“कहानी” – Mithu Dey

पापा के चले जाने के बाद माया बिल्कुल अकेली हो गई थी ।  

     पूरे परिवार में सिर्फ़ उसके पापा ही उसे समझते थे ।

पापा नें उसके शामले  रंग के लिए कभी कुछ नहीं बोले।

माँ प्यार तो करती है पर परिवार वालों के आगे चुप रहती थी  ।माँ भी क्या करे?उनका भी कोई दोस नहीं है ।

 पापा एक प्राइवेट कंपनी में काम करते थे,अचानक मृत्यु हो जाने के कारण कुछ जमा-पुँजी भी नहीं था ।

   कंपनी वालों नें जो कुछ दिया था,उसी का आसरा था ।

माँ को ही घर का सारा काम करना परता था ।

 दो माँ-बेटी को खाना -कपड़ा जो मिलता था ।

माया के पापा की जब मृत्यु हुई थी तब माया नें  इंटरमीडिएट की एग्ज़ाम दी थी ।

        कितना शौक था उसे आगें पढ़ने की ।

पापा के जाने के बाद सब बदल गया ।


दादी बोली- “इसे पढ़ाने की कोई जरूरत नहीं है,एक तो  काली ऊपर से डीग्री मिल जायेगी तो लड़का मिलना और मुश्किल हो जायेगा” ।

बस सब खतम,जिला में अव्वल आनें वाली लड़की पता नहीं कब घर की नौकरानी बन गई ।

उसके अंदर के सारे गुण ना जाने कब के मर चुके थे ।

कभी कभी माँ को बोलने पर माँ बोलती-क्या करेगी बेटा, सहन कर ले इसका सिवा हमारे पास कोई चारा भी नहीं है ।

पूरे पांच साल बीत गए……

एक दिन अचानक उसकी सबसे प्यारी और पक्की सहेली रूपा उससे मिलनें आती है ।

     एक दूसरें को देख कर दोनों अचंभित हो जाती है ।।

रूपा,माया को देख कर चकित इसलिए हो रही थी,की उसे पहचानना मुश्किल हो गया था ।

   शादी के बाद मायके आना भी कम हो गया था ।

और आती भी है तो एक-आध दिन के लिए ।

      माँ से माया की खबर बराबर लेती रहती थी ।

   माँ कहती थी- कोई उसे पसंद भी नहीं कर रहा है और ना ही घरवाले कोशिश कर रहे है ।

मुफ़त में एक नौकरानी जो मिल गई है ।

             काफी देर तक दोनों एक- दूसरे से बातें करने के बाद ।रूपा बोली- देख माया!तुझे मेरी एक मदद करनी होगी ।

   सुनकर माया,रूपा के आंखों में झाँकते हुए बोली- क्या?

   रूपा- मेरे देवर को मूवी बनाने का शौक चढ़ा है पर उसे कोई कहानी पसंद ही नहीं हो रही है ।


माया- तो मैं क्या करूँ?

रूपा-तुझे तो लिखना आता  है ना ,कितने ईनाम मिलता था तुझे,तू लिख दे एक कहानी प्लीज प्लीज ।

माया-अब नहीं होगा मुझसें रूपा!

रूपा-मैनें ही घर में सबको बोली हूँ की अगर “माया”होती तो वो तो दो दिन में लिख देती ।तभी से मेरा देवर पीछे परा है ।

           लिख दे मेरी लाडो,मेरी इज़्ज़त का सवाल है ।

तब माया भी राजी हो गई और कहानी लिखने लगी ।

एक हफ़्ते बाद रूपा कहानी ले के चली गई ।

उसके छह महीने बाद मूवी बनके तैयार हुई और रिलिज़ होते ही हिट हो गई और पांच फिल्म फेयर अवार्ड मिला ।

बस उसके बाद माया का पाशा भी पलट गया ।

इस घटना को दो साल बीत गया है ।

आज माया एक सफ़ल लेखिका के रूप में जानी जाती है ।अपना घर-गाड़ी सब कुछ है ।समाज में इज़्ज़त शोहरत पैसा सब कुछ है उसके पास सिर्फ़ एक कमी है “पापा” की

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