हमारा परिवार बहुत बड़ा है…फिर मेरे घर में खुद ही सब मिल कर रहते हैं….मैं कोशिश करूँगी बड़ी माँ को मुझसे कोई शिकायत नहीं हो।” कह कृति नकुल के सीने पर सिर रख सोने की कोशिश करने लगी

कामिनी जी अभी भी ज़्यादा नहीं बोलती थी उन्हें पता नहीं क्यों ना नकुल अपना लगता ना कृति ….वो एक दूरी सी बना कर रहती …..

एक दिन किशोर जी ने कामिनी जी से चाय बनाने को कहा… उस दिन उनकी तबीयत ठीक नहीं लग रही थी फिर भी वो रसोई में जाकर चाय बनाने लगी…. कृति वही खाने की तैयारी कर रही थी… वो देख रही थी  कामिनी जी बार बार अपना सिर पकड़ रही है…

“माँ आप बैठ जाइए मैं चाय बना कर आप दोनों को दे दूँगी…।” कृति ने कहा 

“ नहीं नहीं मैं कर लूँगी तुम खाने की तैयारी करो…।” कह कामिनी जी सॉसपैन पकड़ने को हुई थी कि उनके हाथ से लग कर पूरी चाय गिर गई…. और हाथ जल गया 

“ कह रही थी ना माँ…. आप बैठिए… आप जरा भी मुझे नहीं सुनती है….. दीदी होती तो आप नहीं सुनती उनकी बात… फिर ये हाथ जला बैठी…।”लाड़ और ग़ुस्से की मिली जुली प्रतिक्रिया करती कृति जल्दी से कामिनी जी के हाथ ठंडे पानी में डाल दी

चाय की देरी देख किशोर जी दरवाज़े पर आ सास बहू का रूप देख चुपचाप वही जड़ से खड़े रह गए थे 

“ मैं ठीक हूँ… उनको जल्दी चाय चाहिए थी और देरी हो गई…।” भुनभुनाती हुई कामिनी जी ने कहा 

“ देरी तो कामिनी  तुम अभी भी कर रही हो…. अरे दोनों बच्चे तुम पर जान छिड़कते हैं और तुम अभी भी उनकी माँ नहीं बन पाई हो… नकुल तो शुरू से तुम्हें बड़ी माँ ही बोलता था उसको आदत है पर बहू… वो तो जब से आई है तुम्हें माँ ही कह रही है…अरे कभी माँ की ममता भी दिखा दो…. अब तो समझों…. चलो मैं बाहर चाय पी लूँगा तुम आराम करना…. और हाँ बहू…. अब से इसकी फ़िक्र करने की ज़रूरत नहीं है… करने दो इसको जो मन करता है।” कह किशोर जी निकल गए

 कामिनी जी कुछ देर चुपचाप वहीं बैठी रही फिर हाथों की जलन कम होने पर बोली,“ मैं कमरे में जा रही हूँ…. सब खाना खा लेंगे उसके बाद मेरे कमरे में आ जाना।” 

कृति ने हाँ में सिर हिला दी..

खाने के बाद कृति कामिनी जी के कमरे में गई तो देखती है 

कामिनी जी एक हार निकाल कर कृति को पहनाते हुए बोली,“ ये मेरी सास ने मुझे दिया था बहू…. मैं सहेज कर अपनी बहू के लिए रखी हुई थी…. हमेशा तमन्ना थी अपने हाथों से बहू को पहनाऊँगी…. पर मेरी क़िस्मत में बेटियाँ लिखी थी….. मैं नकुल को कभी दिल से अपना नहीं पाई … पर अब एहसास हो रहा है…. मेरा बेटा तो वर्षों से मेरे ही साथ था बस मैं ही समझ नहीं पाई….काश ये बात मैं पहले समझ जाती तो ये हार पहले दिन ही अपनी बहू को पहना देती… मुझे माफ कर देना बहू… नकुल का दिल बहुत बड़ा है मैं हमेशा उसे दुत्कारती रही पर उसने मुझे हमेशा माफ कर माँ ही समझता रहा पर मैं ही माँ नहीं बन पाई।” 

उनके स्वर में आत्मग्लानि दिख रही थी 

कृति कामिनी जी के पाँव छूकर आशीर्वाद लेते हुए बोली ,“ माँ नकुल के लिए आप ही उसकी माँ है और मेरे लिए मेरी सासु माँ…. मैं जब से आई हूँ आपको ही जान रही हूँ…. और आप हमसे बड़ी है माफ़ी माँग कर हमें शर्मिंदा ना करें ।” 

दरवाज़े पर खड़े किशोर जी और नकुल की आँखों में ख़ुशी के आँसू छलक आए थे नकुल कब से इस दिन का इंतज़ार कर रहा था कि उसे उसकी माँ का प्यार मिल  सके ।

“ सुन बेटा तेरी बड़ी माँ को माफ कर देना… कहते हैं ना माफ करने वाले का दिल बहुत बड़ा होता है… और मुझे पता है मेरे बेटे का दिल बहुत बड़ा है।” किशोर जी धीरे से नकुल से बोले 

“ नकुल मुझे माफ कर दे बेटा… काश तुम समझ पाते मैं ऐसी क्यों हो गई थी…।” कामिनी जी ने कहा 

““ मेरे दिल में कोई गिला नहीं है बड़ी माँ…मैं सब जानता और समझता हूँ बड़ी माँ….तभी तो मैं हमेशा आपके पास ही रहा …कभी छोड़ कर जाने की सोचा ही नहीं…. मेरे लिए आप दोनों ही मेरे माता-पिता हो जिन्होंने मुझे सँभाल कर बड़ा किया ।” कहता हुआ नकुल आज पहली बार अपनी बड़ी माँ के गले लग रो पड़ा 

माँ बेटे का मिलन देख किशोर जी भी अपने आँसू रोक ना पाएँ।

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 रश्मि प्रकाश

 

 

4 thoughts on “अब तो माँ बन जाओ ( भाग 2)- रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi”

  1. आपकी कहानी दिल को छू गई बहुत प्यारी कहानी ऐसा लगा जैसे हम खुद कहानी के किरदार हैं आंखों को भिगो दिया ईश्वर करे आप ऐसे ही लिखते रहें और हम जीवन का मर्म समझ पाए

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  2. सच में कहानी बहुत ही प्रेरणा दायक हैं

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