एक नई उम्मीद :दिल से बंधी डोर-नीरजा नामदेव

श्रीति और श्रेयस को देखकर यही लगता था कि दोनों एक दूसरे के लिए ही बने हैं ।दोनों के विवाह को लगभग 8 वर्ष हो चुके थे।दो बच्चों के माता-पिता बनकर उनका परिवार पूरा हो गया था। उनका छोटा सा एक सुखी परिवार था।

    नया वर्ष उनके लिए दुगुनी खुशियों  से भरा  होता था क्योंकि उनकी शादी की सालगिरह और नववर्ष एक ही दिन थी ।वे हर वर्ष धूमधाम से इस दिन को मनाया करते थे ।

आज फिर  वही दिन है।श्रीति ऑफिस में उदास बैठी बीते हुए दिनों को याद कर रही है। दो साल पहले आज ही के दिन श्रेयस शाम को ऑफिस से वापस आ रहा था और श्रीति उत्सव की पूरी तैयारियां करके तैयार होकर उसके इंतजार कर रही थी ।अंधेरा बढ़ता जा रहा था। उसके दिल की धड़कन भी बढ़ रही थी। अचानक फोन आया उसने दौड़ कर फोन देखा। श्रेयस के मित्र विपुल का फोन था ।उसने बताया कि श्रेयस का एक्सीडेंट हो गया था और वह हॉस्पिटल में है।श्रीति तो सुनते ही जैसी हालत में थी वैसे ही दौड़ती भागती हॉस्पिटल पहुंची। श्रेयस की हालत गंभीर थी। सिर पर बहुत गहरी चोट आने के कारण वह कोमा में चला गया था ।श्रुति की तो दुनिया ही अंधेरी हो गई ।वह दिन रात श्रेयस के ठीक होने की भगवान से प्रार्थना करती ।श्रेयस के माता-पिता गाँव से आ गए और साथ ही रहने लगे जिससे श्रीति और बच्चों का मनोबल बढ़ गया।श्रेयस का फर्नीचर का बिजनेस था जिसे श्रीति ने संभालना शुरू किया। परेशानी तो उसे बहुत हुई लेकिन धीरे-धीरे उसने काम सीखा ।किसी तरह से जिंदगी पटरी पर आ गई थी। लेकिन श्रेयस कब आंखें खोलेगा सब इसी का इंतजार कर रहे थे।

  लगभग सालभर बाद श्रेयस ने आंखें तो खोली ,चलना फिरना भी शुरू किया लेकिन वह किसी को भी पहचान नहीं पाता था। यह बात  उन सब से सहन नहीं हो रही थी। सब उसे तरह-तरह से पुरानी बातें याद दिलाने की कोशिश करते रहते ।बच्चे अपने पापा को बहलाते। उसके माता पिता उसके  बचपन से लेकर अभी तक की कितनी ही बातें और घटनाएं उसे याद दिलाते, फोटो दिखाते लेकिन श्रेयस पर कोई भी असर नहीं हो रहा था। उसकी याददाश्त वापस नहीं आ रही थी। डॉक्टर ने कहा था कि अचानक ही श्रेयस की याददाश्त वापस आएगी हम अभी कुछ नहीं बता सकते बस उम्मीद कर सकते हैं।श्रीति रोज सुबह इसी उम्मीद से जागती की आज श्रेयस उसे पुकारेंगे लेकिन उसकी उम्मीद पूरी नहीं होती।वह रात में चुपके चुपके रोती।

     इन्हीं सब बातों को श्रीति याद कर रही थी ।उसे याद आया कि वह आज के दिन सोलह सिंगार करती थी ।श्रेयस हमेशा से कहते थे कि तुम हमारी हर सालगिरह पर सोलह सिंगार करके तैयार हुआ करो। मुझे तुम्हें दुल्हन के रूप में ही देखना है। लेकिन पिछले 2 सालों से  श्रुति इस बात को भूल ही गई थी।

आज घर आकर हल्दी का उबटन लगाया।हाथों में मेहंदी और पाँव में आलता लगाया।अपने शादी का जोड़ा निकाला और गहने निकाले।उसने पहले की तरह ही सोलह सिंगार किया और घूंघट करके धड़कते हृदय से श्रेयस के पीछे जाकर खड़ी हो गई। श्रेयस को हल्दी, मेहंदी की खुशबू और  पायलों की आवाज जानी पहचानी सी लगी।उसने पलटकर श्रीति को देखा ।धीरे से उसका घूंघट उठाया। उसकी आंखों में कुछ पहचान के चिन्ह उभरे  और उसने अपनी आवाज में उसे श्रीति कहा।

     यही पुकार सुनने के लिए तो श्रीति इतने दिनों से तरस रही । उसने श्रेयस को गले से लगा लिया। आज उसे एक नई उम्मीद मिल गयी कि श्रेयस की याददाश्त  वापस आ जाएगी। उसने यह बात डॉक्टर को बताई ।डॉक्टर ने कहा यह बहुत ही अच्छी बात है।वह धीरे-धीरे सब को पहचानने लगेंगे । यह एक नई उम्मीद है कि अब जल्द ही श्रेयस  ठीक हो जाएंगे ।श्रीति ने अपने सास ससुर और बच्चों को यह  खुश खबरी सुनाई।पूरे घर में खुशहाली छा गई। लग रहा था आज उनके जीवन में सच में नया साल नई उम्मीद लेकर आया है।

 

 

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