साधारण – डॉ.अनुपमा श्रीवास्तवा 

मार्केट जाते समय पति ने सीमा को टोका -” ध्यान रखना कोई कमी नहीं होनी चाहिए शादी की खरीदारी में। सारा पसंद मेरी बहन की होनी चाहिए। हाँ और एक बात… अपने लिये मत मार्केटिंग करने लगना ।जो भी पहले से है  उसी से काम चला लेना।  स्वीटी को जिस भी चीज की जरूरत है वह सब हमें पूरा करना है।”

सीमा ने हाँ में सिर हिलाया और ननद के साथ मार्केट निकल गई।  कमरे में बिछावन पर लेटी “माँ” बेटे और बहू की बात सुनकर बहुत खुश हुई  कि एक भी कमी नहीं होने देता है भाई बहन की ख्वाहिश पूरी करने में। जब से पिता गुजरे हैं सारा घर परिवार का भार अपने कंधे पर ले रखा है । मेरा लाल तो हीरा है हीरा! मेरे जैसा नसीब हर माँ को मिले ।

              लगभग दो घंटे बाद दोनों भाभी- ननद बाजार से घर आई ।माँ दौड़ कर दरवाजे पर गई। बेटी का लटका हुआ मूहँ देख कर बोली-” क्या हुआ थक गई है क्या!”

नहीं माँ जी स्वीटी को कुछ भी पसंद ही नहीं आ रहा था।दुकानदार एक से एक साड़ी और लहंगा दिखा रहा था पर जाने क्यों इसे क्या चाहिए था।सीमा पसीना पोछते हुए बोली।

                स्वीटी मूहँ बनाते हुए बोली-” मुझे आपके जैसा लहंगा चाहिए था। “

अरे ,तो इसमें परेशान होने की क्या बात है भाभी वाला ही ले लेना। सीमा कुछ बोलती उसके पहले ही माँ बोल पड़ी-” अब बहू लहंगा लेकर क्या करेगी।”

“जी माँ  कोई बात नहीं मैं दे दूँगी स्वीटी को अपना लहंगा।”

और हाँ मुझे आपका वाला बनारसी साड़ी भी चाहिए भाभी उसका कलर मुझे बहुत पसंद है। देंगी न!

सीमा कुछ नहीं बोल पाई। बस हाँ में गर्दन हिला दिया।

सारी तैयारियाँ जोड़ों से हो रही थी। भाई एक कमी नहीं छोड़ना चाहते थे। एक दो छोड़कर कुछ गहने भी सीमा के पति ने बहन के लिए सीमा से यह कह कर ले लिए थे कि बाद में बनवा देंगे।

देखते- देखते शादी की तारीख भी आ गई ।सारे मेहमान आये तैयारी देख सभी एक स्वर में भाई का गुणगान करने लगे। शादी बड़े धूमधाम से हो गई। बिदाई के समय स्वीटी के दूल्हे ने हाथ जोड़ते हुए सभी को अपने घर रिसेप्शन में आने के लिए आग्रह किया। खास कर भाभी को आने के लिए मनाया।



सीमा जाना तो नहीं चाहती थी पर पति के जोर डालने पर तैयार हो गई। शाम के समय सभी स्वीटी के ससुराल पहुंचे। उसका घर दुल्हन की तरह सजाया गया था। सीमा को आत्मिक प्रसन्नता हुई कि चलो सारा मेहनत सफल हो गया। स्वीटी अपने सुंदर से सजे कमरे में ढेर सारी  जेठानी और ननद के बीच बैठी हुई थी ।सीमा को देखते ही उठ खड़ी हुई। सीमा लपक कर उसके गले लग गई।

“भाभी आपको आना ही था तो थोड़ा अच्छे से पहन ओढ़ कर आती। ना ढंग का जेवर है ना साड़ी। पूरे मेहमानों में आप ही साधारण दिख रही हैं। “

अनायास ही सीमा की आँखें दबदबा गई। प्यार से जो बांहें स्वीटी के गले में डाले थी वह ढीली पड़ने लगी।

“अच्छा बेटा तो तुम्हें भाभी के साधारण पहनावे पर शर्म आ रही है इसके असाधारण काम नहीं याद रहे जिसके बदौलत तुम अभी यहाँ हो ।”

सीमा के पति  सीमा के कंधे पर हाथ रखते हुए बोले -” सीमा नहीं रोना नहीं… चलो हमारा कर्त्तव्य यहीं तक था “।परिवार वालों को समझ में ही नहीं आया कि क्यों इतनी जल्दी भाई- भाभी वापस चले गए।

स्वरचित एवं मौलिक

डॉ. अनुपमा श्रीवास्तवा

मुजफ्फरपुर, बिहार

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