अगले जनम मोहे बिटिया ना कीजो –  नीतिका गुप्ता

नमिता के आंसू छलक आए… मन की पीड़ा आंखों से बह रही थी और दिल बस एक ही दुआ मांग रहा था “हे भगवान मुझे अगले जन्म में मेरे पापा का बेटा बनाना बेटी नहीं….”

 

आखिर कौन है यह नमिता जो अपने स्त्री रूप को त्याग कर पुरुष होने की कामना कर रही है। स्त्री होना तो गर्व और सम्मान की बात होती है फिर क्यों नमिता अगले जन्म में अपने पापा की बेटी नहीं बेटा बनना चाहती है……

आइए आपको बताती हूं और मिलवाती हूं नमिता से…..!!

 

नमिता अपने माता पिता की पहली संतान… उससे छोटा एक भाई लेकिन पहली संतान होने के कारण नमिता अपने मां-पापा की आंखों का तारा है। सभी माता-पिता की तरह नमिता के माता-पिता ने भी अपने दिल के टुकड़े के लिए बेहतरीन से बेहतरीन लड़का ढूंढ कर उसके हाथ पीले किए।

 

आज पहली विदाई है… सिर्फ तीन दिन हुए हैं उसकी शादी को लेकिन ऐसा लगता है जैसे न जाने कितने सालों से अपने मां पापा से दूर रह रही है। घर में सिर्फ ससुर जी और पति (अमन) के पास मोबाइल फोन है,, नमिता के पिता ने ससुर जी के फोन पर सुबह ही फोन करके अपने पहुंचने का समय बता दिया था।

 

नई नवेली दुल्हन नमिता बार-बार दरवाजे तक जाती है बाहर झांकती है और फिर वापस कमरे में आकर चहल कदमी करने लगती है।

 

  कुछ ही देर में किसी की आवाज उसके कानों में पड़ती है “बहू के पापा और भाई आ गए हैं”

 

मारे खुशी के उसका दिल फूले नहीं समा रहा है,, मन का परिंदा तो न जाने कब का उड़कर बाबुल की गलियों में चहक रहा है,, बस उसका शरीर ही इंतजार में है कि कब अपने घर जाए।

 

  कुछ ही मिनटों में पापा और भाई उसके कमरे में आ जाते हैं,, पापा के गले लग कर फूट-फूटकर रो पड़ती है और भाई को गले लगा कर बहुत सारा प्यार जताती है।



 

  लगभग 25 मिनट हो चुके हैं,, राधा (काम वाली बाई) चाय नाश्ता कमरे में रख गई थी लेकिन परिवार का कोई भी सदस्य अभी तक नहीं आया है। पापा के फोन से अमन को फोन किया वह अपने किसी दोस्त के साथ थे,, “आता हूं” कहकर फोन काट दिया….

 

कमरे से बाहर झांका तो राधा दिखी… सासु मां और ससुर जी के बारे में पूछा तो जवाब मिला कि ससुर जी फैक्ट्री चले गए हैं और सासू मां अपने कमरे में कुछ काम कर रही है।

 

नमिता अंदर ही अंदर तिलमिला रही थी,, उसके पापा और भाई…. बस इतना ही सम्मान है उनका,, ससुर जी थोड़ा रुक कर फैक्ट्री जा सकते थे और सासू मां… क्या कुछ देर बाद अपना काम नहीं कर सकतीं??

 

पापा नमिता की उलझन समझ रहे थे,, अपने पास बिठाकर उन्होंने चाय पी और उसे भी पिलाई। नमिता ने राधा को झूठे बर्तन हटाने के लिए आवाज दी कि तभी पति अमन और सासू मां दोनों ही उनके कमरे से बाहर आते दिखे।

 

  नमिता के मन में ख्याल आया कि जब अमन घर आ गए थे तो क्या पहले उन्हें मेरे पापा से नहीं मिलना चाहिए…. लेकिन उस वक्त उसका कुछ भी कहना ठीक नहीं था।

 

  जब पापा ने हाथ जोड़कर बेटी को ले जाने की अनुमति मांगी तो सासु मां ने अपने रस्मों रिवाजों की एक लिस्ट पकड़ा दी,,, जिसमें बहू के ससुराल वापस आने पर मायके से क्या-क्या सामान और कितना कितना आएगा.. सब लिखा हुआ था….

 

पति अमन ने बस सर हिलाकर नमस्ते की और कहा कि कुछ देर और रुक जाएं… एक बार फिर से नमिता का मन हिचकोले लेने लगा,,, क्या उसके पति के द्वारा उसके पिता को इतना ही सम्मान मिलेगा..??

 

  आने से पहले जब उसने सास के पैर छूकर आशीर्वाद लिया तो उन्होंने पति अमन के पैरों की तरफ इशारा करके कहा कि “बहू ससुराल के संस्कार मायके जाके भूल ना जाना… अमन बहू के सर पर हाथ रख कर कह,,, “दूधो नहाओ पूतो फलो”

 

  एक तरफ नमिता को संस्कारों की दुहाई दी जा रही थी वहीं दूसरी तरफ उसके पिता और भाई को अपमान की कड़वी चाय पिलाई गई थी।

 

  मायके से वापस आकर नमिता अपने पति के साथ दूसरे शहर चली गई लेकिन मन से अपने पापा और भाई के साथ किया हुआ व्यवहार कभी ना भूल सकी।

 



हर महीने किसी ना किसी रस्म त्यौहार के नाम पर उसके सास ससुर उसके पिता को फोन करके एक लंबी लिस्ट बता देते और हर बार नमिता के पिता उसके ससुराल में बस सामान भर पहुंचाने के ही अधिकारी थे।

 

नमिता का दिल बहुत दुखता था कि “बेटी के ससुराल में क्यों पिता को सम्मान नहीं मिलता..?”

 

  नमिता ने कई बार अपने पति से भी इस विषय पर बात करनी चाही लेकिन वही दो टूक शब्दों का जवाब…”अब मैं तुम्हारे पापा से क्या बात करूंगा भला..? अब दो लोग एक जगह पर चुपचाप बैठे रहें यह भी तो अच्छा नहीं लगता…”

 

  नमिता के पापा जब भी कभी उसे लेने आते तो बस घंटे भर में ही उसे लेकर चले जाते क्योंकि वहां रुकने का उनका मन ही नहीं करता था।

 

  अमन के माता पिता जब भी रहने आते बेटे के घर पूरे पूरे महीने रह कर जाते,,, दिल खोलकर बहू से सेवा करवाते और तो और उसके मायके से आए हुए सामान की माता पिता के साथ उनका बेटा भी यानी अमन दिल खोलकर मजाक उड़ाते, बुराइयां करते….

 

अपने ही घर में नमिता को बेगानों जैसा महसूस होता,, अपना ही पति अपना नहीं लगता,, ऐसा लगता कि वह सिर्फ एक गूंगी बहरी काम करने वाली नौकरानी है।

 

वक़्त आगे बढ़ चुका है…. नमिता दो प्यारे बच्चों की मां बन चुकी है और अब उसको मायके ले जाने की जिम्मेदारी उसके पति अमन उठाते हैं।

 

  नमिता के मायके से अब कोई सामान पहुंचाने नहीं आता है और ना ही सास ससुर को आमंत्रित किया जाता है।

 

  2 साल पहले मम्मी पापा के एक्सीडेंट में चले जाने के बाद नमिता ने अपने ससुराल में यह स्थिति साफ कर दी कि अब किसी भी तीज त्यौहार पर उसका छोटा भाई किसी लेनदेन के लिए जिम्मेदार नहीं होगा।



 

  सास ससुर ने जब समाज की दुहाई थी तो उसने बहुत अच्छे से यह बात समझा दी कि सेवा बहू करती है समाज नहीं…. वक्त बड़ा बलवान होता है कभी भी किसी का भी बदल सकता है। आज वो अपने छोटे भाई के लिए मां समान है और मां से बड़ी ताकत कोई नहीं होती।

 

  नमिता ने अपने पति के दिल में अपनी जगह सुनिश्चित कर ली है और अपने भाई की मां समान बड़ी बहन बनकर उसके प्रति सारे फर्ज निभा रही है।

 

  वक्त तो 1 दिन सबका बदलता है चाहें फिर बहू हो या सास…. लेकिन फिर भी पुराने दिनों की कड़वी यादें दिल से मिटाए नहीं मिटतीं।

 

  आज भी नमिता के दिल से बस यही आवाज निकलती है कि “काश मैं अपने पापा की बेटी नहीं बेटा होती तो मेरे पापा भी मेरे घर में सीना तान के गर्व से मेरे साथ रह पाते।”

 

  कुछ मन की बातें….. 

कितना मन करता है ना कि हमारे मम्मी पापा भी हमारे साथ आ कर रहें…. जैसे हमारे सास ससुर आ कर रहते हैं। बिना किसी संकोच के,, बिना किसी भेदभाव के…. लेकिन ऐसा संभव नहीं हो पाता‌। बहू पर तो सब अधिकार जमा लेते हैं लेकिन दामाद क्यों किसी का अपना नहीं बन पाता…???

 

  आप सब को क्या लगता है ?? बेटियों के घर में उनके माता-पिता की जगह भी सुरक्षित होनी चाहिए,,,, फिर कहीं कोई मनमुटाव होगा ही नहीं…. जब पति अपनी पत्नी के माता-पिता को वही सम्मान और अधिकार देंगे जो अपने माता-पिता को देते हैं तो रिश्ते और परिवार खिलखिला उठेंगे। 

आपके विचारों की प्रतीक्षा में….

#अपमान 

  स्वरचित एवं मौलिक रचना

    (सर्वाधिकार सुरक्षित)

       नीतिका गुप्ता

 

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