मेरा घर कहाँ – कुमुद चतुर्वेदी : hindi stories with moral

hindi stories with moral : ” यह कूँ-कूँ पिल्ले जैसी आवाज कहाँ से आ रही है री नीति ? ” कहती हुई मंदा जब आँगन में निकली तो देखा नीति एक थैला पकड़े स्टोर रूम में जा रही थी। माँ की  आवाज सुन वह डरकर वहीं रुक गई।तबतक मंदा ने पास आकर थैला पकड़ कर देखा तो उसमें एक छोटा कुत्ते का पिल्ला कूँ-कूँ कर रहा था। यह देख वह नीति को डाँटती हुई बोली …” इसे क्यों लाई हो ? जाओ वहीं छोड़ कर आओ जहाँ से लाई हो। इसकी माँ परेशान होगी।” नीति बेचारी रोकर बोली” माँ पाल लेते हैं न इसे मेरा बहुत मन करता है जब मैं अपनी सहेली के घर पर उसके डॉगी को देखती हूँ तो। मैं खुद इसका सारा काम करूँगी।”

मंदा आँखें दिखाती बोली…” अच्छा ! फिर पढ़ेगा कौन मैं ? चलो जाओ अभी ..बाहर छोड़कर आओ नहीं तो तुम भी यहीं स्टोर में रहो इसके साथ। देखते हैं खाना-पीना कौन देगा तुम दोनों को ?”

यह सुन बेचारी नीति पिल्ले का झोला लेकर रोती हुई बाहर चली गई उसे छोड़ने। जब वह लौटी तब मंदा ने उसके हाथ-पैर धुलवा कर कपड़े बदलवाये और समझाया … ” देखो! तुम अभी पढ़ने में मन लगाओ अच्छे नम्बरों से पास होना है न ! फिर अभी तुम्हारे पास समय भी तो नहीं बचेगा पिल्ले के कामों के लिये सो तुम जब तुम्हारी शादी होगी तब वहाँ अपने घर में खूब मन हो उतने कुत्ते-बिल्ली सब पाल लेना अभी तो तुम्हारे पापा भी डाँटेगे इन सबके लिये।”

  यह सुन नीति चुप हो गई क्योंकि वह पापा के गुस्से को जानती थी।बहुत गुस्सैल स्वभाव को थे। क्या पता कब और किस बात पर वे चिल्लाने लगें और माँ को उल्टा-सीधा कहने लगें कुछ कहा नहीं जा सकता था। जब तक वे घर मेें रहते दोनों भाई-बहन चुपचाप बस  अपनी किताबें लिये बैठे रहते थे।बहुत ही कड़ा अनुशासन था ।

अब नीति चुप रहकर अपने भविष्य के सपनों में ही मन की इच्छाओं को पूरा करने के बारे में सोचती रहती।

  नीति बहुत रहमदिल और कोमल स्वभाव की लड़की थी वह किसी को दुखी नहीं देख सकती थी। किसी पशु या पक्षी को घायल या बीमार देख वह फौरन उसे सँभालने पहुँच जाती थी। किसी भी पालतू कुत्ता या बिल्ली को प्यार करने से रुक ही नहीं पाती थी। अब वह मन में यही सोचती रहती कि वह शादी के  बाद तो जरूर अपना शौक पूरा करके रहेगी।

नीति की आज शादी थी। वह मन ही मन  ससुराल को लेकर बहुत डरी हुई थी। वह सोचती पता नहीं ससुराल में सब कैसे होंगे और मैं वहाँ अपने मन का कुछ कर भी सकूँगी या नहीं ? यही सब सोचते जब उसने डरते-डरते ससुराल में कदम रखा तो वहाँ सास-ससुर और देवर-ननद सबका ही उसे भरपूर प्यार मिला। पति ने भी उसे कभी शिकायत का मौका नहीं दिया। सबका ही व्यवहार बहुत स्नेह और प्रेम पूर्ण था। कभी नीति कुछ गलती कर देती तो सास फौरन उसे समझा कर बता देती थीं।

  जब नीति की शादी को पूरा एक साल हो गया तब उसने अपनी सास से डरते-डरते कहा…” मम्मी जी मैं अपनी एनीवर्सरी पर कुछ माँगूँ तो आप मना तो नहीं करेंगीं ? ” यह सुन सास ने उससे पूँछा…” बोलो क्या चाहिये ?” नीति ने कहा…” मैं बस एक छोटा सा डॉगी पालना चाहती हूँ।” यह सुनते ही सास ने डरकर अपने कान बंद कर लिये और बोली…” नहीं ! बहू बस यही कभी मत कहना या भूलकर भी  हमारे घर में न लाना नहीं तो बहुत बड़ा अनर्थ हो जायेगा। तुम्हारे ससुर ही नहीं मेरा बेटा भी कुत्ता हो या बिल्ली सबसे बड़ी नफरत करते हैं ।” यह सुन नीति की आँखों में आँसू आ गये और वह सोचने लगी कि जाने मेरा घर कौन सा है ? जहाँ जन्म लिया वह घर माता-पिता का था जब यहाँ ससुराल ब्याह कर आई तो यह घर भी मेरे सास-ससुर का है। इनके बाद यही घर मेरे पति-देवर का होगा तो फिर मेरा घर कहाँ और कौनसा है जहाँ मैं अपने मन की इच्छा पूरी कर सकूँ ? कौन बतायेगा ? किससे पूँछूँ ? 

                      ……. कुमुद चतुर्वेदी

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