तेरी औकात है क्या..! – विभा गुप्ता : Moral stories in hindi

    ” नहीं नरेश…तुम्हारे पिता हमारी शादी के लिये कतई तैयार नहीं होंगे।तुम लोग इतने पैसे वाले हो..मिल के मालिक हो…और मैं एक अनाथ…।” नरेश के हाथ से अपना हाथ छुड़ाती हुई नीलू बोली।

   ” नहीं नीलू…मेरे पिता ऐसे नहीं है।हमारे घर में ऊँच-नीच का कोई भेदभाव नहीं है।हम भी तो…।” कहते- कहते नरेश रुक गया।

   ” क्या हम भी तो…।”

   ” कुछ नहीं…आओ चलें…मैं तुम्हें ड्राॅप कर देता हूँ।कल ठीक चार बजे तैयार रहना..मैं तुम्हें मम्मी-पापा से मिलाने ले जाऊँगा।” कहते हुए नरेश ने नीलू को बाइक के पीछे बैठाकर बाइक स्टार्ट कर दिया।

       नरेश एक टेक्सटाइल मिल मालिक हरिराम का इकलौता बेटा था।वह एमबीए कर रहा था तभी उसकी पहचान नीलू से हुई।नीलू देखने में बहुत खूबसूरत थी।लंबे बाल-कजरारे नैन और उसकी बातों में ऐसा जादू था कि हर कोई बरबस ही उसकी ओर खिंचा आ जाता था।ऐसे में नरेश का उसकी तरफ़ झुकाव होना स्वाभाविक था।नीलू भी सबकी नज़र बचाकर उसे देख ही लेती थी।देखा-देखी के इस खेल के दो महीने बाद काॅलेज़-कैंटिन में नरेश ने अपने प्यार का इज़हार कर दिया और दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा।

         फ़ाइनल एग्ज़ाम के कुछ दिनों पहले से ही नीलू ने काॅलेज़ आना छोड़ दिया।नरेश परेशान…उसकी सहेलियों ने भी कुछ नहीं बताया।वह तो मजनूँ-सा बन गया था..तभी एक दिन नीलू प्रकट हुई।दोनों एक पार्क में बैठे।रोते हुए नीलू ने उसे बताया कि मम्मी-पापा की डेथ के बाद चाचा-चाची ने उसे पाला लेकिन अब उसे घर से निकाल दिया तो उसे अनाथालय में रहना पड़ रहा है।अब वो परीक्षा भी नहीं दे पाएगी।सुनकर नरेश बोला कि मैं फ़ीस भर देता हूँ…तुम परीक्षा दे दो तो वो हँसकर मना करते हुए बोली,” नहीं नरेश..मुझ गरीब के पास ईमानदारी और स्वाभिमान का ही तो गहना है…।” सुनकर नरेश तो उसका कायल हो गया और प्यार-से उसका माथा चूमते हुए बोला,” बस डियर…,दो महीने की बात है…परीक्षा खत्म होते ही मैं डैड का मिल संभाल लूँगा और फिर हम शादी करके हमेशा के लिये एक हो जाएँगे।”

  ” पर तुम्हारे घर वाले…।” नीलू ने चिंता व्यक्त की।

  ” मैं उनका इकलौता बेटा हूँ…ना नहीं करेंगे मेरी जान..।”

      परीक्षा के बाद नरेश ने तीन महीनों में ही मिल को इतनी अच्छी तरह से संभाल लिया था कि लोग दंग रह गये थे।खुद हरिराम भी बेटे का स्किल देखकर चकित रह गये थे।उसकी माँ लता देवी ने विवाह के लिये उसे तस्वीरें दिखानी शुरु कर दी।तब उसने उन्हें नीलू के बारे में बताया और और उसी से विवाह करने की बात कही।आज नरेश नीलू को माता-पिता से मिलाने की बात कहकर उसे अनाथालय छोड़कर घर आ गया।

     अगले दिन ठीक चार बजे नरेश नीलू को अपने माता-पिता से मिलाने ले आया।गौर वर्ण की तीखे नाक-नक्श वाली नीलू साधारण सलवार-सूट में भी लता देवी को बहुत भा गई।हरिराम भी नीलू के सिर पर अपना हाथ रखते हुए बोले,” बहू बनकर आओगी लेकिन बेटी बनकर रहोगी।” 

      महीने भर के अंदर ही हरिराम ने खूब धूमधाम से बेटे का विवाह किया।रिसेप्शन में सबने नीलू की प्रशंसा की और कहा,” राम-सीता की जोड़ी है।”

      सुहागरात पर नरेश ने नीलू को एक डायमंड सेट देना चाहा तो नीलू इंकार करते हुए बोली,” जान…मुझे ये सब नहीं चाहिये..बस तुम्हारा प्यार और विश्वास चाहिए..।” जवाब में नरेश बोला,” अभी भी तुम्हें मेरे प्यार पर शक है…, अब कैसे विश्वास दिलाऊँ…।”

   ” बस मेरी एक बात मान लो…तुमसे विवाह हो जाने के लिये मैंने एक मन्नत मानी थी जिसमें तीन महीने तक हमारे बीच…।” कहते हुए उसकी आँखों से टप-टप आँसू बहने लगे।

   ” बस इतनी-सी बात है मेरी जान…तुम मेरे सामने हो..यही क्या कम है।तुम्हारे लिये मैं तीन महीने तो क्या तीन जनम…।” उसकी बात अधूरी रह गई क्योंकि नीलू ने उसके मुख पर अपना हाथ रख दिया था।

       नरेश पिता के साथ मिल चला जाता और नीलू अपनी सास के साथ खूब बातें करती।लता देवी तो बस बहू का चेहरा देखती और पोता-पोती का ख्वाब बुनने लगती।

      एक दिन की बात है..हरिराम जी नाश्ता करके जैसे ही अपनी कुरसी से उठे कि उन्हें चक्कर आ गया।नरेश ने तुरंत डाॅक्टर को फ़ोन किया..।चेकअप करने के बाद डाॅक्टर ने उन्हें कहा कि उम्र हो रही है..अब आप आराम कीजिये।नरेश ने भी कहा कि हाँ डैड…मैं हूँ ना।

  ” पर तू अकेले…सब कैसे…।” हरिराम जी चिंता जताई।

   ” आप इज़ाजत दें तो मैं ऑफ़िस…।” नीलू ने धीरे-से कहा।

    ” हाँ..ये ठीक रहेगा डैड..इसने भी तो मेरे साथ एमबीए किया है।” चहकते हुए नरेश बोला।न चाहते हुए हरिराम जी को नीलू को जाने की परमिशन देनी ही पड़ी।

       अगले दिन से नरेश के साथ नीलू मिल जाने लगी।जिस कुशलता से नीलू क्लाइंट , स्टाफ़ और वर्कर्स के साथ बात करती थी..देखकर नरेश हैरान हो जाता।घर आकर अपने डैड को बताता कि नीलू ने ये किया..नीलू ने ऐसे डील किया..वगैरह-वगैरह..।

       स्वस्थ होने पर हरिराम जी फिर से मिल जाने के लिये तैयार होने लगे तो नरेश ने उन्हें यह कहकर बिठा दिया कि नीलू है ना।लता देवी ने कहा कि एक दिन बच्चों को ही तो यह सब देखना है तो आज क्यों नहीं।हरिराम को नीलू का मिल संभालना ठीक नहीं लग रहा था लेकिन उन्हें मन मसोसकर रह जाना पड़ा।

        नीलू के काम करने से मिल का प्रोडक्शन बढ़ा..वर्कर्स को बोनस मिलने लगा।अब मिल में नीलू के ही आर्डर फाॅलो होते थें… नरेश बिना पढ़े साइन करता तो नीलू कहती,” एक बार पढ़ तो लो।”

हँसकर कहता,” तुमने पढ़ लिया है ना…।” मिल की तरक्की देखकर हरिराम ने नीलू को पावर ऑफ़ अटाॅर्नी दे दी।

        नरेश को अपने मित्र की शादी में मुंबई जाना था नीलू को भी साथ चलने को कहा लेकिन उसने घर और काम का बहाना बना दिया।

      दो दिनों के बाद नरेश घर लौटा तो हरिराम और लता देवी को स्टोर रूम में बैठे देखा तो दंग रह गया।” नीलू..ये सब क्या है..डैड और माॅम स्टोर रूम में क्यों..?” लगभग चीखते हुए बोला।

  ” बस…तुम्हारे आने का ही इंतज़ार कर रही थी।अब आ गये हो तो उन्हें लेकर कहीं और ठिकाना ढ़ूँढ लो।” नीलू बेहयाई-से बोली।

    नीलू का ऐसा रूप देखकर नरेश आपे से बाहर हो गया।उसे भद्दी-भद्दी गालियाँ दी और बोला,” बदजात..आखिर तूने अपनी औकात दिखा ही दी…नाली का कीड़ा थी तू..मैंने तुझे सहारा..।”

   ” बस…बहुत बोल चुके… तेरी औकात है क्या..!एक सड़कछाप…..।” नीलू चीखी।फिर बोली,”  टेक्सटाइल मिल तेरे बाप की नहीं..मेरे फ़ूफाजी सेठ माणिकचन्द्र जी की थी।तेरा बाप तो फुटपाथ पर बैठकर भीख माँगता था।एक दिन तो उसने तुझे मोहरा बनाया और बोला कि दस दिनों से हम भूखे हैं।फूफाजी को तुझपर दया आ गई…उन्होंने तेरे बाप को अपने ऑफ़िस बुलाया…

काम सिखाया…नौकरी दी…रहने को छत दिया लेकिन तेरा बाप…।” कहते हुए उसने हरिराम की तरफ़ देखा।फिर बोली,” वो तो था लालची-मक्कार..मिल के हिसाब में बहुत हेर-फेर किया…पकड़े जाने पर माफ़ी माँग ली लेकिन कुत्ते की पूँछ कभी सीधी हुई।

      एक दिन फूफाजी ने तेरे बाप को बहुत डाँटा..अपनी करतूत पर शर्मिंदा होने की बजाय तेरा बाप बेहयाई-से हँसते हुए फूफाजी को ही चार बात सुनाने लगा।दिल के मरीज माणिकचन्द्र जी वो सदमा सह न सके और…।बुआजी के दुख पर तेरा बाप मगरमच्छ के आँसू बहा कर बोला,” आप चिन्ता न कीजिये भाभी जी… मैं सब संभाल लूँगा।” तेरे बाप ने ऐसा संभाला कि मालिक ही बन बैठा।बुआजी जब अपना हक माँगने गई तब तेरा उन्हें दुत्कारते हुए बोला,” पहले अपनी औकात देख..फिर बात कर।”

    ” यह सब झूठ है..।” हरिराम जी चिल्लाये।

 ” तो फिर ये क्या है..।” नीलू ने अपने मोबाइल का स्पीकर ऑन कर दिया जिसमें नरेश बता रहा था कि कैसे उसके पिता ने अपने मालिक को धोखा दिया..।नरेश को याद आया कि एक दिन पत्नी के प्यार के नशे में उसने सब सच उगल दिया था जिसे नीलू ने अपने मोबाइल में कैद कर लिया था।

   ” यू…।” कहकर नरेश ने नीलू के हाथ से मोबाइल छीनना चाहा लेकिन नीलू तो सतर्क थी।तभी कमरे से एक अधेड़ महिला और पच्चीस वर्षीय युवती बाहर निकली।

       नरेश को मिल के कागजात दिखाते हुए नीलू बोली,” अब न मिल तुम्हारा है और न ये घर।असली मालिक ये हैं…मेरी बुआ कमला देवी और बहन स्नेहा…।”कहते हुए उसने महिला की ओर इशारा किया।अपनी मालकिन को सामने देख हरिराम आँखें नहीं मिला पा रहा था।

    ” तो तूने हमारे साथ धोखा किया…।” नरेश फिर चीखा।

  ” धोखे का परिणाम तो धोखा ही होता है मिस्टर…।जब बुआजी ने मुझे रोते-रोते सारी बात बताई तभी मैंने उन्हें उनका हक दिलाने का फ़ैसला कर लिया था और तेरे खिलाफ़ जाल बुनना शुरु कर दिया था।एमबीए करने के बाद मैंने तेरे ही काॅलेज़ में एडमिशन लिया..तुझसे नज़दीकियाँ बढ़ाई जो एक ढ़ोंग था….। मोर का पंख लगाकर कौआ मोर तो नहीं बन जाता ना…तेरी औकात वो सड़क थी और सड़क ही रहेगी…अब यहाँ से जाते हो या पुलिस को बुलाऊँ…।” नीलू ने आँखें दिखाते हुए बाहर की ओर इशारा किया।

     हरिराम ने धीरे-से कहा,” चल बेटे..।” 

      तीनों जाने लगे तो कमला देवी को दया आ गई..उन्हें रोकने के लिये कदम बढ़ाने को हुई…नीलू ने रोक दिया,” नहीं बुआ..अब नहीं..।उसी समय नीलू के मम्मी-पापा भी आ गये और घर का माहोल खुशनुमा हो गया।

       कमला जी ने नीलू को वापस जाने नहीं दिया।अब स्नेहा और नीलू मिलकर माणिकचन्द्र की टेक्सटाइल मिल को संभाल रहें हैं।

                                  विभा गुप्ता 

                                    स्वरचित 

#  औकात

              नीलू ने साबित कर दिया कि बेटियाँ किसी से कम नहीं हैं।वक्त पड़ने पर वो हरिराम जैसे मक्कार को मिट्टी में भी मिला सकती है।

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