बेटी के घर जाकर रहने का पाप नहीं होगा – रश्मि प्रकाश: Moral stories in hindi

“ मम्मा.. ये दादी माँ अपना सामान पैक कर कहाँ जा रही हैं…?” अद्दू ने निशिता से पूछा तो वो चौंक गई.

जल्दी से कलछी छोड़ सासु माँ के कमरे की ओर भागी.

“ आप बिना बताए कहाँ जा रही हैं माँ…. ?” निशिता ने पूछा.

“ बहू मुझे राशि के पास जाना है… अब से मैं उधर ही रहूँगी…।” सुमिता जी ने सामान रख अटैची बंद करते हुए कहा.

“ पर अचानक… ऐसा क्या हो गया उन्हें जो आपको जाना पड़ेगा…. कुछ बताइए तो सही….. ना कोई तीज ना त्योहार… ना उनके घर कोई फ़ंक्शन है… फिर आप ऐसे बेटी के घर जाकर कर रहेंगी तो लोग क्या कहेंगे….और आपको तो सबसे पहले लोगों की ही परवाह रहती है।”निशिता आश्चर्य में भर कर पूछी.

“तुम सही कह रही हो बहू …. मैं आजतक यही कहती रही और इस बात को तूल भी देती रही….. सबके समझाने पर भी मैं अपनी ज़िद्द पर अड़ी रही… पर आज ऐसा लगता है मैं कहीं ना कहीं गलत थी…. सुन रितेश को कहा है वो मेरी टिकट करवा कर ड्राइवर के हाथों भिजवा रहा है….. कुछ देर में मैं निकल जाऊँगी…. तुम अपने साथ-साथ घर का भी ध्यान रखना…. दस साल में ये पहली बार हो रहा है कि मैं अपने घर को छोड़कर कहीं और जा रही हूँ ।” सुमिता जी एक लंबी साँस भरते हुए बोलीं.

” पर माँ बताइए तो सही …. राशि दी के घर आपको यूँ अचानक जाने की ज़रूरत क्यों पड़ी…..मुझे तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा ?” निशिता हैरान परेशान हो बोली.

“ बहू अभी नहीं कह सकती….. बस इतना कहूँगी जो मैंने किया और कहा उसके लिए अपनी सास को माफ करना।” सुमिता जी कह ही रही थीं कि अद्दू ने आकर बताया ड्राइवर आ गया है दादी को आने बोल रहा.

सुमिता जी निशिता को आशीर्वाद दे निकल गईं.

राशि के घर पहुँची तो उसकी हालत देख खुद को कोसने लगीं….

“ बेटा जब तुम्हें पता था तुमसे दो छोटे बच्चे नहीं सँभाले जा सकते तो साल भर के भीतर क्या ही ज़रूरत थी करने जल्दी बच्चे करने की…?” सुमिता जी जल्दी से दो माह के दिव्य को गोद में लेते हुए बोलीं.

“माँ सासु माँ ने निकुंज को इतना सीखा पढ़ा दिया कि वो मेरी कोई बात सुनने को तैयार ही नहीं थे…. कहने लगे यार हमें दो बच्चे करने तो है ही…. कर लेते हैं जल्दी…. माँ की उम्र हो रही है वो कहाँ से फिर बाद में हमारी मदद कर पाएगी….. और तुम्हारी माँ तो यहाँ आकर रहने से रही…. और मैं बहुत दिनों के लिए तुम सब को मायके नहीं भेज सकता ….. मेरा मन नहीं लगता…. पता माँ निकुंज विदेश जाने की सोच रहे…. और इसी चक्कर में बच्चे जल्दी कर लिए कि उधर पालने पोसने में झंझट ना हो…. चलो ये तो बताओ तुम कितने दिन रह पाओगी यहाँ….. और अभी भी होटल में ही जाकर रहोगी?” राशि ने सुमिता जी से पूछा.

“ बेटा मैं तेरे पास रहने आई हूँ… इन बच्चों की ख़ातिर ।” सुमिता जी ने कहा

तभी काम करने वाली लता चाय नाश्ता लेकर कमरे में आई और बोली,“ अच्छा किया अम्मा जी जो आप आ गईं….. नहीं तो राशि दीदी दिन पर दिन कमजोर होती जा रही हैं. खाने का सुध नहीं रहता ….. चलते चलते चलते उन्हें चक्कर आ जाता था….. अब मैं पूरे दिन तो घर में रहती नहीं जो सब कुछ सँभाल सकती हूँ….. वो अम्मा तो परेशान हो कर चली गईं….. कहत रहीं अब मुझसे नहीं सँभाले जा रहे दोनों बच्चे….. जाना हो तो मायके जा कर रह लो…. तुम्हारी माँ तो यहाँ आने से रहीं….. काहें अम्मा जी आपको बिटिया के घर आने में क्या ही दिक़्क़त ….. जो बेटी को कष्ट में छोड़ सकती पर आकर तनिक मदद नहीं कर सकती ?” लता अपनी रौ में बोले जा रही थी….. बहुत समय से काम करने और विश्वासी होने की वजह से वो बिना कहे भी घर के हालात देख कर समझ जाती थी.

” जा लता रात के खाने की तैयारी कर ले…. नहीं तो फिर तुझे देर हो जाएगी ।” राशि उसकी बकबक से माँ को परेशान देख बोली

तभी निशिता का फ़ोन आ गया….“ हैलो माँ ठीक से पहुँच गई ?”

“ हाँ भाभी…. माँ ठीक से आ गई….. आप लोग सब कैसे हैं?” इधर से राशि ने पूछा

“ हैलो राशि, हम सब ठीक है…. तुम ठीक तो हो ना और बच्चे…. मम्मी जी बस जल्दी जल्दी में चली गई….. कुछ बताया भी नहीं…. अचानक से क्यों जाना पड़ा उन्हें!” निशिता ने कहा

“ बस समझ लो पहल  बार मेरी माँ को बेटी की परेशानी समझ आई …इसलिए वो बिना देरी किए यहाँ आ गई ।” राशि हँसते हुए बोली

तभी फ़ोन सुमिता जी ने ले लिया और बोली,“बहू अगर तुम्हें भी कोई परेशानी हो अकेले में तो समधन जी को बुला लेना।”

सुमिता जी की बात सुन निशिता की आँखें आश्चर्य से फैल गईं…

निशिता सोच में डूब गई…. कितनी बार ऐसा हुआ था जब मेरा मन करता था…. माँ को यहाँ बुलाकर कुछ दिन अपने पास रखूँ पर सासु माँ एक सिरे से ख़ारिज करते हुए कहती,“ बहू तुम्हारी माँ यहाँ आकर रहेगी तो लोग क्या कहेंगे…. अरे बेटी के घर कोई ऐसे ही रहने चला आता है क्या ….बिना किसी तीज त्योहार के… ना ना तुम्हें जाकर रहना है रहो मायके पर माँ को यहाँ मत बुलाना…..और इन दस बारह सालों में निशिता की माँ बस किसी फ़ंक्शन में शरीक होती और दूसरे दिन चली जाती थी….. खुद सुमिता जी राशि के घर कभी नहीं रूकती थी…. पर आज तक कोई वजह उन्होंने नहीं बताया आख़िर उन्हें बेटी के घर रूकना क्यों नहीं चाहिए ।

“माँ तुम सच में यहाँ रह पाओगी…. मुझे अभी भी विश्वास नहीं हो रहा ….. आख़िर बताओ तो सही तुम बेटी के घर आने पर इतना सोचती क्यों हो…. समय बदल रहा है लोगों की सोच बदल रही है पर तुम ना जाने क्यों ना कभी भाभी की माँ को अपने यहाँ आकर रहने दी ना खुद तुम मेरे पास आकर रहती थी…. ।” राशि ने पूछा

“ बेटा बहुत पहले की बात है…. जब मेरे बाबू जी चल बसे तो मैं अपनी माँ को साथ ले आई….तू तो जानती है मैं अकेली संतान हूँ….. आख़िर माँ कहाँ रहती….. गाँव घर में सब माँ के रहने से बातें बनाने लगे थे…… तेरी दादी भी ताना देने से ना चुकती थी पर तेरे पापा और मैं माँ को अकेले छोड़ने के पक्ष में कभी नहीं रहे….. माँ कभी कभी गाँव जाने की ज़िद्द करती तो मैं साथ लेकर जाती और उसे ले आती थी…माँ अक्सर कहती बेटी मुझे अपने ही घर रहने दे…. पता है लोग मेरे यहाँ रहने से सौ बातें बनाते हैं…. और सही भी तो है बेटी के घर कौन माँ बाप जाकर रहते है….. तू तो बस मुझे गाँव में छोड़ आ…. पता नहीं ये हूक थी या बाबू जी के जाने की गम वो ज़्यादा दिन ना जी सकी…. उसकी मृत्यु का जिसने भी सुना सब यही कहने लगे अरे बेटी के घर कोई कितना ही रह सकता है…. बेचारी बेटी के यहाँ लाचारी में कितने दिन रहती….. यही बात उन्हें खाए जा रही होगी तभी वो चल बसी नहीं तो अच्छी भली कोई कैसे ही परलोक सिधार सकता है ।” कहते कहते सुमिता जी की हिचकी बँध गई

राशि माँ के हाथों को पकड़ कर सांत्वना देते हुए बोली,“ शायद नानी नाना जी के बिना ज़िन्दगी की कल्पना नहीं कर पा रही हो तो चली गई पर तुम इस बात पर इतनी कट्टर कैसे हो गई?”

“ बेटा तब से मुझे लगना लगा शायद बेटी के घर जाकर रहना सही नहीं होता तभी तो लोग बात बनाते हैं….. फिर मेरी माँ शायद बेटी के यहाँ रहने की वजह से घुट घुट कर चल बसी बस यही वजह है जो मैं बेटी के जाकर रहना पाप समझने लगी थी ।” सुमिता जी ने कहा

“ फिर इस बार ये फ़ैसला लेना बहुत कठिन हो रहा होगा ना तुम्हारे लिए….. मेरे पास आकर रहना और तबतक जब तक बच्चे के साथ मैं खुद को सँभालने लायक़ ना हो जाऊँ ?” राशि ने पूछा

“ बेटा ये फ़ैसला सच में कठिन था पर परसों जब समधन जी जाने की बात कर रही थी तू मेरे से बात करते करते फोन काटना भूल गई थी….. मुझे याद है समधन जी ने कहा था…. बहू पता नहीं तुम्हारी माँ ने कौन सा कसम खा रखा है….. जो यहाँ आने से बचना चाहती है…. अरे दो दो बच्चे सँभालने कोई आसान बात तो है नहीं….. दीया को तो मैंने सँभाला ही ना अब जरा चलने फिरने में लाचार हो रही हूँ नहीं कर पाती तो क्या चाहती हो बीमार पड़ कर भी करती रहूँ…… उधर तुम्हारे ससुर जी की भी तबियत ठीक नहीं रहती शहर में आकर उनकी बीमारी और बढ़ जाती हैं….. माना रिश्तेदार है वो देख लेते पर पति की फ़िक्र तो होती ही है ना….. कुछ दिन तुम्हारी माँ आ जाती तो मुझे भी तसल्ली रहती …. उपर से ना तो तुम ठीक से खाती पीती हो जब देखो सिर घुमता रहता है…… अब तुम ही बताओ मैं क्या करूँ…… तब तुमने कैसे कह दिया आप जाइए मम्मी जी मैं सँभाल लूँगी……अब मम्मी यहाँ नहीं आती तो मैं उन्हें ज़बरदस्ती तो आने नहीं कह सकती पता नहीं उनकी क्या मजबूरी रहती हो…..ये सब सुनकर मेरा सिर घुम गया बेटा…… मेरी बच्ची जिसे मैंने इतने नाज़ों से पाला पोसा आज वो तकलीफ़ में है और मैं अपनी घटिया सोच पर अटकी पड़ी हूँ कि लोग क्या कहेंगे…… बस तभी फ़ैसला कर लिया….. बेटी मेरी है तो उसकी तकलीफ़ मैं ही कैसे ना समझूँ….. तेरी सास के जाने के साथ तेरी परेशानी की कल्पना से ही सिहर उठी….. अकेले दोनों को सँभालना आसान नहीं वो भी जब डेढ़ साल का अंतर हो।” कहते हुए सुमिता जी दिव्य को बिस्तर पर सुलाने लगी जो नानी की गोद में हिलाते डुलाते सो गया था

“माँ सच कहूँ तुम्हारे आने से ऐसा लग रहा मैं भी अब चैन से कुछ देर सो पाऊँगी…..।” राशि ने कहा

“ हाँ मेरी बच्ची….. तेरे लिए ही तो अपनी सोच को छोड़कर आई हूँ तेरे पास ।” कह सुमिता जी राशि को सीने से लगा ली

दोस्तों अब तो ये बहुत कम लोग मानते हैं पर अभी भी कुछ लोग ऐसे है जो बेटी के घर जा कर रहने पर संकोच करते हैं….. उन्हें खुद अच्छा नहीं लगता पर ये सोच बदलनी चाहिए….. बेटी भी आपकी ही संतान है जब बेटे के घर रह सकते हैं तो बेटी के घर क्यों नहीं….. अगर किसी की एक ही बेटी हो तो क्या माता-पिता ज़रूरत पड़ने पर बेटी के साथ नहीं रह सकते ….. सोच तो बदलनी होगी अपने बच्चों की ख़ातिर….. इस पर अपनी प्रतिक्रिया से मुझे भी अवगत कराएँ कुछ त्रुटि रह गई हो तो क्षमा करें

धन्यवाद

रश्मि प्रकाश

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!