सड़क के जानवर – गोविन्द गुप्ता

 

कुंदन अपनी पत्नी नन्दिता और दो बच्चों के साथ कश्मीर घूमने निकला खुद की गाड़ी थी  स्टीरियो तेज आवाज में बज रहा था,

मनमोहक गीतों की पूरी पेन ड्राइब आज सफर में आनन्द दे रही थी,

कश्मीर की सुरम्य वादियों में केसर के खेतों में ,सेब के बागों में,वीडियो ,फोटो ग्राफी खूब हुई,

पहलगाम में फूलों के बगीचों ने तो मन मोह लिया ट्यूलिप गार्डन नाम था उसका,

शिकारे पर तीन राते गुजारी बहुत खूबसूरत समय लग रहा था,

कश्मीर घूमने के बाद जम्मू आ गये ओर माता वैष्णो देवी की यात्रा की,

उसके बाद घूमते हुये बापस पंजाव की ओर से बापसी करने लगे,

रास्ते भर कही भी जानवरो के झुंड नही दिखे इक्का दुक्का दिखते थे पर सड़क पर कब्जा नही था जो परिवहन में कोई दिक्कत होती,
दिल्ली आकर दो दिन दिल्ली में घूमने के बाद बापस लखनऊ के लिये निकल पड़े,

एक्सप्रेसवे से होकर लखनऊ चलने लगे,

स्पीड बहुत थी लेकिन कही कोई दिक्कत नही आ रही थी,
चूंकि लखनऊ से आगे बाराबंकी के पास घर था तो एक्सप्रेसवे से नीचे उतरना पड़ा और दो लेन की सड़क पर गाड़ी फर्राटे भरने लगी,

अचानक जानवरो का एक झुंड सामने आ खड़ा हुआ टस से मस नही हो रहा था तभी वह आपस मे लड़ने लगे सिंघो से जमीन खोदते बहुत भयंकर लग रहे थे वह,

तभी उधर से निकल रहे एक बाइक सवार को पटक दिया जिससे उसको बहुत चोट आई,


पंद्रह मिनट जाम रही रोड फिर खुल सकी पर आगे जगह जगह ऐसे ही झुंड दिख रहे थे जो स्पीड नही बढ़ने दे रहे थे,

आगे कुछ खाली रोड दिखी तो फिर स्पीड बढ़ा दी इतने में सामने से एक बड़ी गाड़ी आती दिखी,

लेकिन दो जानवर लड़ते हुये रोड पर आ गये,

गाड़ी को जब तक बचाते सामने से आ रहे ट्रक में गाड़ी भिड़ गईं और बड़ा हादसा हो गया गाड़ी में गाना बज रहा है चल मुसाफिर चल,

और गाड़ी के अंदर सब कुछ खत्म,

पुलिस आई अस्पताल ले जाये गये सब पर कोई नतीजा नही ,

जानवरो ने एक हंसते खेलते परिवार की जिंदगी ले ली सारी कश्मीर की यादे ऑन मोवाइल स्क्रीन पर चल रही थी,

यह कहानी दो दिन पूर्व बाराबंकी के पास हुये सड़क हादसे पर मिलती जुलती लिखी है,

काश इन जानवरों को राजनीतिक रँग न दिया जाता और सुरक्षा पर ध्यान दिया जाये,,

 

लेखक 

गोविन्द

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