“सलाह” – कनार शर्मा: hindi stories with moral

hindi stories with moral : अरे बहू कहां चली? नाश्ता कौन बनाएगा? सुबह-सुबह अपनी बहू को बैग उठाकर घर से बाहर जाता देख सास वसुंधरा जी बोली। 

मांजी आप और आपके बेटे ने मुझे घर की नौकरानी समझ रखा है। मैं बहू हूं इस घर की कामवाली बाई नहीं जो दिन रात आप लोगों के लिए काम करती रहूंगी और अगर मैं एक फरमाइश कर दूं तो आप लोग पाई पाई का हिसाब मांगते हो।

तभी पति विक्रम अपने कमरे से निकाल कर बोला “मां जाने दो इसे”….

कामिनी पैर पटकते हुए अपनी मां के घर पहुंची “मां तुमने किसी भिखारी इंसान से मेरी शादी कर दी।”

बेटा ऐसे नहीं बोलते शादी के बाद तुम्हें ससुराल में छोटी मोटी बातों को बर्दाश्त करना होगा वरना तुम्हारी छोटी सी गलती की वजह से तुम्हारा बसा बसाया घर खतरे में पड़ जाएगा।

मां “जब मैंने गलती नहीं की तो क्यों बर्दाश्त करूं?”गुस्से से चिल्लाकर बोली। 

ऐसा क्या बर्दाश्त कर रही हो? जरा मैं भी तो सुनूं मां सरिता जी थोड़ा रोष व्यक्त कर बोली।

मां तुम्हारे दामाद मुझे शॉपिंग नहीं करने देते बाजार जाती हूं तो पैसे देने में उन्हें तकलीफ होती है। हर बार हिसाब किताब पूछते हैं मुझे बहुत चिढ़ होती है।कल मैंने शादी में पहनने के लिए नई साड़ी खरीदने को कहा तो बोलते है “अभी 6 महीने पहले इतना खर्चा कर तुम्हें मनपसंद महंगी-महंगी साड़ियां दिलवाई है।”

यही नहीं तुम्हारी जिद के कारण बीस हजार का लहंगा भी उनमें से कुछ भी पहन लो क्या फर्क पड़ता है? अब तुम ही बताओ मां मैं अपनी सहेली की शादी में पुराने कपड़े पहनकर जाऊंगी?

तो क्या गलत कहा विक्रम जी ने सच में नए फैशन की इतने सारे कपड़े हैं तुम्हारे पास और हम नहीं जानते क्या कि तुमने ये फ़िल्में और टीवी सीरियल देख देखकर अपने दिमाग में एक अलग ही फितूर बना रखा है।बेटा शादी कोई फिल्म नहीं जो 3 घंटे में खत्म हो जाए। वो तो जीवनभर का अनुबंध होती है। तुम्हें पता है।

हमारी तो इतनी हैसियत नहीं थी की शादी का खर्चा उठा पाए।मगर दामाद जी ने खुद आगे से बढ़कर पूरी शादी का खर्चा और तुम्हारी हर पसंद को सर आंखों पर रखा, बेटा वो भी तो एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता है। पता नहीं उस पर कितना बोझ आया होगा। अब तुम उसकी जीवन संगिनी हो तुम्हें फिजूलखर्ची का बोझ बढ़ाने की बजाय उसकी जिम्मेदारी और परेशानियों को बांटने की कोशिश करनी चाहिए। यूं फालतू बातों के चक्कर में अपनी गृहस्ती बर्बाद करने की गलती न करो।

अपनी मां सरिता की बात सुन कामिनी को याद आया दो दिन पहले लेनदार का फोन आया था तब विक्रम जी कितने परेशान हो गए थे।सच में मां मैं तो शादी के नाम पर फिल्मी सपने सजाए बैठी थी सोचती थी “शादी के बाद नए-नए कपड़े खरीदना, घूमना फिरना, मजे करना यही सब होता होगा।”

इसके आगे मैं अपने पति की कोई परेशानी समझी ही नहीं मगर आज से मैं ऐसा नहीं करूंगी मुझे समझ आ गया है। आगे से हर बात को सोच समझकर कहूंगी साथ में क्या सही है क्या गलत उसमें सामंजस बैठने की पूरी कोशिश करूंगी।

सरिता जी ने अपनी एक “सलाह” से बेटी को सही गलत में फर्क सिखा दिया।

कनार शर्मा

(मौलिक एवं अप्रकाशित रचना)

#”जब मैंने गलती नहीं की तो क्यों बर्दाश्त करूं”

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