सोच एक मां की – शिव कुमारी शुक्ला   : Moral stories in hindi

पारुल पढी लिखी, सुलझे विचारों की समझदार लड़की थी, खूबसूरत, सौम्य एवं सबसे घुल-मिल जाने वाली । उसकी शादी को पाँच बर्ष हो गए थे, एक छोटा  दो साल का बच्चा भी था। उसका पति M.R.  था सो काम के घंटे बहुत  थे । सुबह नौ बजे का निकला रात तक ही घर आता । किन्तु पारूल  ने पूरी जिम्मेदारी अपने

ऊपर ओढ ली थी। परिवार में सबसे 

घुलमिल कर प्रेम से रहती। किसी को उससे कोई शिकायत नहीं थी। हां उसके एक बडी नन्द भी थी जो शादी शुदा थी और उसी शहर में अपने पति के साथ रहती थी। इसका वह पूरा फायदा उठाती ।

कभी भी अपनी मम्मी को  बुला लेती मदद के लिए। उसे पारूल का यों घुलना-मिलना  पसंद नहीं आता। मम्मी-पापा के मुँह से उसकी तरिफ सुन वह हमेशा जलभुन जाती और उसके विरुद्ध उनके जब तब कान भर‌ती रहती।उसे ऐसा लगता कि पारूल के आने के बाद उसके मम्मी-पापा का प्यार उसके लिए कम हो गया सो वह मन ही मन पारूल से जलती थी।

उसे परेशान करने की नीयत से वह अपने दोनों बच्चों को ले अचानक मायके पहुँच जाती और पारूल को दुबारा खाना बनाना पड़ता। किन्तु वह कुछ  नहीं बोलती। चुपचाप उसके आदर सत्कार में लग जाती। यही बात नन्द सीमा को बुरी लगती। वह चाहती थी कि पारूल कुछ कुछ बोले तो वह उसे अच्छी तरह खरी-खोटी सुनाये और मम्मी-पापा की नाजरों से गिराए । पर ऐसा कुछ नहीं होता। कहीं काम से जाने के नाम पर, कभी किटी के  नाम पर, कभी तबियत  खराब होने के नाम पर अक्सर वह बच्चों की  जिम्मेदारी  मम्मी पर छोड जाती। पारुल मम्मी के साथ उन बच्चों का ध्यान रखती । उन्हें खाना खिलाना, सुलाना ,दूध पिलाना आदि। शाम को पति तनय  के साथ उन्हें लेने आती तो सब खाना खा कर ही जाते।

मम्मी-पापा को बेटी  का कटु  व्यवहार  पारूल के प्रति  समझ आ रहा था, किन्तु वे  यह सोच कर समय दे रहे थे कि उसे अपने  आप समझ आ जाएगी।

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एक दिन पारुल को तेज बुखार आ गया। उससे उठा भी नहीं जा रहा था। मम्मी ( सास )  शैलजा  जी ने उसे उठने से मना कर चाय बनाई। उसे चाय विस्किट देकर थोड़ी देर बाद दवा दी और आराम करने को कह वे घर के काम में लग  गईं । तीन दिन हो गए  थे  बुखार उतरने का नाम ही नहीं  ले रहा था। शैलजा जी ने अपने बेटे  मधुर से कहा कि पारुल को डाक्टर को दिखा कर लाए।

 कहां तो पारूल सोच रही  थी कि मेरे बीमार होने से किसी को फर्क नहीं पड़ेगा पर यहाँ तो सब उसकी बहुत ही सार-सम्हाल कर रहे  थे। मधुर ने भी दो दिन से अवकाश ले लिया  था।   

तभी एक दिन सीमा का फोन आया 

 मम्मी हम लोग घूमने जा रहे हैं। सप्ताह भर की बात है आप लोग यहाँ आ जाएं घर सूना रहेगा। 

शैलजा जी  बोलीं सीमा अभी हम लोग नहीं आ सकते पारुल की तवीयत खराब है उसे पांच दिन हो गए  विस्तर  से उठ नहीं पा रही।

सीमा बीच में ही बात काटते बोली मम्मी ये उसके नखरे हैं काम से बचने के लिए।एक नम्बर की काम चोर है।यह सुनते ही शैलजा जी को बहुत ग़ुस्सा आया और वे चीख पड़ीं सीमा तुम अपनी हद में रहो, मेरी पारूल कामचोर नहीं है, कुछ सोच समझ कर बोला करो।

सीमा मम्मी कल की आई वह लड़की आपके लिए इतनी महत्वपूर्ण हो गई कि उसके लिए मुझे, अपनी बेटी को डांट रही हो।

शैलजा जी हां मैं तुम्हें डॉट रहीं हूं क्योंकि तुम बिना सोचे-समझे कुछ भी बोल रही हो। तुमने सारी हदें पार कर दी हैं।उसको परेशान करने की नीयत से तुम्हारा समय- असमय  बिना सूचना के आना,  बच्चों को छोड़ जाना, मुझे उसके विरुद्ध भड़काना हम सब समझ रहे थे किन्तु चुप थे  कि वक्त रहते शायद तुम्हें समझ आ जाए,पर तुम नहीं समझ रही हो। तुम्हें उससे क्या परेशानी है, तुम आती हो तो वह तुम्हारा सम्मान करती है, प्यार से खिलाती पिलाती है फिर तुम उससे  द्वेषभाव क्यों रखती हो ।कान खोलकर सुन लो मैं उसे ऐसी हालत में छोड़ कर नहीं आने वाली।

सीमा मम्मी ये क्या कह रही हो उस पराई लड़की के लिए अपनी बेटी से मना कर रही हो। हमारे टिकट हो गये हैं, अब हम क्या व्यवस्था करेंगे।

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शैलजा जी वह पराई लड़की अब मेरे घर की वहू है, उसकी मदद करना अब मेरा कर्तव्य है।जब वह हमें माता-पिता मान कर सम्मान देती है, हमारी सेवा करती है तो हमारा भी फर्ज बनता है कि उसे अपनी बेटी मान कर प्यार और सम्मान दें अब वह पराई नहीं इस घर की  सम्मानीय सदस्य हैं, तुम्हारे छोटे भाई की जीवन साथी है। तुम  अपनी  ससुराल  से सास ससुर को बुला लो।

सीमा मैं उन्हें कैसे बुला सकती हूं,  में तो 

उनसे कोई सम्बन्ध ही नहीं रखती।

शैलजा जी यही तो तुम्हारी गलती है। पारुल से ही सीखलो वह हमारा कितना ध्यान रखती है।एक तुम हो मेरी बेटी, तुमने हमारा सिर समधी समधन के आगे झुका दिया पता नहीं  मेरी परवरिश में कहां  कमी रह गई जो तुम इस तरह व्यवहार  करती हो। सीमा अब भी देर नहीं हुई है आंखें खोलो और अपने गलत व्यवहार की उनसे  माफी मांग  कर उनके साथ सम्मान पूर्वक व्यवहार करो।

शैलजा जी को फोन पर सीमा से इस तरह बात करते  सुन  पारुल सोच रही थी  कि कहाँ तो में सोच रही थी कि दीदी का फोन आया है मम्मी-पापा वहां  चले जायेंगे मेरी बीमारी की किसको पड़ी है,किसी को कोई फर्क नहीं पडता किन्तु में कितनी गलत थी। मम्मी जी को मेरी कितनी चिंता है जो दीदी के यहां  जाने से मना कर दिया । पारुल अपनी सास के व्यवहार से गर्व से भर उठी। ससुर ,पति भी उसका ख्याल रखने में कोई कमी नहीं  कर रहे थे  वह अपने को बहुत भाग्यशाली समझ रही थी। उधर माँ की कठोर  बातें सुन  सीमा भी आज सोच में पड़ गई ।आज वहू के लिए मां ने एक बेटी को मना कर दिया। और मैंने अपने सास-ससुर के साथ क्या किया।  इतने साल हो गए कभी पास नहीं रखा।इस उम्र में भी वे अकेले  गांव में रहते हैं जहां  कोई सुख सुविधाओं के साधन नहीं है । वहां डाक्टरी सुविधा भी नहीं है। तनय सोचता तो होगा, अपनी माता पिता की याद भी आती होगी पर मैंने उसे भी, कभी उनसे मिलने नहीं जाने दिया । आज मां  ने  मेरे जमीर को  झकझोर दिया। मैं कितनी गलत थी, खुद तो ससुराल से सम्बन्ध नहीं रखा और मम्मी को  भी  पारूल के विरुद्ध  भडका कर यहां भी वही स्थिती करना चाहती थी। किन्तु मम्मी और पारुल की समझदारी ने ऐसा नहीं  होने दिया। अब में अपनी ग़लती का पश्चाताप कर सास ससुर  के पास  जाकर  उनसे माफी मांग उन्हें अपने साथ रखूंगी और अपनी मम्मी को एक अच्छी बेटी बन कर दिखाऊंगी ।

अरे सुनते हो, तनय हम  घूमने नहीं जा रहे हैं टिकट कैंसिल करा दो।

तनय आश्चर्य से उसे देख रहा था बोला तुम्हारी तबीयत तो ठीक है तुम घूमने जाने  के लिए मना कर रही हो।

सीमा हां ,हम तुम्हारे मम्मी पापा के पास गाँव चल रहे हैं उन्हें यहीं लाने के लिए। तनय विस्फारित आंखों  से देखते हुए तुम क्या कह रही हो जानती हो, तुम होश में तो हो 

ना।

 हां तनय मम्मी की बातों को सुन आज होश में आई हूँ। मैं सही कह रही हूं कि हम गांव  जा रहे हैं।

तनय के चेहरे पर असीम सन्तोष का भाव था, आज  वह  माता-पिता के प्रति अपने कर्तव्य को  न निभाने  की आत्मग्लानि हो मुक्त हो चुका था।

शिव कुमारी शुक्ला

स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित

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