सोने का हार

अपने मां-बाप की इकलौती बेटी शालिनी बचपन से होनहार थी।  जैसे ही थोड़ी बड़ी हुई वह अपने से छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगी और अपने पढ़ाई का खर्चा अपने ट्यूशन के पैसे से  निकाल लेती थी।   उसके पापा की गांव में ही किराने की दुकान थी।  वह बड़ी होकर डॉक्टर बनना चाहती थी लेकिन वह डॉक्टर तो  नहीं नर्स जरूर बन गई थी

 शालिनी के नर्स बनने की खुशी में आज घर में एक छोटी सी पार्टी रखी गई थी सारे रिश्तेदार आए हुए थे।   पार्टी के अगले दिन ही शालिनी की मामी ने उसकी मां से कहा, “दीदी अब हमें अपनी शलिनी  की शादी कर देनी चाहिए मेरी नजर में एक बहुत अच्छा लड़का है मेरे भाई का लड़का रिशु, वो भी इसी साल गाँव के स्कूल मे सरकारी शिक्षक बना है, और सबसे अच्छी बात यह है कि मेरे भैया को शालिनी पसंद है इसके  स्वभाव और संस्कार  से मेरे भैया प्रभावित हैं और फिर हमारी गुड़िया शालिनी ऐसी है ही कि इसे कौन नहीं अपने घर की बहू बनाना चाहेगा।  यह जिस घर में जाएगी उस घर को अपनी खुशबू से महका देगी।”  शालिनी की मां ने उसकी मामी से कहा,  “भाभी वह सब तो ठीक है लेकिन हम दहेज में ज्यादा कुछ नहीं दे पाएंगे क्योंकि जो कुछ हमारे पास था हमने शालिनी की पढ़ाई में लगा दिए थोड़ा बहुत जमा कर रखे हैं इसकी शादी के लिए।” 



 फिर क्या था शालिनी की मामी ने उसी समय  अपने भाई के पास फोन लगाया और उन्होंने कहा, “भैया मैंने रिशु के लिए दुल्हन पसंद कर ली है।  अपनी ननद की लड़की शालिनी हमारे रिशु के लिए बहुत अच्छी रहेगी। 

अगले सप्ताह ही शालिनी और रिशु की सगाई हो गई और शादी की तारीख अगले महीने की  फिक्स हो गई। 

अब  दोनों घर में शादी की तैयारियां जोरों पर थी।  1 दिन शालिनी के पापा राकेश जी ने अपनी बेटी को अपने पास बुलाया और कहा, “बेटी मैंने तुम्हारी शादी के लिए अलग से  2 लाख जमा किए थे कि तुम्हारी शादी में दहेज में खर्चा करूंगा।  लेकिन तुम्हारे ससुर जी ने साफ मना कर दिया है कि मैं एक रुपए भी दहेज नहीं लूंगा जिस घर में शालिनी जैसी बहू आ जाए उसको दहेज का क्या जरूरत  बहू ही दहेज है। मैं चाहता हूं कि यह 2 लाख  तेरे अकाउंट में जमा करा दूं जो तेरे भविष्य में काम आएंगे।”  शालिनी कुछ नहीं बोली और वह अपने कमरे में चली गई। 

एक  महीने बीतने में कोई ज्यादा समय नहीं लगता है  आज शालिनी की बारात आने वाली थी।  घर को खूब अच्छी तरह से सजाया गया था डीजे बज रहा था सब खुश थे। 

शादी के रस्म  होने के बाद अब फेरे का समय आ गया था पंडित जी ने जैसे ही कहा कि दूल्हा दुल्हन अब  फ़ेरे के लिए तैयार हो जाएं।  तभी शालिनी बोल उठी रुकिए  पंडित जी, “मुझे सबकी उपस्थिति में एक बात कहनी थी जो मैं अकेले में नहीं कह सकती थी।  हर बाप अपने बेटा या बेटी को जितना उसकी क्षमता  होती है पढ़ाता लिखाता है इस आस में कि हमारा बेटा या बेटी बड़ा आदमी बने।  मैं तो अपने पापा की इकलौती परी थी पापा ने मुझे आज तक किसी भी चीज की कमी नहीं होने  दी।  मैं डॉक्टर बनना चाहती थी लेकिन जब मुझे पता चला कि डॉक्टर बनने के लिए हमारे पास पैसा नहीं है तो मैंने सोचा कोई बात नहीं नर्स बन जाती हूं। पूरा आसमान  नहीं मिला तो क्या हुआ एक मुट्ठी आसमान भी काफी है।  पापा ने मेरी शादी के लिए मुश्किल से 2 लाख  जोड़े थे जिसे कुछ दिन पहले ही उन्होंने मेरे अकाउंट में जमा करा दिए थे क्योंकि हमारे यहां रिवाज है मां-बाप बेटियों से पैसे नहीं लेते हैं।  लेकिन मैं तो सोचती हूं कि यह रिवाज टूटना चाहिए बेटा हो या बेटी  मां-बाप उन दोनों की जिम्मेवारी होनी चाहिए। अपने मां-बाप के सुख दुख में दोनों को शामिल होना चाहिए। 



 यह 2 लाख  का चेक है और यह मैं अपने पापा को वापस करना चाहती हूं और यह मेरा अकेले का फैसला नहीं है बल्कि मेरे होने वाले ससुर और मेरे होने वाले पति रिशु का भी फैसला है कि हम पापा से 1 रुपये  भी नहीं लेंगे। 

 शालिनी के पापा राकेश जी बोले, “अरे बेटी कैसी बात कर रही हो  यह पैसे हमने तुम्हारी शादी के लिए  जोड़े  थे हमारा क्या है तुम्हारी मम्मी और मैं अपनी दुकान से ही जीवनयापन कर  लेंगे।” 

 शालिनी बोली, “पापा हर इंसान के कुछ सपने होते हैं जिसे वह पूरा करना चाहता है मैंने बचपन से ही मां को देखा है उसे सोने की हार बहुत पसंद था लेकिन आपके पास कभी भी उतना पैसे नहीं हुए कि वह आपसे कह सकें ‘सोने की हार” खरीदने के लिए तो माँ  नकली सोने की हार को भी असली समझकर ऐसे पहनती थी जैसे उसने सोने का ही हार पहना हो।  पापा मैं आपसे यह गुजारिश करती हूं कि इस पैसे से आप मम्मी के लिए सोने का हार बनवाना और मम्मी को अपने हाथों से पहनाना। 

इतना सुनने के बाद शादी में मौजूद सभी लोग तालियां बजाने लगे और  शालिनी के माता-पिता की आंखों से अश्रु धारा बहने लगे बस इतना ही कह पाए, “बेटी मुझे नहीं पता था कि तू इतनी बड़ी हो गई है हमें हमेशा से लगता था कि काश हमारे पास भी एक बेटा होता लेकिन आज के बाद हमें कभी भी एहसास नहीं होगा कि हमारे पास बेटा  नहीं है।”  तभी राकेश के होने वाले दामाद रिशु बोल उठा, “पापा क्या मैं  आपका बेटा नहीं हूं।”  शालिनी के पापा ने रिशु को गले लगा लिया और कहा, “हां बेटा जी आप भी मेरे बेटे ही हैं”  उसके बाद पंडित जी ने शालिनी और रिशु  का सात फ़ेरे  कराया।  और दोनों शादी के बंधन में बंध गए।  दोस्तों शालिनी का यह फैसला आपको कैसा लगा हमें अपने विचार कमेंट बॉक्स में जरूर दें

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