महालक्ष्मी बिल्डर्स -नेकराम Moral Stories in Hindi

अजी सुनते हो तुम मुंह लटकाए क्यों बैठे हो आज क्या ड्यूटी नहीं जाना पत्नी ने मेरे उदास चेहरे की तरफ देखते हुए कहा
मैंने पत्नी को उदासी का कारण बताते हुए कहा तुम तो जानती ही हो मैं महालक्ष्मी बिल्डर्स के पास काम करता हूं
महालक्ष्मी बिल्डर्स के मालिक गोपाल दास एक लंबी बीमारी के कारण वह अब चल फिर नहीं सकते इसलिए घर में ही रहते हैं
और उनके पुत्र नवीन कुमार ने अपने पिता की सारी जिम्मेदारी ले ली है
गोपाल दास के बेटे नवीन कुमार का कल उनका पहला दिन है ना जाने उनका रवैया कैसा होगा
कहीं वह मजदूरों पर अत्याचार ना करें अभी दो दिन पहले ही मजदूर दिवस मनाया गया था
आजकल इस कलयुग में धनवानों के पुत्र मजदूरों पर कोई रहम नहीं खाते उस दिन खाना खा पीकर में सो गया और अगले दिन अपने महालक्ष्मी बिल्डर्स
के ऑफिस में पहुंच गया वहां की देखरेख की जिम्मेदारी मेरी ही थी
गोपाल दास जी ने कहा था जब से नेकराम हमारी कंपनी में आया है हमारा काम तेजी से बढ़ रहा है
मेरे ऑफिस पहुंचने से पहले ही हमारे मालिक गोपालदास जी के बेटे नवीन कुमार पहले से ही वहां मौजूद थे
मुझे देखते ही उन्होंने तुरंत मुझे आदेश दिया आज मेरा पहला दिन है हम आज से ही काम शुरू करेंगे हमारे पिताजी शहरों में जमीन खरीदने हैं फिर वहां पर फ्लैट बनाकर बेच देते हैं
आज अपने किसी भी पुराने वर्कर और ठेकेदार को नहीं बुलाया जाएगा
तुम यहां की देखरेख करते हो नेकराम जी इसलिए आप अभी और इसी वक्त मेरी बाइक ले जाओ और मोहल्ले में लेबर चौक का पता करो
मोहल्ले में जितने भी लेबर चौक हैं आसपास के और भी लेबर चौक होंगे वहां के सभी राजमिस्त्री और मजदूरो को
इकट्ठा करो तब मैं तुम्हें एक कॉल करूंगा और पता बताऊंगा तुम सबको वहां लेकर आ जाना
मैं नौकर था मुझे अपने मालिक की बात माननी थी सो मैं बाइक लेकर चल पड़ा
मई का महीना शुरू हो चुका है
सुबह के 10:00 चुके हैं सूरज आसमान पर चढ़ता ही जा रहा है तेज धूप चारों तरफ फैल चुकी है
मैं धूप में भटकते भटकते लेबर चौक पहुंचा
वहां बहुत से मजदूर और राजमिस्त्रियों से मैंने बात की कि हमारे मालिक नवीन कुमार बिल्डर्स का काम करते हैं बड़ी-बड़ी बिल्डिंग बनाते हैं तुम सबको बुलाया गया है
मैंने तुरंत वहां एक टेंपो का इंतजाम किया और सब लोगों को उस टेंपो में बैठा दिया
थोड़ी देर में हमारे मालिक नवीन कुमार का मेरे मोबाइल पर मैसेज आया
उसमें एक पता था मैं टेंपो को लेकर एक दूसरे लेबर चौक में पहुंचा वहां से भी मुझे कुछ आठ नौ राजमिस्त्री और मजदूर मिले
तभी मेरे पास पुराने वर्करों का फोन आया तो मैंने उन वर्करो को बताया आज से हमारे नए मालिक
नवीन कुमार गोपाल दास के बेटे आए हैं और मुझे लगता है शायद उन्होंने पुराने वर्करों को नौकरी से निकाल दिया है
इसलिए मुझे आदेश दिया है नए वर्करो की तलाश करके उन्हें इकट्ठा करो
मेरी मजबूरी है और मैं यहां की देखरेख की जिम्मेदारी लेता हूं इसलिए मुझे यह काम करना है मन तो नहीं करता
पुराने वर्करों को हटाने की क्या जरूरत थी मैंने आसपास से करीब ढाई सौ मजदूरों को इकट्ठा कर लिया हर कॉलोनी में मुझे 5 से 6 लेबर चौक मिले
जहां लोग फटे पुराने मैले कपड़ों में पुरानी चप्पल पहने हुए बैठे हुए थे
कोई बीड़ी कोई तंबाकू मलता नजर आ रहा था लेकिन मुझे क्या मुझे तो अपने मालिक का आदेश मानना था
दस बड़े-बड़े टेंपो भर चुके थे ढाई सौ लोगों को किसी तरह उन टेंपो में ठूंस कर में मालिक के पते पर चल पड़ा
आधे घंटे के बाद मैं बाइक लेकर एक शानदार होटल के सामने रुका
होटल के बाहर चमचमाते कपड़े पहने हुए दो गॉड्स बंदूक लिए खड़े थे
मैंने टेंपो वहीं सड़क किनारे खड़े करवा दिए और टेंपो वाले चालक से कहा जरा यही ठहरो मैं मालिक को कॉल करके पता लगाता हूं आखिर उन्होंने कहां जमीन खरीदी है और हमें मकान कहां पर बनाना शुरू करना होगा
हमारा मालिक अक्सर शहरों के बीचो-बीच खाली पड़े पुराने मकानों को खरीद कर वहां पर फ्लैट बनाकर खड़े कर देता है
फिर उन्हें ऊंचे दामों पर बेच देता है यही बिजनेस है उनका
तभी नवीन कुमार जी का फोन आया
नेकराम जी आप बाइक लेकर कहां खड़े हो
मैंने उनका जवाब देते हुए कहा जी सामने एक शानदार होटल है और मैं उसी के सामने खड़ा हुआ हूं
तब उन्होंने कहा जितने भी मजदूर आपके पास हैं इसी होटल के अंदर चले आओ उन सबको लेकर
मैंने फिर पूछा साहब कहीं आप मजाक तो नहीं कर रहे हो
नवीन कुमार जी ने कहा ,, आप सभी मजदूरों को और ड्राइवर चालक को भी होटल के भीतर ले आओ गार्डों को हमने समझा दिया है वह आपको नहीं रोकेंगे
मैंने सभी मजदूरों से कहा चलो होटल के भीतर ही मालिक ने बुलाया है वही आपको समझाया जाएगा काम कैसे करना है
मैं उन ढाई सौ मजदूरों को होटल के भीतर ले चला
होटल के भीतर पहुंचने के बाद होटल पूरी तरह दुल्हन की तरह सजा हुआ था चारों तरफ खाने पीने की पूरी व्यवस्था थी
सामने हमारे मालिक नवीन कुमार
जी माइक लिए खड़े थे
उन्होंने बताया
बाहर काफी गर्मी है और आप लोग दूर से आए हैं पहले आप लोग पेट भरकर खाना खा लीजिए फिर बात करते हैं
उन मजदूरों के अलावा उस होटल में कोई न था
मजदूर पहले तो संकोच करते रहे कुछ देर खड़े रहे लेकिन उन्होंने फिर
हमारे मलिक जी ने
कहा कि पहले खाना खा लीजिए यह खाना सब आप लोगों के लिए ही है
ढाई सौ मजदूरों ने वहां हर व्यंजन का मजा लिया खीर पूरी हलवा सलाद रसगुल्ला बर्फी गुलाब जामुन दही बड़े गोलगप्पे चाऊमीन आइसक्रीम लस्सी कोल्ड ड्रिंक
2 घंटे के पश्चात
नवीन कुमार जी ने मुझे बुलाया और कहा
होटल के ऊपर वाले कमरे में कुछ गिफ्ट रखे हैं उन्हें नीचे लेकर आओ
ऊपर वाले कमरे में बहुत सारे पैकेट रखे हुए थे मैंने एक पैकेट खोला तो उसमें कपड़े थे एक पैकेट में दो पेंट दो कमीज
मैं जल्दी-जल्दी पैकटों को उठा उठा कर कमरे के नीचे ला लाकर मालिक के पास रखता गया
हमारे मालिक ने फिर माइक में कहा आप लोग खाना खा चुके हैं
सब लोग लाइन लगा लीजिए इससे अनुशासन बना रहेगा
सभी मजदूर बारी-बारी से आगे आते गए और हमारे मालिक ने उन्हें
इनाम के तौर पर दो पेंट और दो कमीज का गिफ्ट उनके हाथों में थमा दिया और कपड़ों के साथ 1100 रूपए भी रख दिए
तभी वहां पर कुछ लोग मोबाइल से वीडियो बनाने लगे तो हमारे मालिक नवीन कुमार ने उन्हें मना करते हुए कहा
कोई वीडियो नहीं बनाएगा
हम यह आपकी सेवा के लिए कुछ उपहार आपको दे रहे हैं
इस देश की बड़ी-बड़ी इमारत को बनाने के लिए आप मजदूरों ने वर्षों से अपना पसीना बहाया है
किसी ने आपका हक छीना तो किसी ने आपको काम मजदूरी दी
लेकिन आप लोग अपने काम में जुटे रहे
भले ही आपको आधी रोटी मिली लेकिन आपने मेहनत करना संघर्ष करना नहीं छोड़ा
छेनी और हथौड़ों से आपने दीवारों को छीलकर उनमें खिड़किया बना डाली
लेबर चौक में तपती धूप में घंटों घंटो बैठकर हमेशा अपनी
प्रतीक्षा
का इंतजार किया
धूल मिट्टी में सने कपड़ों को लिए रोज शाम को थके मांदे घर लौटकर आते रहे
कभी भरी बसों में लटक कर तो कभी मीलो पैदल चलकर
सीमेंट का घोल बनाकर
अपने हाथों के गहरे जख्मों की
पीड़ा को छुपाए हर प्रतिदिन नए मकान की खोज में चलते गए
हम ऐसे युग में जी रहे हैं जहां फिल्मी कलाकारों का हम बहुत सम्मान करते हैं
लेकिन हमारे सामने जब कोई मजदूर या राजमिस्त्री आ जाता है तो हम उनसे ठीक से बात भी नहीं करते उनका सम्मान भी नहीं करते
कलाकार करोड़ों रुपए कमाते हैं और एसी वाले बंगलों में रहते हैं
और आप मजदूर बड़े-बड़े बंगले बनाकर भी कच्ची झोपड़ियां और टूटे-फूटे मकान और किराए में रहकर अपना गुजर बसर करते हैं
अमीरों ने हमेशा आप लोगों के साथ छल किया है
बड़े-बड़े अपने बंगले तो बनवा लिए गए लेकिन आप लोगों को पूरी मजदूरी न दे सके
आपकी एक छोटी सी गलती पर आपके रुपए रोक लिए गए आपको एक एक रूपए के लिए दौड़ाया गया
मैं भारत सरकार से अपील करूंगा और अगर सरकार ने सुनवाई न की तो मैं स्वयं ही आप लोगों के लिए एक काम जरूर करूंगा
जिस तरह बस में बैठने के लिए यात्रियों के लिए सरकार बस स्टॉप बनाती है ताकि यात्रियों को धूप में खड़ा ना होना पड़ा
उसी तरह हर लेबर चौक पर भी आप लोगों के लिए बैठने की व्यवस्था बनाई जाए
ताकि मई जून जुलाई की तपती धूप से आप लोग बच सके
पानी पीने के लिए कुछ घड़ो की व्यवस्था की जाए
इतना काम तो मोहल्ले के सभी लोग मिलकर कर सकते हैं
सरकार को भी इस पर ध्यान देना चाहिए
सरकार को वोट तो चाहिए लेकिन आप लोग किस तरह की जिंदगी जी रहे हैं सरकार को उनसे कोई लेना-देना नहीं
मैं अपने मोहल्ले के और आसपास के मोहल्ले में जितना हो सके
लेबर चौक पर कुछ ऐसी व्यवस्था की जाए ताकि तपती धूप से मजदूरों को निजात मिले
कहीं-कहीं लेबर चौक पर तो बहुत गंदगी और कूड़े के ढेर देखने को मिलते हैं
आप सभी मजदूर भाई अपना पसीना बहा कर हमारे लिए रहने के लिए एक आशियाना बनाते हैं
लेकिन हम आप लोगों के लिए क्या करते हैं क्या सोचते हैं
आज मुझसे जितना हो सका मैंने आप लोगों को पेट भर के खाना खिलाया और पहनने के लिए दो जोड़ी कपड़े दिए और कपड़ों के साथ प्रत्येक मजदूरों को ₹1100 रूपए दिए
मैं अकेला जितना कर सकता हूं उतनी आप लोगों की मदद जरूर की
और आगे भी
करूंगा और देशवासियों से भी यही कहूंगा
मजदूर को मजदूरी पूरी दे और उनका सम्मान करें
अपने मालिक की बातें सुनकर मेरी आंखों में आंसू आ चुके थे
मालिक के कहने पर
मैं सभी मजदूर और राजमिस्त्रियों को उनके उन्हीं स्थानों पर वापस टेंपो के माध्यम से सुरक्षित छोड़ आया
अगले दिन हमारे लेबर चौक पर
ठंडे पानी के मटके और मजदूरों को धूप से बचने के लिए कुछ छाया का प्रबंध किया गया
यह वह मजदूर है जिनकी ना कोई सरकारी नौकरी है और प्राइवेट नौकरी भी पक्की नहीं है मकान बनते ही वह फिर बेरोजगार हो जाते हैं और लेबर चौक पर बैठने के लिए फिर से नए मकान की खोज में
लेबर चौक पर आकर बैठ जाते हैं
घर आकर मैंने सारी बातें अपनी बीवी को बताई
तो बीवी ने भी कहा कुछ पैसे मेरे पास रखे हैं कल एक मटका खरीद कर लेबर चौक पर रख दूंगी
फिर निगम पार्षद से कहकर वहां की पानी की व्यवस्था भी मैं करवाती हूं ।
लेखक नेकराम
हर्ष विहार दिल्ली
स्वरचित रचना

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