वसीयत – संगीता दुबे

 कृति को कहां पता था कि अबकी बार डैडी जो अस्पताल जाएंगे तो लौट कर नहीं आएंगे। वह पिछले एक साल तेरह दिनों तक डैडी को लेकर अस्पताल के चक्कर लगाती रही। डैडी अस्पताल जाते, ठीक होते और फिर वह लेकर उन्हें घर आ जाती। लेकिन अबकी बार डैडी की तबीयत बिगड़ती जा रही थी।

       कृति को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे, किससे जाकर अपने मन की व्यथा कहे। घर में ऐसा कोई बड़ा नहीं था जिसके आगोश में सर रखकर वह रो सके। घर में  इस समय एकमात्र कोई बड़ा था तो वह थी  बीमार मां । उसके सामने जाकर रोए तो मां की तबीयत खराब होगी। दोनों बड़ी बहनें अपने घर परिवार में रमी थीं तो छोटी बहन भी अपनी नौकरी और गृहस्थी में व्यस्त  थी। और इकलौता भाई पिछले पांच वर्षों से अमेरिका में नौकरी कर रहा था। जिस पिता से वह अपने मन की व्यथा कहती थी, वह तो आज अस्पताल में पड़े है।

        अध्यापक पिता ने कृति ही नहीं सभी बच्चों को संस्कार दिए थे। लेकिन कृति उनकी आन-बान-शान थी। कृति अपने अम्मा और डैडी के लिए भगवान से भी लड़ने को तत्पर हो जाती। अध्यापक पिता और अपने अध्यापकों द्वारा प्राप्त ज्ञान से कृति मुखर, स्पष्टवादी और अन्याय के खिलाफ लड़ने वाली लड़की थी। सही को सही और ग़लत को ग़लत कहना उसकी आदत थी, *इसलिए लोगों को उसका यह नजरिया खटकता था।* ख़ैर कृति को इसकी ज़रा भी परवाह नहीं थी। उसे लगता था कि ईश्वर ने हमें इस संसार में भेजा है कुछ जिम्मेदारियों के साथ। कुछ रिश्तों के साथ। उन जिम्मेदारियों, उन रिश्तों को निभाने में वह ज़रा भी कोताही नहीं बरतती थी। लेकिन यह भी कटु सत्य है कि उसके अपने ही रिश्ते उससे छल और कपट करते रहते *जिससे उसमें विद्रोह का भाव प्रबल होता जा रहा था।*

     कृति के इस विद्रोही भाव ने उसे मजबूत बनाया और समाज का सामना करने की शक्ति भी दी। पिता के अस्पताल में भर्ती होते ही उसने डॉक्टर से कहा कि डॉक्टर साहब जितना भी खर्च हो, लेकिन  मेरे डैडी को बचा लीजिए।जितने दिन तक मेरे डैडी हैं उतने दिन तक मैं पिता की पुत्री कहलवाऊंगी। लड़की के लिए पिता क्या होता है, यह सिर्फ एक लड़की ही समझ सकती है। पिता उसके लिए वरदहस्त-वटवृक्ष होता है।

        अस्पताल में पिता के भर्ती होने पर कृति अपनी नौकरी, अपने परिवार को संभालते हुए अस्पताल में पिता को संभालने की भी जिम्मेदारी उठाती। उसकी इस जिम्मेदारी में उसकी बड़ी दीदी और उनके दो लड़के सहयोग करते थे। उसे लगता  कि डैडी धीरे-धीरे ठीक हो जाएंगे ,लेकिन उनकी तबीयत बिगड़ती जा रही थी। कृति एक स्वाभिमानी लड़की थी। किसी के आगे हाथ पसारना उसका स्वभाव नहीं था। यहां तक कि वह ईश्वर के दरबार में जाकर भी भिक्षा नहीं मांगती थी। हां, वह इतना जरूर कहती – ” हे प्रभु तूने मुझे चुनौतियां दी हैं। मैं उन्हें स्वीकार करती हूं। बस उन चुनौतियों का सामना करने की शक्ति तू मुझे प्रदान कर। तू अगर मेरी परीक्षा लेना चाहता है तो मैं उस परीक्षा में सफल होकर दिखाऊंगी।” और वह लग जाती अगली चुनौती का सामना करने में।

      डॉक्टरों ने कह दिया कि पिता की तबीयत में सुधार नहीं हो रहा है, इन्हें किसी दूसरे अस्पताल में ले जाएं जहां इनके इलाज के लिए एडवांस सुविधाएं मौजूद हों। कृति ने सोचा कि डैडी को घर के ही नज़दीक  किसी अस्पताल में एडमिट करवाया जाए जिससे बूढ़ी मां भी उन्हें देखने के लिए आ सके।  पहले तो कृति ने जाकर अस्पताल में डॉक्टर को पूरी फाइल दिखाई और फिर उनके लिए बेड की व्यवस्था करवाई। इस दौरान उसकी दूसरी दीदी और बड़ी दीदी का लड़का अस्पताल में डैडी की देखभाल के लिए अस्पताल में मौजूद थे। इसी बीच घर की दुल्हन सरिता भी अपने बच्चों के साथ ससुर के अंतिम दर्शन के लिए अमेरिका से आ चुकी थी। लेकिन ट्रंप प्रशासन की नीतियों के चलते भाई नहीं आ सका था। हां, इतना जरूर था कि पिता का हाल-चाल जानने के लिए वह पिता के मोबाइल पर फोन करता और उन्हीं से बात करके रख देता। वह घर के किसी अन्य सदस्य से ना बात करता था और ना ही डॉक्टर से। डैडी से उनकी तबीयत पूछने पर  डैडी बोलते कि मैं ठीक हूं। डैडी तो पेशेंट थे, उन्हें तो कोई नहीं कह पा रहा था कि आप ….!!!

ख़ैर, भाई किसी से बात नहीं करता तो कृति भी उससे कुछ नहीं कहती। कृति को लगता कि अगर वह भाई से कहेगी कि डैडी की तबीयत बिगड़ती जा रही है तो भाई यह भी कहसकता है कि वे तुम्हारे भी डैडी हैं। तुम्हें उनके लिए करना चाहिए और फिर उसे अगर बूढ़े माता-पिता की चिंता होती तो अमेरिका जाने से पहले वह बहनों के पास जाकर कहता कि मेरी अनुपस्थिति में मेरे माता-पिता की जिम्मेदारी मैं आप लोगों को सौंपकर जा रहा हूं। हां, सिर्फ छोटी बहन स्वाति सारी ख़बरें अमित को देती रहती थी। कृति का अपने छोटे भाई अमित से छत्तीस का आंकड़ा था क्योंकि भाई थोड़ा उद्दंड था। कृति को लगता कि वह छोटा है, छोटा बन कर रहे। एकलौता है तो क्या सिर पर नाचेगा और अमित को लगता था कि वह छोटा है, एकमात्र भाई है इसलिए उसका हर चीज पर हक़ बनता है। घर में उसकी ही चलनी चाहिए। इसी बात को लेकर दोनों में वैचारिक मतभेद अब तक बने हुए थे।

         कृति ने डैडी को नजदीकी अस्पताल में भर्ती करवाया जिससे बीमार मां और दोनों छोटे पोते उन्हें देखने अस्पताल में आ सकें। मां कृति से एक ही बात कहती कि बेटा इस समय तुम नहीं करोगी तो कौन करेगा? और फिर कौन इतना काबिल है जो तुम्हारे पिता के लिए अस्पताल के चक्कर लगा सके? कृति को लगता  कि मां को केवल उस पर ही यकीन है। इसलिए वह जी जान से पूरी कोशिश कर रही थी कि उसके पिता शीघ्रातिशीघ्र  ठीक होकर घर लौट आएं, जबकि उसे पता था कि उसके पिता शनै: शनै: काल के गाल में समाते जा रहे हैं।

      दूसरी तरफ नौकरी और परिवार का बोझ भी उस पर पड़ रहा था। परिवार, नौकरी और अस्पताल में डैडी- इन सब को संभालने की शक्ति कृति में न जाने कहां से आती जा रही थी।

          अस्पताल में भर्ती पिता उसे  बार-बार घर ले चलने के लिए  कहते। लेकिन उसे डर था कि घर ले जाने पर पिता की तबीयत और बिगड़ सकती है। यहां अस्पताल में डॉक्टर हैं, नर्स हैं, दवाइयां हैं। घर में बूढ़ी और रुग्ण मां, बहू और उसके दो बच्चे।  उस पर बीमार पिता का बोझ। और पिता भी मरणासन्न अवस्था में। वह चाह कर भी पिता को घर ले जाने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी। डैडी अब ऑक्सीजन के भरोसे जीवित थे। 12 अगस्त रविवार को उसने डैडी को अंतिम बार अपने हाथों से खिलाया था। ऑक्सीजन की मशीन हटाकर बमुश्किल दो निवाला खिला पाई थी कि उनकी सांस फूलने लगी और उसने तुरंत ही फिर से मशीन लगा दिया। अगर वह थोड़ी भी देर करती तो अनर्थ हो जाता ।उनकी हालत देखकर कृति के हाथ-पांव फूलने लगे थे। अब डैडी की नाक में नली लगाकर लिक्विड दिया जाने लगा।अब वे बोल नहीं पा रहे थे क्योंकि बोलने के लिए ऑक्सीजन की मशीन हटाना जरूरी था। इसलिए वे लिख कर बात कर रहे थे।

       हिम्मत करके कृति ने डैडी से दो बातें पूछीं, जो ईश्वर किसी संतान के नसीब में ना लिखे। कृति का दिल बैठा जा रहा था‌। उसने कभी ख़्वाब में भी नहीं सोचा था कि जीवन में ऐसे पल भी आएंगे कि जो उसका जीवन दाता है, उसकी मुखाग्नि- क्रिया की बातें उससे पूछनी पड़ेंगी। कितना कठोर और कितना भावुक पल था। कृति कमज़ोर पड़ रही थी लेकिन उसने ख़ुद को संभाला- “नहीं,जिस पिता ने मुझ पर हमेशा यकीन किया है उसके लिए करने की बारी अब मेरी है।  केवल कहने के लिए बेटा और बेटी में फ़र्क है। मैं साबित कर दूंगी कि बेटियां, बेटों से  कहीं ज़्यादा काबिल होती हैं।

       कृति ने खुद को संभालते हुए डैडी से पूछा कि अगर किन्हीं कारणों से भाई अमेरिका से लौट कर ना आ सके तो उनकी मुखाग्नि क्रिया कौन करे? यह कितना क्रूर सवाल था!! मरणासन्न अवस्था में बिस्तर पर पड़े पिता से उनकी मुखाग्नि की बात पूछी जा रही थी!!क्रूर काल ने कृति के जीवन में यह दिन भी दिखाया कि जिस पिता ने उसे बहादुर लड़की बनाया आज उस बहादुरी का उपयोग इस तरह के सवालों के लिए कर रही है। पिता ने कागज़ पर  तीन नाम लिख दिए- दीपक, विनय और प्रियम। दीपक और विनय उसकी  बड़ी दीदी के बेटे थे, जिन्होंने पिछले एक वर्ष से अस्पताल में उनकी सेवा की थी और प्रियम उनका अपना सबसे प्रिय नाती और कृति का बेटा।  हिम्मत करके कृति ने एक और अंतिम सवाल पिता से पूछा कि आप की अंतिम क्रिया कहां होनी चाहिए? मुंबई में या बनारस? पिता बोल नहीं सकते थे तो कृति के बनारस बोलते ही उन्होंने हामी में जवाब दिया। इसका अर्थ यह था कि अंतिम क्रिया बनारस के मणिकर्णिका घाट पर होनी चाहिए। कृति को ऐसे दो क्रूर सवालों का सामना करना पड़ा कि अपने वटवृक्ष पिता के लिए। अगर उसका भाई यहां होता तो शायद उसे ऐसे सवालों का सामना नहीं करना पड़ता। लेकिन फिर वह अपने आपको समझाती है कि शायद इसीलिए ईश्वर ने उसे इतना मजबूत बनाया है‌‌। मां और डैडी कई बार कहते- “कृति आप बेटी बनकर क्यों पैदा हुईं? बेटा बनकर क्यों नहीं पैदा हुई? इतनी बहादुर बेटी को मुझे दूसरे के घर भेजना पड़ा। बेटा होती तो मेरे ही घर पर रहती।”

         16 अगस्त की शाम को पिताजी ने अंतिम सांसें लीं। इस दुनिया से कूच करने के पहले कृति और मां दोनों डैडी के पास थे। असहाय डैडी को देखकर मां बिलखती और कृति अपने बहादुर डैडी से कहती -” डैडी, यू आर माई डैडी.” तो वे भी हामी भरते हुए सिर हिला देते। फिर वह कहती – डैडी, मेरी हथेली को ज़ोर से दबाइए। जैसे बचपन में जब मैं आपकी उंगलियां पकड़कर चलती थी तो आप दबा देते थे। कृति चाहती कि डैडी उसी शक्ति, उसी बल से उसके हथेलियों को दबाएं। लेकिन उनका शरीर तो लगभग बेजान हो चुका था। वे उसकी हथेलियों को दबाने की भरसक कोशिश कर रहे थे। कृति बार-बार कह रही थी-” डैडी और  ज़ोर से।” लेकिन डैडी के शरीर में अब वह शक्ति कहां थी!!

           मरीजों से मिलने का समय ख़त्म होने पर  केवल एक व्यक्ति पेशेंट के साथ रह सकता था। कृति दिनभर अस्पताल में थी और वह थक कर चूर हो गई थी। उसने सोचा कि उसे घर जाना चाहिए। घर में बच्चे उसका इंतज़ार कर रहे होंगे। सुबह फिर उसे अस्पताल आना है। यह सोचकर वह अस्पताल से घर के लिए निकली। स्टेशन पहुंची ही थी कि अस्पताल से विनय का फोन आया कि मौसी नाना जी नहीं रहे।

      सुनकर कृति की आंखों में आंसुओं की झड़ी लग गई। बचपन से ही जिसका हाथ पकड़ कर उसने चलना सीखा।वह पिता आज उससे अपना हाथ छुड़ाकर इस दुनिया से सदा के लिए कूच कर चुका था। उसे आज पहली बार लग रहा था कि वह अनाथ हो गई। और वह चाह कर भी कुछ नहीं कर पाई। इस बात का अपराध बोध उसे हो रहा था। डैडी की मृत्यु की ख़बर बिजली की तरह पूरे शहर में फैल गई।  तेज़ बरसात के मौसम में भी परिजनों के साथ- साथ, रिश्तेदारों, उनके विद्यार्थियों  और इष्ट मित्रों का हुजूम उनके अंतिम दर्शन के लिए उमड़ पड़ा।

          कृति के सामने अगली चुनौती थी पिता के शरीर को बनारस के मणिकर्णिका घाट ले जाने की। उसने पिता से वादा किया था और इस तेज़ बारिश में भी उसने वे सारे इंतज़ाम किए। अपने पिता के शरीर को वह न केवल मणिकर्णिका घाट बल्कि उनकी जन्मभूमि, उनके पैतृक गांव में भी ले गई। पिता के शरीर को लेकर जैसे ही हवाई जहाज उतरा कृति का दिल धड़कने लगा। पिता के शरीर को लेने के लिए उसके क़दम आगे बढ़ ही नहीं रहे थे।उससे ऐसा लग रहा था कि अब उसके पिता उसके साथ कुछ ही घंटे हैं। वह रोना चाहती थी। लेकिन जिसके आगोश में छुपकर कृति रो लेती थी , वह उसे अकेला छोड़कर चला गया था।

      पिता के शरीर को लेकर कृति जैसे ही गांव में पहुंची उनके अंतिम दर्शन के लिए बुआ, काकी, रिश्तेदारों, उनके बचपन के मित्रों, उनके विद्यालय के कुछ सहपाठियों का हुजूम उमड़ पड़ा। इस तेज बरसात में दूर-दराज के गांव के लोग भी उनके अंतिम दर्शनार्थ आए क्योंकि उनका शरीर हर हज़ारों किलोमीटर की यात्रा करके गांव पहुंचा था। इसके बाद पिता का शरीर उस यात्रा के लिए निकल पड़ा जहां से कोई लौटकर नहीं आता।

          पिता की तेरहवीं और अन्य क्रियाएं  करके कृति जब शहर को लौटी तो अमेरिका से उसके भाई अमित ने फोन करके कृति से इतना ही कहा कि डैडी अपनी वसीयत मेरे नाम कर गए हैं और भाड़े का पैसा जो तुमने ले लिया है वह मेरी पत्नी को दे दो।

           इतना सुनते ही कृति ने मन में सोचा कि यह कैसा पुत्र और कैसा भाई है? इसे पिता के देहांत के बाद वसीयत और भाड़े का होश तो है, लेकिन एक महीना तीन दिन तक पिता अस्पताल में भर्ती रहे। उसने कृति से यह जानने की कोशिश भी नहीं की कि अस्पताल और दवाइयों के लिए पैसा कौन खर्च कर रहा है? उस भाई ने अगर अस्पताल के चक्कर लगाते समय कृति को सांत्वना के दो शब्द के लिए फोन किया होता तो भी उसे अच्छा लगता। लेकिन आज उसका फोन आया तो पिता की वसीयत और भाड़े के लिए। जबकि भाड़े की असली हक़दार मां अभी जिंदा थी। वाह रे कलयुग!!!

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!