वो सुनहरे बचपन के दिन बरबस ही सजीव हो उठते हैं… जब बारिश की झड़ी लगती है…जगह जगह पानी भर जाता है ..तब मेरा मन अपनी बचपन की उसी टीचर्स कॉलोनी में पहुंच जाता है और उन छोटी छोटी कागज़ की बनाई नावों को ढूंढता है जो मैं बचपन में अपने घर के आस पास भरे पानी में अपने दोस्तों के साथ मिलकर तैराया करती थी … उन्हें दूर तक बहा ले जाने के लिए उनके आगे का लंबा रास्ता जल्दी जल्दी साफ करके बनाया करती थी….जाने कितने अखबार और पुरानी नई कॉपियों के पन्ने इन छोटी बड़ी कश्तियों को बनाने में स्वाहा हो जाते थे…इन सबमें जाने कितनी डांट हम यूं ही बिना आवाज के खा जाया करते थे…जाने कितना ज्यादा आनंद आता था पूरी दक्षता से कला कौशल से उन कश्तियों को बनाने में फिर तैराने में…. उन कश्तियों के साथ मन भी कुशल नाविक बन तैर आता था…!
और हां ….हमारी प्यारी सी कॉलोनी के परिसर में दो बड़े बड़े जामुन के पेड़ भी थे ….बेहद मीठी काली काली छोटी और बड़ी दोनों प्रकार की जामुनें हम बच्चों के दिलों की धड़कन थी..तेज बारिश का बेसब्री से इंतजार रहता था हमें…!क्योंकि जब भी तेज बारिश और आंधी आती थी जोर की आवाज के साथ जामुन के पेड़ की डाल टूट कर गिर जाती थी….और काली काली मीठी जामुनों की बारिश!! …..मम्मी पापा की नजर बचाकर तेज बारिश में भी सबसे पहले वहां पहुंच कर उस बेशकीमती डाल पर कब्जा करना किसी दिव्य खजाने की प्राप्ति से कम उपलब्धि नहीं लगता था!!…पर तब तक बहुतेरे दावेदार पहुंच चुके होते थे…फिर तो लड़ाई भी लूट भी जामुन से भरे मुंह भी और हाथ भी…!!
अरे !!तो बात तो हो रही थी कागज की नावों की…!एक बार हमने नाव प्रतियोगिता भी रख ली…जिसकी नाव बिना डूबे लंबी दूरी तय करेगी वो विजेता!!
ओहो क्या कहने छोटी बड़ी ना जाने कितनी ही नावों और जहाजों का निर्माण हुआ…. उन्हें पानी में तैरा कर परीक्षण किया गया..तब जाकर एक मजबूत नाव का चयन हो पाया था…. मुझे याद हैउस दिन कुल दस नावें प्रतियोगिता में थीं…मेरी छोटी सी प्यारी सी नाव शुरू में काफी डगमग डगमग हुई …मेरी तो जान ही निकल गई थी…फिर अचानक वो सीधी स्थिर हो गई और तेज गति से सीधे निर्धारित ट्रैक पर सरपट बह निकली….मेरी तो खुशी का ठिकाना ही नहीं था…पर अचानक बारिश की बूंदा बांदी शुरू हो गई….अब क्या करूं!!!!मैने ऐसी आकस्मिक विपत्ति के लिए पहले से तैयार अपनी छतरी झट से निकाल ली और अपनी नाव के ऊपर तान दिया….मैं भीगती रही और नाव के साथ साथ दौड़ती रही बारिश में पर अपनी नाव को रत्ती भर भी नहीं भीगने दिया …..मेरी नाव का कोई मुकाबला ही नहीं था….अपनी उस नन्हीं सी कागज़ की कश्ती की निडर दिलेरी से विजेता का खिताब हासिल करते हुए वो बारिश मेरी यादगार बारिश बन गई.. वो .वो कागज़ की कश्ती वो बारिश का पानी वो दिल की कहानी..।
आज ये शिद्दत से महसूस होता है कि अपनी जिंदगी की कश्ती भी उसी कागज़ की कश्ती की तरह ही है जिसे हम पूरी दक्षता और कला कौशल से बनाते हैं..सजाते हैं….पूरी तरह से तैयार करके समय की तेज धारा में तैरा देते हैं… बारिश होने पर छतरी लगाकर बचाने की कोशिश में हम सब लगे रहते हैं….किसी की छतरी ही उड़ जाती है…किसी को छतरी मिल ही नहीं पाती है…किसी की छतरी समय पर खुल ही नहीं पाती….किसी की छतरी कमजोर होकर टूट जाती है….तो कोई अपनी मजबूत छतरी लगाकर अपनी नाव को बचाने में सफल हो जाता है…..
असल में ये छतरी हमारे विश्वास की हमारी आस्था की हमारी हिम्मत और दृढ़ संकल्पों की होती है …जो मुसीबतों की मूसलाधार बारिश में भी हमारी जीवन नैय्या को डगमगाने नहीं देती…संभाल लेती है।
#बरसात
लतिका श्रीवास्तव