बस इतना ही तो चाहिए…!!( भाग 1) – लतिका श्रीवास्तव: Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : अरे अम्मा जी भी हैं क्या आशी जी आपने बताया नहीं ..तो फिर कल शाम को आप अम्माजी को लेकर आइयेगा हमने घर पर कान्हा के जन्मदिन का उत्सव रखा है अम्माजी का आशीर्वाद भी हमें मिल जायेगा….रीमा बहुत विनम्रता और आदर से हाथ जोड़ कर निमंत्रित कर रही थी
हां हां हम सब आयेंगे अम्मा जी तो पिछले महीने ही आई हैं समय ही नहीं मिल पाया बताने का आशी ने मुस्कुरा कर प्रत्युत्तर दिया था।
तभी से नीलिमा जी को उतावली होने लगी थी कल उत्सव में जाना है वैसे तो वह कहीं जाना नहीं चाहती लेकिन रीमा के निमंत्रण देने का शालीन तरीका और खुद के प्रति इतना आदर भाव उन्हें भावुक कर गया था …वैसे तो कोई भी आए जाए वो बाहर के कमरे में नहीं आती थीं लेकिन रीमा की आवाज और जन्माष्टमी उत्सव की बात सुनकर वह बैठक में आ गई थी तभी रीमा ने उन्हें देख लिया था.
पता नहीं उन्हें आता देख आशी कुछ संकोच में पड़ गई थी और जल्दी से रीमा को बाहर ले गई थी…. ना ही कोई परिचय करवाया ना कोई बात…!शायद बहू को मेरा किसी से मिलना बात करना अच्छा नहीं लगता है ..!!पर क्यों??मन विचलित हो उठा उनका??सब मतलब के रिश्ते होते हैं बहू को तो सास कभी अच्छी ही नही लगती।
मन में सोच विचार तीव्र हो गया था रीमा के घर जन्मोत्सव में जाने के लिए अपनी सारी साड़ियां फैला कर परख रही थी काल्पनिक परीक्षण साड़ियों का करने के बाद भी तसल्ली नहीं हो पा रही थी सोचा बहू की राय के अनुसार साड़ी पहनेंगी ।
अच्छा मां हम लोग चलते हैं सुशीला ने सब्जी रोटी बना दी है आज उसको जल्दी थी अगर आपकी इच्छा हो तो दाल चावल बना लीजिएगा…. आशी ने दूसरे दिन सुबह कार की चाभी उठाते हुए कहा तो
आज भी ऑफिस है छुट्टी नहीं है आज तो जन्माष्टमी है ना!!नीलिमा जी ने आश्चर्य से पूछा
छुट्टी !!क्या मां यहां कहां …!!
पर बेटा आज तो कृष्ण जन्माष्टमी है तूने सब्जी रोटी क्यों बनवाई आज ये नहीं बनता अपने घर में!!
नहीं बनता!!मतलब फिर क्या बनता है आज मां!!ठिठक कर बहू ने पूछा तो मां अपने बेटे केशव की तरफ देख ने लगीं
……क्यों कृष्णा आज जन्माष्टमी पर क्या बनता है तुझे भी याद नहीं है!!आज तो पूरा परिवार व्रत रहता है फिर रात में कान्हा का जन्म करने के बाद पूरी सब्जी प्रसाद ग्रहण करते हैं….!
आशी के सामने ही मां का इस तरह पूछना केशव को सकुचा गया
अरे छोड़ो ना मां क्या क्या बातें कर रही हो !! इतनी फुरसत किसी को नहीं हैं मां …आपको तो बैठे ठाले यही सब सूझता रहता है …मैं भी भूल गया क्या बनता था सब बचपन की बाते थीं…क्या फर्क पड़ता है मां व्रत क्यों रहना अरे जो मन करे खाओ आराम से कौन से जमाने की बातें कर रही हो तुम भी …अब कोई नहीं रहता ये व्रत अत….केशव ने एकदम झल्लाते हुए कहा और फटाक से कार की ओर चल पड़ा।
ठीक है तू भूल गया होगा पर मैं तो आज अपने लड्डू गोपाल जी के जन्मदिन पर व्रत रखूंगी मुझे नहीं खानी सब्जी रोटी….नीलिमा जी कहते हुए अंदर चली गई थीं।
मन खराब सा हो गया था उनका।

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बस इतना ही तो चाहिए…!!( भाग 2) – लतिका श्रीवास्तव: Moral Stories in Hindi

#मतलबी रिश्ते
स्वरचित
लतिका श्रीवास्तव

 

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