धब्बा लगना : short story with moral

short story with moral : पीयूष-मम्मी कब आओगी मिलने, और साथ में खाने के लिये मठरी, नमकीन भी लेती आना। यहाँ मेस का ख़ाना खाते खाते ऊब गया हूँ।

रंजना (पीयूष की माँ)-मेरा पुत्त, मैं कल ही आ रही हूँ, और तेरी पसंदीदा हर चीज़ लाऊँगी।

पीयूष-अरे वाह मम्मी। तुम बहुत अच्छी हो।

रंजना और शेखर (पीयूष के पापा) दोनों अपने बेटे से मिलने कोटा, राजस्थान पहुँचते है, जहां उनका बेटा मेडिकल की पढ़ाई कर रहा है।

हॉस्टल पहुँचते ही रंजना और शेखर दूसरे फ्लोर पर पीयूष के कमरे की तरफ़ जाते है। दरवाज़ा पर दस्तक देते है, पर उधर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आती।

रंजना (पीयूष की माँ)-लगता है पढ़ते पढ़ते सो गया है, जरा फ़ोन लगाइए। शेखर जी के फ़ोन करने पर भी पीयूष फ़ोन नहीं उठाता।

रंजना और शेखर ज़ोर ज़ोर से दरवाज़ा खटखटाते है। शोर सुनकर आस पास के सब स्टूडेंट्स बाहर आ जाते है। सभी को कुछ अनहोनी का अंदेशा होता है। रिसेप्शन से डुप्लीकेट चाभी लाकर दरवाज़ा खोला जाता है। अंदर का दृश्य देखकर सबकी चीखे निकल जाती है।

पीयूष बेड पर उल्टा पड़ा था मुँह पॉलीथिन से बंधा हुआ और हाथ पीछे बंधे हुए थे। पास में कुरकुरे और कोल्डड्रिंक की बॉटल पड़ी थी और पास में ही एक कागज़ पड़ा था जिस पर आत्महत्या के संबंध में लिखा था।

रंजना (पीयूष की माँ)-अभी थोड़ी देर पहले मेरी पीयूष से बात हुई थी, वो हमारा बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था। मेरा बेटा आत्महत्या कभी नहीं कर सकता। यही बोलते बोलते रंजना की बेहोश हो गई।

पुलिस को बुलाया गया। हॉस्टल और पुलिस वालों का कहना था कि बच्चे ने पढ़ाई के प्रेशर में या किसी और कारणवश आत्महत्या की है, पर पीयूष की हालत देखकर आत्महत्या कहना उचित नहीं लग रहा था।

किसी को समझ नहीं आ रहा था कि अचानक से ऐसे ख़ुशनुमा इंसान का यूँ आत्महत्या करना। कुछ लोग पीयूष के चरित्र को कलंकित कर रहे थे कुछ लोग उसे कायर कह रहे थे और पता नहीं क्या-क्या, पर वास्तविकता क्या है वो सिर्फ़ पीयूष जानता था।

पीयूष की मौत अपने पीछे कई सवाल खड़े कर गई –

1-ऐसा भी क्या था कि पीयूष को इतने निर्मम तरीक़े से आत्महत्या करनी पड़ी ?
2-ये आत्महत्या थी कि मर्डर ?
3-कॉलेज और प्रशासन इतना निर्दयी और बिकाऊ हो गया है कि एक बच्चे की निर्मम हत्या को आत्महत्या का रूप दे दिया।

आदरणीय पाठकों,

ये रचना सत्य घटना पर आधारित है। इस मामले में कार्यवाही प्रक्रियाधीन है। रचना को लाइक शेयर और कमेंट करने के लिए कहने में भी हिचक हो रही है क्योंकि अंदर से मन दुखी है।

रश्मि सिंह

2 thoughts on “धब्बा लगना : short story with moral”

  1. Mai bhi abhi medical ki tayari kr rhi hu 🙂… Pr aaye din Kota me hone wali in ghatnao ke baare me pdh kr or sun kr… Meri to wha jane ki himmat hi nhi ho rhi h 😔🥺….

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