तकरार रिश्तों का – रोनिता कुंडु : Moral stories in hindi

मम्मी जी…. मैं रोटियां सेकने जा रही हूं, तब तक स्वाति से बोलिए ना के मटर छील दे… ताकि मैं रोटी बनाने के बाद, तुरंत ही सब्जी बना सकूं, पूनम ने अपनी सासू मां केतकी की से कहा 

केतकी जी:   क्यों..? स्वाति क्यों छिलेगी..? तुझे जब पता ही था आज मटर बनेगा, फिर पहले ही क्यों नहीं छिल लिया..? बेचारी अभी-अभी तो बाहर से आई है… थोड़ी देर ही होगी ना.. कोई बात नहीं, चलेगा… रोटियां बनाकर तुम ही छिल लेना मटर, मैं भी छिल देती, पर मेरे जाप का समय हो गया है, मुझे तो जाना पड़ेगा… 

पूनम और क्या ही बोलती..? वह चली गई वापस अपने काम में.. अगले दिन पूनम केतकी जी से कहती है… मम्मी जी.. राशन खत्म हो चला है… लिस्ट बनाकर रख लीजिए… आज शाम को ही मैं और स्वाति बाजार जाकर ले आएंगे… वैसे भी अगले दो हफ्तो तक यह घर देर से आएंगे… ऑफिस में अभी बहुत ज्यादा काम है… 

केतकी जी:   क्या..? तू एक बात बता.. तू जानबूझकर यह सब करती है ना..?

 पूनम हैरान होकर:   पर क्या मम्मी जी..?

 केतकी जा:  तुझे मेरी बेटी का आराम करना खटकता है ना..? जब देखो उसके लिए कोई ना कोई काम निकालती रहती है… पर शायद तुम यह भूल जाती हो, यह उसका मायका है ससुराल नहीं… और अब तो उसकी भाभी भी आ गई है… फिर वह कोई काम क्यों करेगी भला.?

कहां तो तुझे ही उससे कहना चाहिए कि स्वाति तुम बस अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो और कहां तुम कभी उसे मटर छिलवाने को कहती हो, तो कभी बाजार जाकर राशन का थैला लेकर भटकने को… पर एक बात कान खोलकर सुन लो… अपना काम खुद करने की आदत डाल लो, क्योंकि मेरे रहते मैं अपनी बेटी को कोई काम करने नहीं दूंगी… 

पूनम:   अपना काम..? मम्मी जी, यह घर हम सबका है फिर यह काम हम सबका हुआ ना..? मैंने कब कहा कि स्वाति अपनी पढ़ाई के समय पर मेरा हाथ बटाएं… पर जब वह खाली समय में होती है या तो वह फोन देखती है या टीवी… तब तो वह रसोई में मेरी मदद कर सकती है ना..?

मम्मी जी ससुराल में हम उम्र ननद भाभी की ऐसे ही तो सहेली बनती है… पर जब से मैं इस घर में आई हूं आप ऐसे बर्ताव करती है मानो स्वाति इस घर की रानी हो और मैं नौकरानी… यहां तो आप हो उसके लिए… पर उसे भी तो ससुराल जाना है एक दिन… तब तो करना ही पड़ेगा ना 

केतकी जी:   तो तुम्हे उसकी फिक्र करने की जरूरत नहीं… जब उसे करना होगा तब कर लेगी… अभी वह अपने मायके में है तो तुम उस पर हुक्म चलाने की सोचना भी मत… वैसे भी मैंने सुना है तुम्हारी भाभी तुम पर हुकुम चलाती थी… वही तुम यहां करने की सोच रही हो ना..? पर एक बात मेरी कान खोल कर सुन लो, यह तेरा मायका नहीं, स्वाति का मायका है 

पूनम और कुछ नहीं कहती वह और वहां से चली जाती है, क्योंकि उसे समझ आ गया था कि वह अब जो भी कहेगी उसका उल्टा ही केतकी जी सोचेगी.. कुछ महीने बाद स्वाति का रिश्ता तय हो गया और लड़के वाले चट मंगनी पट ब्याह करना चाहते थे… स्वाति का जहां रिश्ता तय हुआ उनके घर में नौकर चाकर थे, तो इस पर केतकी जी ताना मार कर पूनम से कहती है…

देखा इसे कहते हैं भाग्य लक्ष्मी… आज तक मेरी बेटी ने कभी कोई काम नहीं किया और आगे भी उसे काम करने की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी… यह तो बस हुकुम करेगी, तो इस पर स्वाति भी इतराकर कहती है… थैंक यू मम्मी… सच में मैं बहुत लकी हूं जो मेरा जन्म इस घर में हुआ…

वह क्या है ना..? ऐसा भाग्य किसी किसी को ही मिलता है पर आप ना सबके सामने इसका जिक्र ना किया करो… नजर लग जाती है और फिर दोनों मां बेटी हंसकर पूनम की ओर देखने लगती है… 

पूनम उनकी कटाक्ष बखूबी समझ रही थी… पर वह भैंस के आगे बीन बजा कर अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहती थी… दिन बीतते गए और एक दिन स्वाति एक बड़ा सूटकेस लेकर सुबह-सुबह अपने ससुराल से आ जाती है और चीखते हुए अपनी मम्मी से कहती है… मम्मी यह कैसे घर में शादी करवा दी मेरी..?

मुझसे कहते हैं खाना बनाओ… पर मैंने आज तक खाना कभी बनाया है जो अब बनाती… मुझसे कहते हैं नहीं आता तो सीख लो… वहां पर हर काम के लिए नौकर है, पर खाना मेरी सास ही बनाती है और अब वह चाहते हैं मैं उनकी जगह लूं, बड़ी अजीब दकियानूसी सोच है… जब हर काम के लिए नौकर है तो खाना बनाने वाली भी रख लो ना… इसलिए मैं सब छोड़कर यहां आ गई… 

केतकी जी:   बस इतनी सी बात से तू घर छोड़ कर आ गई..? अरे खाना बनाना तो हर औरत को आना चाहिए, क्योंकि औरत अन्नपूर्णा का ही रूप है… तेरी भाभी भी तो हर रोज खाना बनाती है और साथ में पूरे घर का काम भी करती है… हमारे यहां तो कोई नौकर भी नहीं है… 

स्वाति:   उनकी तो आदत है, वह अपने मायके में भी करती थी… पर मेरी नहीं और एक बात अच्छे से सुन लो मम्मी… अगर उन्होंने मुझे किसी काम के लिए बोला तो मैं अपने ससुराल कभी वापस नहीं जाऊंगी… यह कहकर स्वाति अपने कमरे में चली गई 

केतकी जी हैरान बस उसे देखती रही… तभी पीछे से पूनम आकर कहती है… क्या हुआ मम्मी जी..? इतनी परेशान क्यों है..? यह तो आपके ही संस्कार है… फिर तो यह तकरार लाजमी है ना… पता है मेरी भाभी ने कभी मुझ पर हुकुम नहीं चलाया… मैं खुद से ही उनके घर के कामों में हाथ बटाती थी…

इससे दो फायदे होते थे एक तो काम समय से पहले खत्म हो जाता था… दूसरा हम दोनों आपस में बहने जैसा घुल मिल गई और यही वजह है आज जब भी मैं वहां से आती हूं… मेरी मां से ज्यादा मेरी भाभी रोती है… पर अफसोस हैं मम्मी जी… स्वाति के लिए मैं कभी ऐसा महसूस नहीं करती….

वैसे इससे किसी को कोई फर्क भी नहीं पड़ता, मैं यह भी जानती हूं… पर इसे अभी सबसे बड़ा नुकसान स्वाति को ही होने वाला है… जिसकी उसे भनक तक नहीं है और अब उसे समझाया जा सके वह उम्र भी नहीं है… बस अब तकरार होगी… जहां समझदारी के किवाड़ बंद होंगे… वैसे मम्मी जी… इस मामले में अब तो मैं भी चुप नहीं रहूंगी… स्वाति के तकरार ससुराल में भी होंगे और मायके में भी…   

केतकी जी चुपचाप पूनम की बातें सुने जा रही थी और सोच रही थी कि शायद वह अब भी कुछ कर सकती है.. पर उन्हें कौन बताएं नींव जम जाने पर उसमें कोई बदलाव करना नामुमकिन सा होता है.. 

दोस्तों जहां एक परिवार में हम देखते हैं… सब बड़े मेल से रहते हैं वही किसी-किसी परिवार में तकरार चलती ही रहती है… वह इसलिए होता है क्योंकि हम सदियों से चली आ रही परंपरा को आँख बंद कर निभाते आ रहे हैं… बहु है तो घर की पूरी जिम्मेदारी मशीन की तरह बिना थके निभाएगी, बहु देर तक सो ले तो महाभारत छिड़ जाएगी, पर बेटी सोए तो थकी है बिचारी…. बहु अपनी मर्जी का करने से पहले सबसे 10 बार पूछेगी, पर बेटी की मर्जी सबसे पहले पूछी जाएगी और जब तक यह भेदभाव है तकरार तो चलती ही रहेगी… 

धन्यवाद 

#तकरार 

रोनिता कुंडु

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