विरोध से उन्मुक्त तक – अभिलाषा कक्कड़

विरोध और समर्थन के बीच जब द्वन्द्व होता है ,तो अक्सर विषय प्रश्नों के घेरे में आ जाता है । जो परिणाम निकल कर आते हैं वो सदा याद रहते हैं क्योंकि अथक प्रयासों से निकल कर आते हैं । जीवन में ऐसे अनुभव आने वाले समय में कुछ मन की उलझनों को सुलझाने में भी बड़े सहायक साबित होते हैं ।

 बात बहुत साल पुरानी है । मैं अपने कालेज के द्वितीय यानि की बी. ए सेकंड ईयर में थी । कालेज था हमारा सरकारी, छोटा से शहर के लिए कालेज का होना ही बहुत बड़ी बात थी । ख़ासकर उन लड़कियों के लिए जिन्हें दूसरे शहर जाकर शिक्षा पुरी करने की इजाज़त नहीं थी । वो समय ऐसा था जब माता-पिता की अपनी बेटियों पर पाबंदियाँ कुछ ज़्यादा ही थी । 

कालेज में जितनी भी लड़कियाँ थीं उनमें अस्सी फ़ीसदी तो माता-पिता के इस आदेश का बड़े अच्छे से पालन करती थी कि लड़कों से दूरी बना कर रखनी है । लड़की ने यूँही सामान्य सी बात की और किसी ने घर ख़बर पहुँचा दी तो समझो हो गई मुसीबत !!  ख़ैर मेरे माता-पिता भले ही पढ़ेलिखे थे , शिक्षक थे फिर भी मेरे पिता ज़्यादा आज़ादी देने के ख़याल रखने वाले अभिभावको में से नहीं थे । कालेज में एक दिन बड़ी दिलचस्प ख़बर आई कि कालेज का दो दिन के लिए ट्रिप शिमला जा रहा है और कालेज की तरफ़ से लड़के लड़कियाँ दोनों के लिए खुला आमन्त्रण है । 




जिसने सुना वहीं रोमांचित हुआ, मन हर किसी का ललायित हुआ । लड़कों के लिए कोई दिक़्क़त नहीं थी अगर कुछ थी तो ख़र्चे के लिए पैसा.. लेकिन लड़कियों के लिए थी घर से मिलनी इजाज़त !  जाने के दिन नज़दीक आ रहे थे लेकिन एक भी लड़की का नाम आगे नहीं आया । कुछ कहती थी हमें इजाज़त मिल जायेगी । लेकिन कोई आगे तो लगे । 

ख़ैर मेरी कुछ दोस्तों ने भी मन बनाया कि चलो हम भी एक मौक़ा लेकर देखते हैं क्या पता कोई चमत्कार हो ही जाये । सच में चमत्कार हुआ एक के बाद कई नाम आने लगे । अब सब मेरे पीछे पड़ गई कि आज तू पक्का अपने मम्मी पापा से बात करेगी । मैं सोच रही थी कि पापा से इजाज़त लेना तो ऐसे जैसे आसमाँ से तारें तोड़ना । 

वैसे बेटियाँ पढ़ लिख कर पैरों पर खड़ी हो इस मामले में वो बडे स्वतन्त्र विचारों के थे लेकिन घर की बेटियाँ रात भर बाहर रहे इसके लिए वो क़तई तैयार नहीं थे । मैं जानती थी अपने पापा को अच्छे से इसलिए मैंने अपनी मम्मी से जाकर पहले बात की ..  मेरी माँ तो सुनकर बहुत ख़ुश हुई और कहने लगी तुझे ज़रूर जाना चाहिए । मौक़ा चलकर जब ख़ुद पास आता है तो उसका हम लाभ ना उठाये तो ये हमारी ही बेवक़ूफ़ी है । 

यह दोस्तों के साथ बिताया वक़्त इन क्षणों के अनुभव जीवन में फिर कभी नहीं आयेंगे। पति के साथ शादी के बाद तुम कहीं भी जाओ लेकिन इस वक़्त की जो यादें स्मृतियों में विराजमान होती हैं वो बहुत सुखद अनुभूति देती है हर समय ! माँ की बातें सुनकर मैं हैरान भी हुई थोड़ी उम्मीद भी बंधने लगी । लेकिन जैसे ही बात मेरे पापा तक पहुँची तो उन्होंने सख़्त लफ़्ज़ों में कहा जाने का सोचना भी मत । मेरी माँ का समर्थन और पिता का विरोध के बीच अच्छी ख़ासी बहस हुई । 



दोनों के पास अपने अपने कारण और तर्क थे । पापा जी को तो सबसे ज़्यादा इस बात से आपत्ति थी कि लड़के भी वहाँ साथ जा रहे हैं । ख़ैर अगले दिन शाम को मेरी कुछ सहेलियाँ पापा से बात करने आई तो वो उन्हें भी सलाह देने लगे कि तुम भी सब मत जाओ बीमार पड़ जाओगी बहुत ठंड है वहाँ इस वक़्त … ख़ैर मेरी माँ ने पिता के विरोध के बावजूद मेरे जाने का सारा इन्तज़ाम किया । नियमित दिन पर हमारी बस शिमला की वादियों से हमें मिलाने लगी । प्रकृति की ऐसी ख़ूबसूरती जिसे देखकर मैं कुछ देर के सारे मन के भीतर चल रहे सब अपवादों को भूल गई। पहली बार हमने बर्फ़बारी देखी जो कि हम सबके लिए जैसे कोई सपना पुरा होने वाली बात थी । दो दिन में हमने कुफ़री माल रोड जाखू मन्दिर और भी कई जगह देखी । इन दो दिनों में हमें अपने सहपाठी लड़कों से जो बात की तो जाना कि वो सब बहुत अदबी और संस्कारी थे । 

उन्होंने हमें इन दो दिनों में बहुत ही सहजता और अपने पन का अहसास कराया । मन से लड़कों को लेकर काफ़ी ग़लत भ्रान्तियाँ विसर्जित हुई। ख़ैर सब मिलाकर पुरा ट्रिप आनन्द मस्ती से भरा हुआ रहा और जीवन की एक मधुर याद बनकर दिल में सदा विराजमान रहा। वापिस जाने के समय ड्राइवर ने बताया कि बस दो घंटे देर से पहुँचेगी क्योंकि रास्ते बर्फ़ की वजह से थोड़े ख़राब है ।

 जिस के घर में फ़ोन था उन परिवारों की मदद से सब घरों में ख़बर पहुँचा दी । रात के एक बजे हमारी बस वापिस अपने शहर पहुँची । जैसे ही मैं बस से नीचे उतरी तो देखा सामने मेरे पापा टोपी मफ़लर जैकेट पहने साइकिल पकड़ कर खड़े हैं । मुझे देखते ही उनके चेहरे पर बड़ी मुस्कान आई और गले लगाकर बोले आ गई बेटा और फिर पूरे रास्ते मुझसे क्या क्या देखा पुछते आये । मैं अपने पिता के चेहरे की निश्चितता और शांति देखकर सोच रही थी कि इनका विरोध भी अपनी जगह ग़लत नहीं था । आख़िर पिता पिता ही है 

#विरोध 

स्वरचित रचना

अभिलाषा कक्कड़

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