बेटी घर की शान, – गोविन्द गुप्ता 

सेठ रोशनलाल शहर के बहुत बड़े आदमी थे,पृरे शहर में उनका मॉन सम्मान होता था, बड़ा खानदान था सेठ जी भी पांच भाई थे, सभी का विवाह हो चुका था , भरा पूरा घर चारो भाइयो की संतानें भी थी सबके एक एक पुत्री थी पर रोशनलाल के चार पुत्र थे, उन्हें बहुत खुशी होती … Read more

आज का सत्यवान – डॉ पारुल अग्रवाल 

डॉक्टर दिनेश चौहान अपनी पत्नी और 6 साल के बच्चे के साथ खुशी खुशी जीवन बिता रहे थे, सब अच्छा चल रहा था। पर कहते हैं ना की समय का चक्र कब घूम जाए पता नहीं चलता।किसको पता था कि कोरोना की दूसरी लहर इतनी भयावह होगी जो सुरसा के मुख की तरह अपने अंदर … Read more

एक-दूजे के लिए – विभा गुप्ता

बैरी.. पिया…बड़ा….          ” तुमसे शादी करके मैं बहुत पछता रहा हूँ।अब तुम्हारे साथ मैं एक मिनट भी नहीं रह सकता।” चीखते हुए दीपक ने कहा। ” तुम जैसे झूठे इंसान के साथ रहने का मुझे भी कोई शौक नहीं है।” दीपा ने भी उसी लहज़े में दीपक की तरफ हाथ से इशारा करते हुए कहा। … Read more

ऐतबार ज़िन्दगी पर* – सरला मेहता

यश औऱ सुबोध बचपन के दोस्त तो हैं ही, दोनों के परिवार भी अड़ोसी पड़ोसी हैं। लँगोटिया यार व दाँतकाटी रोटी जैसी कहावतें इन पर सौ टके लागू होती हैं। किंतु किस्मत का खेल भी निराला है। सुबोध, वो तो बन गया साला… साहब लंदन का। और यश रह गया बिलासपुर में प्रोफेसर बनकर। वैसे … Read more

सफल दाम्पत्य ” – सीमा वर्मा

अपने सफल दाम्पत्य की यह कहानी अनुराधा ने अपनी सखी कविता को  सुनाई थी। जब उससे मिलने कविता ने हँसते हुए उसके पति मनोहर पर सीधा कटाक्ष करते हुए कहा,  ”  तुमने भी किस औघड़दानी को चुना है अनु !  कहाँ तुम और कहाँ खिचड़ी-फरोश दुकान मालिक ? अनु तनिक भी बुरा नहीं मान कर … Read more

कर्मफल **** – बालेश्वर गुप्ता

घटना 1997 की है, एक कोलाहल, लोगो की भीड़ का जमावड़ा, आवाजें, मेरठ के स्पोर्टस स्टेडियम के सामने की सड़क पर एक 20वर्षीय नवयुवक बेहोशी की हालत में पड़ा है, उसके बराबर मे ही पड़ा है उसका स्कूटर. उस युवक को घेरे ही भीड़ है, पर उसे उठाने वाला कोई नही. पता नही ये सामुहिक … Read more

“कहानी” – Mithu Dey

पापा के चले जाने के बाद माया बिल्कुल अकेली हो गई थी ।        पूरे परिवार में सिर्फ़ उसके पापा ही उसे समझते थे । पापा नें उसके शामले  रंग के लिए कभी कुछ नहीं बोले। माँ प्यार तो करती है पर परिवार वालों के आगे चुप रहती थी  ।माँ भी क्या करे?उनका भी कोई दोस … Read more

सड़क के जानवर – गोविन्द गुप्ता

  कुंदन अपनी पत्नी नन्दिता और दो बच्चों के साथ कश्मीर घूमने निकला खुद की गाड़ी थी  स्टीरियो तेज आवाज में बज रहा था, मनमोहक गीतों की पूरी पेन ड्राइब आज सफर में आनन्द दे रही थी, कश्मीर की सुरम्य वादियों में केसर के खेतों में ,सेब के बागों में,वीडियो ,फोटो ग्राफी खूब हुई, पहलगाम … Read more

जीवंत – कंचन श्रीवास्तव

#बैरी_पिया कहते हैं जानवर भी पालो तो कुछ दिनों बाद उससे लगाव हो जाता है, फिर इंसान तो इंसान है कितना भी विचारों में विभिन्नता हो पर एक समय के बाद उसी में मजा आने लगता है ।और कब  जिंदगी के आखिरी पड़ाव पर आ जाते हैं पता ही नहीं चलता। हां आप ठीक समझ … Read more

1965 का  प्रेम – सुनीता मिश्रा

उसका पत्र मिला मुझे, बहुत अवसाद भरा  था।उसने लिखा था–“मैं  जिन्दगी से निराश हो गई हूँ । जीने की इच्छा खत्म हो गई है, पर अपनी अनुभा का मुँह  देखती हूँ तो सोचती हूँ, मेरे बाद क्या होगा इसका ? क्या तू दो चार दिन के लिये नहीं आ सकती मेरे पास, शायद इस उदासी … Read more

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