साधारण – डॉ.अनुपमा श्रीवास्तवा 

मार्केट जाते समय पति ने सीमा को टोका -” ध्यान रखना कोई कमी नहीं होनी चाहिए शादी की खरीदारी में। सारा पसंद मेरी बहन की होनी चाहिए। हाँ और एक बात… अपने लिये मत मार्केटिंग करने लगना ।जो भी पहले से है  उसी से काम चला लेना।  स्वीटी को जिस भी चीज की जरूरत है … Read more

राखी – डॉ.अनुपमा श्रीवास्तवा

“माँ…सुबह-सुबह क्या खटर -पटर कर कर रही हो किचेन में?” “अरे बेटा कुछ नहीं, तू बहन के घर जा रहा है…सोचा कुछ अच्छा बना देती हूं ले जाने के लिए। दो-दो खुशियां हैं इसीलिए। “दो दो खुशियां?” “हाँ और नहीं तो क्या! एक तो राखी का दिन और दूसरा एक साल बाद तू बहन के … Read more

धोखा –  मिठू डे

ये रात को हेड्क की दवाई खाने के बाद नींद बड़ी अच्छी आती हैं इतनी की काम पर जाने के लिए सुबह नींद से जागना बड़ा दुशवार सा लगता है ।पिछले एक महीने कि तरह आज लड़का फिर देरी से आफिस पहुंचा।     आफिस पहुचते ही रोज की तरह किच-किच शुरू हो गई । किसी तरह … Read more

कटहल का पेड़ – भगवती सक्सेना गौड़

अक्षरा कई वर्षों के बाद मई के महीने में मायके आयी थी। सबलोग बड़ी आवभगत कर रहे थे, भई अकेली बिटिया थी, परिवार की, ये तो होना ही था। चाचा के दो बेटे थे, चाची भी दिनभर में कई बार विभिन्न पकवान बना कर उसे खिलाने आती थी। फिर भी, पापा की नजरें उंसकी उदासी … Read more

मुंह दिखाई- संजय सहरिया

चावल भरे कलश को आंगन में बिखेर कर कृतना ने दुल्हन के रूप में ससुराल में पहला कदम रखा था.चाची सास सन्ध्या देवी ने कृतना के दोनों पांव कुमकुम भरी थाल में रखवाए.कुमकुम रंगे पैरों से कदमो के निशान बनाती कृतना जैसे जैसे घर के अंदर आ रही थी वेसे वेसे सारे मेहमान तालिया बजा … Read more

अब मैं पैसे नहीं कमाता रिश्ते कमाता हूं 

एक बार मैं अपने एक मित्र का तत्काल केटेगरी में पासपोर्ट बनवाने पासपोर्ट ऑफिस गया। लेकिन जैसे ही हमारा नंबर आया बाबू ने खिड़की बंद कर दी और कहा कि समय खत्म हो चुका है अब कल आइएगा। मैंने उससे मिन्नतें की,उससे कहा कि आज पूरा दिन हमने खर्च किया है और बस अब केवल … Read more

मैं हूँ ना – मंगला श्रीवास्तव

बहुत रात बीत चुकी थी । जुगनी अपने तीनों बच्चों के साथ गहरी नींद के आगोश में जा चुकी थी । कितने ही घरों में काम करती थी मरियल सी जुगनी अपने बच्चों केलिए व अपने घर को चलाने की खातिर ,और शाम को थककर इतना चूर हो जाती थी ,की उसको अपना कोई होश … Read more

एक नई उम्मीद :दिल से बंधी डोर-नीरजा नामदेव

श्रीति और श्रेयस को देखकर यही लगता था कि दोनों एक दूसरे के लिए ही बने हैं ।दोनों के विवाह को लगभग 8 वर्ष हो चुके थे।दो बच्चों के माता-पिता बनकर उनका परिवार पूरा हो गया था। उनका छोटा सा एक सुखी परिवार था।     नया वर्ष उनके लिए दुगुनी खुशियों  से भरा  होता था क्योंकि … Read more

वसीयत – संगीता दुबे

 कृति को कहां पता था कि अबकी बार डैडी जो अस्पताल जाएंगे तो लौट कर नहीं आएंगे। वह पिछले एक साल तेरह दिनों तक डैडी को लेकर अस्पताल के चक्कर लगाती रही। डैडी अस्पताल जाते, ठीक होते और फिर वह लेकर उन्हें घर आ जाती। लेकिन अबकी बार डैडी की तबीयत बिगड़ती जा रही थी। … Read more

दिल तो आख़िर दिल है न – कामेश्वरी कर्री

मानिनी जैसे ही यूनिवर्सिटी के गेट के अंदर आई तभी पीछे से किसी ने पुकारा मानिनी… उसने पलट कर देखा तो सूर्या था । उसकी आँखें किसी को ढूँढ रही थी ।उसने कहा — चंद्रिका नहीं आई । मानिनी और चंद्रिका एक साथ कॉलेज आते थे । वे दोनों एक ही कॉलोनी में रहते थे … Read more

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