खुशी चाहिए तो खुशी बांटनी पड़ती है

संतोष कल सुबह जल्दी आ जाना तुम्हें तो पता ही है कि कल मेरी बेटी राधिका का जन्मदिन है और हाँ कल तुम्हें  मेरी बेटी के जन्मदिन की खुशी में ₹1000 एक्स्ट्रा भी मिलेंगे।  वैसे तो संतोष कल छुट्टी करना चाहता था क्योंकि उसके बेटे का भी कल जन्मदिन है उसकी पत्नी 10 साल पहले  ही गुजर गई थी लेकिन उसने अपने बेटे को बहुत प्यार से पाला था अपने बेटे के लिए संतोष ने दूसरी शादी भी नहीं की थी। अगर  दूसरी पत्नी आएगी तो क्या पता उसके बेटे के साथ कैसा व्यवहार करेगी।  वह अपने बेटे को पढ़ा लिखा कर बड़ा आदमी बनाना चाहता था वह नहीं चाहता था उसका बेटा भी उसी के जैसे घरों में नौकर का काम करें। 

संतोष को वैसे कल आने का मन तो नहीं था लेकिन ₹1000 के लालच में उसे आने को मजबूर कर दिया उसने बिना सोचे ही अपने मालिक राम प्रसाद जी को हां बोल दिया, “जी भाई साहब  मैं सुबह ही आ जाऊंगा।” 

 संतोष, रामप्रसाद जी के गांव का ही रहने वाला था जब रामप्रसाद जी के पिता जी जिंदा थे तो संतोष के बाबूजी उनके यहां  काम करते थे।  अब गांव में तो कोई रहा  नहीं रामप्रसाद जी को भी कोई न कोई एक विश्वास का  नौकर घर में काम करने के लिए शहर में चाहिए था तो उन्होंने संतोष को ही अपने पास बुला लिया और पास में ही एक  झुग्गी झोपड़ी में  कमरे किराए पर लेकर दिलवा दिया था। 



अगले दिन अभी सूरज भी नहीं निकला था संतोष रामप्रसाद जी के घर पहुंच चुका था रामप्रसाद जी दरवाजा खोलते ही बोले,

 “अरे संतोष इतनी सुबह”

 “भाई साहब आपने ही तो बोला था कि सुबह-सुबह ही आ जाना” 

“मैंने सुबह का मतलब  8:00 बजे से बोला था। “

” भाई साहब घर की साफ सफाई भी  तो अच्छे से करनी होगी और सारे बर्तन भी तो साफ करने होंगे ।   सफाई करने में समय लग जाएगा इसीलिए मैंने सोचा सुबह जल्दी ही आ जाता हूं”

संतोष  ने क्रॉकरी, डिनर सेट की अच्छे से सफाई की। घर की खूबसूरती से सजावट की। गिफ्ट पैक करने में राम प्रसाद जी की मदद की। रामप्रसाद जी की पत्नी के साथ मिलकर तरह-तरह के पकवान बनाने में भी मदद कर रहा था।  

रामप्रसाद जी अपनी पत्नी से कह  रहे थे क्यों इतनी मेहनत कर रही हो  बाहर से ही खाने का ऑर्डर कर देते हैं।  लेकिन रामप्रसाद जी की एकलौती  बेटी का जन्मदिन था उनकी पत्नी अपने हाथों से अपनी बेटी के लिए व्यंजन बनाना चाहती थी। 

रामप्रसाद अपनी बेटी से इसलिए भी बहुत प्यार करते थे क्योंकि शादी के 15 साल तक रामप्रसाद जी को संतान सुख प्राप्त नहीं हुआ और फिर 15 साल बाद एक बेटी पैदा हुई और उसके पैदा होते ही रामप्रसाद जी के बिजनेस में तरक्की पर तरक्की होती रही रामप्रसाद जी अपनी बेटी को लक्ष्मी स्वरूपा मानते थे। 

 शाम होते ही रामप्रसाद जी अपनी पत्नी के साथ अपने सारे रिश्तेदारों मेहमानों का स्वागत करने में लग गए।  जब सारे मेहमान  और उनकी बेटी  राधिका की सहेलियां आ गई तो अब केक काटा गया।  केक  काटने के बाद सभी बच्चों ने केक खाया और मिलकर डीजे पर खूब डांस किया। 

 संतोष सबको प्लेट में रखकर केक दे रहा था और उसके साथ  अपनी मालकिन का भी मदद कर रहा था।  खाना इतना स्वादिष्ट और लाजवाब बना था कि लोग खाने की तारीफ करते नहीं थक रहे थे।  रामप्रसाद जी की पत्नी भी मेहमानों से कह रही थी यह सारा खाना हमने घर में बनाया है और यह संतोष के मदद के बिना संभव नहीं था। 



कुछ देर बाद संतोष रामप्रसाद जी के पास गया और बोला भाई साहब मैं भी अब घर जाना  चाहता हूं। रामप्रसाद जी बोले, “अभी कैसे घर चले जाओगे अभी तो सारे मेहमान यही है और तुम घर चले जाओगे तो कैसे होगा।”  संतोष सुकचाते  हुए बोला, “भाई साहब बात ऐसी है कि आज मेरे भी बेटे राहुल का भी जन्मदिन है और वह मेरा इंतजार कर रहा होगा। हमने किसी को बुलाया तो नहीं है लेकिन हम बाप-बेटा और मेरी मां  मिलकर छोटा सा केक काटेंगे और अपने बेटे के जन्मदिन को इंजॉय करेंगे।” 

रामप्रसाद जी संतोष से बोले, “अरे तुमने कल क्यों नहीं बताया कि तुम्हारे बेटे का भी आज जन्मदिन है हम तुम्हें आज नहीं बुलाते हम किसी और को  काम करने के लिए बुला लेते।  भाई साहब अब आपसे क्या छुपाना आपने कहा था ना कि कल ₹1000 एक्स्ट्रा मिलेगा वही मन में लालच आ गया मैं तो अनपढ़ गवार हूं लेकिन मैं अपने बेटे को प्राइवेट स्कूल में पढ़ाता हूं।  मैं अपने बेटे को अपने जैसा गंवार  नहीं रहने देना चाहता हूं तो मैंने सोचा मेरे बेटे के स्कूल के 1 महीने की फीस हो जाएगी।  

रामप्रसाद जी ने संतोष से कहा, “आधा घंटा रुक जाओ उसके बाद चले जाना।”  रामप्रसाद जी संतोष को सरप्राइस देना चाहते थे उन्होंने अपने ड्राइवर को  भेजकर संतोष के बेटे को बुला लिया। 

 थोड़ी देर के बाद उन्होंने मेहमानों के बीच एक और अनाउंस किया आप सब लोगों को जानकर खुशी होगी कि आज सिर्फ मेरी बेटी का ही जन्मदिन नहीं है बल्कि  किसी और का भी जन्मदिन है और वह मेरे बेटे जैसा है आप लोग कुछ दिन पहले उसकी फोटो अखबार में देखा होगा उसने दसवीं बोर्ड में  टॉप कर हमारे जिले का नाम रोशन किया था। वो और कोई नहीं बल्कि हमारे अपने संतोष का बेटा है तो आप लोग तालियों के साथ राहुल को जन्मदिन की बधाई दीजिए। 

अपने बेटे को यहां देखकर संतोष के आंखों से आंसू झर झर बहने  लगे । उसने कभी नहीं सोचा था कि मेरे बेटे को इतना सम्मान मिलेगा।  वह समझ गया था कि शिक्षा एक ऐसी चीज है जो हर जगह सम्मान दिलाती है आज उसका बेटा अगर मैट्रिक में टॉप नहीं किया होता तो शायद उसको इतनी इज्जत नहीं मिलती। 

 थोड़ी देर में ही रामप्रसाद जी का ड्राइवर दूसरा केक लाया और राहुल ने अपने पापा के साथ मिलकर केक काटा। 

रामप्रसाद जी ने सभी मेहमानों के सामने ही कहा कि आज संतोष हम सबके लिए एक प्रेरणा स्रोत है संतोष मेहनत मजदूरी करके अपने बच्चे को प्राइवेट स्कूल में पढ़ाता है ताकि उसका बेटा बड़ा आदमी बन सके।  आज हम आप सबको को संतोष जैसा बनना होगा जो अपने बेटे बेटियों के पढ़ाई से कोई समझौता ना करें क्योंकि इंसान  अपने जीवन में सब कुछ खो सकता है लेकिन जो ज्ञान अर्जित कर लिया है वह कभी नहीं खो सकता है और वही ज्ञान एक दिन उसे जीवन में बहुत आगे लेकर जाती है। 



राम प्रसाद की बेटी राधिका ने अपने पापा से कहा, “पापा मैं राहुल को गिफ्ट के रूप में उसकी 1 साल की फीस भरना चाहती हूं।  रामप्रसाद जी बोले, “अरे बेटी यह तो बहुत अच्छी बात है।”  और उसी समय रामप्रसाद जी ने संतोष और राहुल से कहा आज तुम लोगों को मेरी बिटिया ने एक ऐसा गिफ्ट दिया है जिसके बारे में मैं कभी सोच भी नहीं सकता था मेरी बिटिया रानी राहुल के जन्मदिन की खुशी में स्कूल का 1 साल का फीस  भरने का जिम्मा लेती है। 

 संतोष को समझ नहीं आ रहा था वो कैसे अपने मालिक रामप्रसाद जी का शुक्रिया अदा करें उसके पास कहने के लिए शब्द नहीं थे आज रामप्रसाद जी उसके लिए मालिक नहीं बल्कि भगवान स्वरूप हो गए थे। 

 पार्टी खत्म होते ही रामप्रसाद जी  की पत्नी ने संतोष को ₹1000 और खाना पैक करके दिया ताकि वह घर जाकर राहुल की दादी को खाना खिला सके। 

 रामप्रसाद जी ने अपने ड्राइवर को कहा संतोष को घर पर ले जाकर छोड़ दो।  रामप्रसाद जी को ना जाने क्यों आज संतोष की मदद करके उनके मन को असीम सुख प्राप्त हो रहा था। 

दोस्तों जरूरी नहीं है कि हम किसी को बहुत सारा धन देंगे तभी वह खुश होगा हमारे आसपास जो लोग हैं जिनके साथ हमारा मिलना जुलना है जो हमारे सहयोगी हैं आप उनकी खुशियों में शामिल हो जाइए उससे बड़ी खुशी  कोई नहीं हो सकता है।  जो भी आपके सहकर्मी हैं जो आपके साथ काम करते हैं चाहे घर में हो या ऑफिस में सिर्फ उनकी छोटी-छोटी खुशियों में आप शामिल हो जाइए फिर देखिए वो लोग आपके लिए  समय आने पर अपनी जान  तक  न्याक्षावर  कर देंगे।

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