विदेश – डॉ. नीतू भूषण तातेड

पड़ोस वाली मंजुला को बताते हुए कलिका चहकती हुए कह रही थी,”मेरा रोहन बड़ा होकर विदेश ही जाएगा ।क्या रखा है देश में? वहाँ देखो! सब कुछ साफ सुथरा ,बड़ी और चमकीली गाड़ियाँ, सुंदर-सुंदर इमारतें और भरपूर पैसा।”

अपनी  बेटे रोहन के मन में बचपन से एक ही बात घर कर दी गई थी कि तुम्हें बड़े होकर विदेश जाना है। यूँ ही साल दर साल बीतते गए।

और आख़िर वह दिन आ ही गया जब रोहन को विदेश जाने का ऑफर मिला। इसी बीच रोहन के लिए कई अच्छे रिश्ते आये पर कलिका तो अपने बेटे को एक महँगा प्रोडक्ट समझती थी।

वह लोगों से कहती “अभी कहाँ ? पहले वह विदेश चला जाये फिर एक से बढ़कर एक रिश्ते आएँगे। साधारण परिवार वाली कलिका अपने बेटे  की शादी किसी अमीर घराने में करवाना चाहती थी। इसलिए पहले बेटे को विदेश भेज कर पीछे से चर्चा चलाने का इरादा रखती थी,जो बाद में उसकी एक बड़ी भूल साबित हुई।

रोहन ने जाने से पहले एक बार अपने माता-पिता के साथ चर्चा करनी उचित समझी।

” आपकी  इकलौती संतान हूँ मैं।यदि मैं विदेश चला  गया तो आप यहाँ मेरे बिना कैसे रहेंगे ?पापा की तबीयत भी तो आजकल ठीक नहीं रहती है और माँ आप आप कैसे रहोगी मेरे बिना?” शादी करके जाता हूँ तो पत्नी कुछ समय आपके पास रहेगी और मैं भी आता-जाता रहूँगा और कुछ समय बाद आप सभी को वही बुला लूँगा।



लेकिन सोसाइटी में अपनी नाक ऊँची करने के जोश में कलिका यह भी नहीं समझ पाई कि वह गलत कदम उठा रही है और समझदार बेटा जो उसे कह रहा है वह सही है । उसके पति संजोत ने भी कहा” रोहन ठीक ही तो कह रहा है।”

“तुम चुप रहो जी।” संजोत की बात काटते हुए बोली।

आखिर बेटा विदेश चला गया नौकरी के चक्कर में इतना व्यस्त रहता कि फोन पर भी शुरुआती दौर में बहुत बात हुई लेकिन धीरे-धीरे फोन भी कम होने लगे।

एक दो साल तो वह आया और शादी की इच्छा भी जताई क्योंकि उसे अकेलापन महसूस होता। माता -पिता को भी एक बार साथ ले गया। पर उनका मन ही नहीं लगा।

फिर तो फोन भी कम हुए और आना -जाना भी।वहीं पर साथ काम करने वाली गोरी मेम के साथ उसका प्रेम हुआ और शादी करके वहीं की नागरिकता उसने ग्रहण कर ली। माता-पिता को लगा था कि विदेश में पैसा कमाने की बाद यहाँ किसी अमीर सेठ की लड़की से शादी करवा देंगे परन्तु जब बेटे के मुँह से सुना,” माँ मैंने यहीं की रहने वाली लड़की से शादी कर ली है और नागरिकता भी मिल गयी है। आपसे कितनी बार कहा था कि मुझे बहुत अकेलापन लगता है,पर आपने एक न सुनी।” यह सुनते ही कलिका के सारे अरमान मिट्टी में मिल गए।  वह फूट-फूट कर रोने लगी

संजोत ने कहा, “अब रोने का कोई फायदा नहीं। तुमने वही पाया जो तुमने बोया था।”

  उसे तो लगा था पैसे कमाकर बेटा जब चाहे भारत आकर मुझसे मिल सकता है ,साथ वक्त गुजार सकता है लेकिन बेटे को जो गोरी मेम मिली उसमें भारतीय सभ्यता और संस्कृति की झलक भी नहीं थी जो बच्चे पैदा हुए वह भी पूरी तरह से अंग्रेज साबित हुए। चाह कर भी माँ-पिताजी वहाँ जाकर रह नहीं पाए जब भी एक-दो बार गए तो उन्हें बेबीसिटिंग करनी पड़ी या तो घर के कार्य करने पड़े ।भारत आने पर  भी बहुत अकेलापन महसूस हुआ। कुछ समय बाद रोहन के पिताजी लंबी बीमारी के बाद चल बसे और माँ बिल्कुल अकेली ,नितांत अकेली हो गई और अब जब कभी कोने में बैठकर बहुत सोचती कि काश बेटा बहुत पैसे नहीं कमाता और इसी देश में रहकर मेरे साथ रहता तो आज मेरी बहू ,पोता और पोती से भरा पूरा घर होता और इस तरह जीवन का सांध्य काल अकेले व्यतीत न करना पड़ता।

डॉ. नीतू भूषण तातेड

स्वरचित व मौलिक

 

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