सास बन गई हूं, पर मै सुहागन हूं – अर्चना खंडेलवाल  : Moral stories in hindi

दुकान पर भीड़ उमड़ी हुई थी, साड़ियां खरीदने के लिए महिलाएं काफी थी, इतनी भीड़ देखकर हेमा जी एक तरफ बैठ गई, और भीड़ छंटने का इन्तज़ार करने लगी, थोड़ी देर बाद उन्हें भी आगे बढ़ने की जगह मिल गई, वो वहां जाकर बैठी ही थी कि सामने उनकी पुरानी पड़ोसन दीप्ति जी बैठी हुई थी। दोनों की नजरें मिली और दोनों उठकर खुशी से एक-दूसरे के गले लग गई।

“क्या बात है!! महीनों हो गये पर हम मिल तो लिये, बहुत अच्छा लग रहा है, घर पर सब कैसे है”?  हेमा जी ने पूछा।

“सब कुछ अच्छा चल रहा है, तीज आ रही है तो बहू के लिए साड़ी खरीदने आई थी, दीप्ति जी ने कहा।

” हां, तीज आ रही है तो मै भी अपने लिए साड़ी खरीदने आई हूं, बड़ा मन है एक चटक हरे रंग की बनारसी साड़ी लूं, काफी दिनों से इच्छा हो रही थी, तो आज आ ही गई” हेमा जी ने जवाब दिया।

“तुम भी ना हेमा, ये तो बहू बेटियो के पहनने के दिन है, तुम साड़ी लेकर क्या करोगी? अब तो सास बन गई हो, जो भी पास में हो वो पहन लेना ” दीप्ति जी ने कहा तो हेमा जी को आश्चर्य हुआ,” सास बन गई हूं तो क्या हुआ?  मेरी खुशी भी मायने रखती है, नया कपड़ा सभी को अच्छा लगता है, फिर सास बनने से मेरी जिंदगी तो नहीं रूक जायेगी, मैं पहनना और ओढ़ना कैसे छोड़ सकती हूं “।

“हां, बहन तुम तो अभी भी हीरोइन की तरह रहती हो, प्रेस की हुई साड़ी, अच्छी सी हेयर स्टाइल, मैंचिग पर्स, लिपिस्टिक, चूड़ियां और घड़ी, लगता ही नहीं की तुम भी सास बन गई हो” दीप्ति जी ने हेमा जी से कहा।

हेमा चुपचाप सुन रही थी फिर बोली,” अच्छा ये बात बताओ कि सास दिखने के लिए क्या करना होता हैं? तुम ही बता दो”, फिर दीप्ति जी को ऊपर से नीचे निहारते हुए बोली, “कुछ कहने की जरूरत नहीं है, मुझे साफ दिख रहा है,” ।

तुमने तो बहू आते ही खुद को बदल दिया,” बहू आने का ये मतलब नहीं है, हम खुद को लाचार, बेढंगा, और बेरंग दिखायें”। हमारे जीवन के अपने रंग है, अपने आपको देखो साठ की उम्र में  सत्तर की लगती ह़ो, हेमा जी ने दीप्ति जी को टोका तो वो‌ हंसने लगी, इतना कुछ अब हमें करने की जरूरत क्या है? अब तो हमारी उम्र हो गई है “…

हेमा जी ने फिर कहा,” हां, उम्र हो गई है, पर ख़त्म नहीं हुई है, जीवन के रंग, जीवन की इच्छाएं तो अभी काफी बची है, उन्हें भी पूरा करने का अभी तो समय मिला है।

हेमा जी ने अपनी बात पूरी की और चटक रंग की साड़ी लेकर घर आ गई, घर आकर उन्होंने अपने पति नीतेश जी को साड़ी दिखाई।

 उन्होंने साड़ी की सराहना की और बोले इसी बात पर चाय पिला दो, हेमा जी बोली,” मै चाय तो बना दूंगी, पर आप मुझे चूडी बाजार कब लेकर जाओगे? मुझे  साड़ी के मैंचिग की चूड़ियां खरीदनी है।

रसोई में जाते वक्त वो अपना मनपसंद गाना गुनगुना रही थी, तभी उनकी बहू ऑफिस से आ गई । हेमा जी ने उसके लिए भी चाय चढ़ा दी। उन्होंने सबको चाय के कप दिये, उनका खुशी में महकता चेहरा देखकर बहू ने पूछ ही लिया,” क्या बात है मम्मी जी ? आज तो आप बड़ी खुश नजर आ रही है।

 

“हां, मै आज तीज पर पहनने के लिए नई साड़ी लेकर आई हूं, बड़ी ही सुंदर है और वो अंदर से साड़ी लेकर आ गई और अपनी बहू अदिति को दिखाने लगी, ये देखकर अदिति की त्योरियां चढ़ गई,” वाह !! मम्मी जी आपके इस उम्र में भी शौक खत्म नहीं होते हैं, तीज का क्या है, उस पर कोई भी साड़ी पहन लेते, इतनी सारी साड़ियां रखी तो है, एक तो इतनी महंगाई और आपके खर्चे ही खत्म नहीं होते हैं, फिर आपको इस उम्र में अब करना भी क्या है? आपकी उम्र की तो  महिलाएं राम -नाम की माला जपती है, और आप है कि  अभी तक इन साड़ियों और चूड़ियों और इस साज-सज्जा में उलझी हुई रहती हो, तीज कोई बड़ा त्योहार तो नहीं है”।

हेमा जी ने कोई जवाब नहीं दिया और चुपचाप अपने कमरे में चली गई, नीतेश जी ने ये सब देखा और पूछा।

क्या हुआ? इतने गुस्से में क्यों हो ?

हेमा जी बोली, ‘बहू के ऐसे शब्द सुनकर मेरा खून खौल गया है, पर मैंने उससे कुछ कहा नहीं, बिना बात त्योहार पर झगड़ा हो जाता, पर मै कब तक चुप रहूं?’

‘हेमा, तुझे साड़ी का शौक है तो तू ले आई, और फिर मुझसे पैसे लेकर गई थी, बहू कुछ कहती हैं तो उसे दिल पर मत ले, कल हम मैंचिग की चूड़ियां लेने चलेंगे।’

‘ये आजकल की लड़कियां क्या जानें, तीज त्योहार कैसे मनाते हैं? ये तो बस अपने काम में ही लगी रहती है, इन्हें नौकरी करने से फुर्सत ही नहीं मिलती है तो ये त्योहार क्या मनायेंगी, अभी उसे कुछ मत कह, वो ऑफिस से थकी हुई आई है, हम कल बात करेंगे”।

अगले दिन सिंजारा था, अदिति तो ऑफिस चली गई और हेमा जी अपने पति के साथ चूड़ी बाजार जाकर मैंचिंग की चूड़ियां ले आई और साड़ी की मैंचिग का सिला सिलाया ब्लाऊज ले आई, दोपहर को ही सब खाने की तैयारी कर ली और शाम को मेहंदी वाली को बुलाकर चारो हाथ-पैर में मेंहदी लगवा ली।

शाम को अदिति घर आई तो देखा कि सास के चारों हाथ-पैरों में मेहंदी लगी हुई थी  और वो ये देखकर जोर से हंसने लगी, ” मम्मी जी आप पर भी जवानी आ रही है जो चारों हाथ-पैरों में मेहंदी लगाई है, पांचों अंगुलियों में वैसे ही मेहंदी लगा लेती, सास बन गई पर नखरे तो नई -नवेली बहू की तरह करती है। उम्र हो गई पर शौक है कि खत्म ही नहीं हो रहे हैं”।

ऐसे शब्द सुनकर फिर से हेमा जी का खून खौल गया, पर वो खुद को संयत करते हुए बोली,  बहू मै सास बन गई हूं, इसका ये मतलब नहीं है कि मेरा जीवन खत्म हो गया है, मै अभी तक सुहागन हूं, जिस प्रकार मेरे होने से तुम्हारी जिंदगी पर कोई फर्क नहीं पड़ता है, तुम अपने हिसाब से रहती हो,

 त्योहार पर  कुछ भी नहीं करती हो, बस नाम की चुन्नी सिर पर डाल लेती हो, पांच अंगुली पर मेहंदी लगा लेती हो और पूजा कर लेती हो, ये तुम्हारी मर्जी है ।

लेकिन मेरी भी बात सुनो, ‘सास बन गई हूं पर मै सुहागन हूं और सुहागन जिस तरह से रहती है, मुझे उसी तरह रहना पसंद है, मुझे शौक है कि मै त्योहार पर अपने पति के लिए संवरू, नई साड़ी पहनूं, चूड़ियां पहनूं, हाथों में मेहंदी लगाऊं, ये सब मेरी खुशी है मेरी मर्जी है, जब मै तुम्हे नहीं टोकतीं तो तुम्हें भी ये अधिकार नहीं है कि तुम मुझे टोको और कमेंट करो, और हां, ये सब चीजें मै अपने पति के पैसों से लाई हूं तो तुम्हें महंगाई का रोना नहीं रोना चाहिए, जैसा घर पहले चल रहा था, अभी भी वैसा ही चलेगा, मेरे साड़ी लाने से कुछ फर्क नहीं पड़ जायेगा।

बहू, “ये तो अपने शौक की बात है, सास बन गई हूं तो क्या जीना छोड़ दूं? तुम तुम्हारे पति के लिए कुछ नहीं करती, इसका मतलब ये थोड़ी है, मै भी करना छोड़ दूं? कल तीज का त्योहार है, गौरी माता की पूजा करनी है, तुम्हारा मन करे तो सुबह तैयार होकर पूजा के लिए चलना, वैसे मै तुम पर दबाव नहीं डालूंगी”।

लेकिन, एक बात कहना चाहुंगी,” जब तक सुहाग है, तब तक ही पत्नियां ये सब नखरे करती है, जरा एक बार अपनी भाभी के बारे में सोच लेना, जो तुम्हारे भैया के जाने के बाद उजड़ सी गई है “।

अदिति ये सुनकर चुप हो गई, और अपने कमरे में चली गई।

रात को हेमा जी का बेटा विक्रम भी ऑफिस से आ गया, अपनी मम्मी के हाथों में लगी मेहंदी देखी तो वो भी बोला, ‘अदिति तुमने मेहंदी नहीं लगाई, कल तीज का त्योहार है। 

विक्रम मुझे ये सब ढकोसले पसंद नहीं है, इन सबको करने से क्या होता है? य सब फालतू लोगों के काम है, मुझे तो अपने ऑफिस बहुत से काम है, काम निपटाऊं या मेहंदी लगाऊं?

तुम भी लगा लेती मेहंदी, मुझे मेहंदी रचे हाथ बहुत सुंदर लगते हैं, वैसे भी कल तो रविवार है, छुट्टी है, पूजा आराम से हो जायेगी, विक्रम ने कहा।

अदिति और विक्रम की शादी को कुछ ही महीने हुए है, अदिति एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करती है, और व्यस्त रहती है, उसे इन सबका जरा भी शौक नहीं है, और विक्रम ने शुरू से अपनी मम्मी को ये सब करते देखा है, तो उसे बहुत अच्छा लगता है।

रात को विक्रम तो सो गया पर अदिति की आंखों में नींद नहीं थी, उसके बड़े भाई और उसमें चार साल का अंतर था,  नेहा भाभी जब आई थी तो बड़ी सजी-धजी सी रहती थी, उन्हें कपड़ों, गहनों, मेहंदी का बड़ा शौक था, नित नई रंगीन साड़ियां खरीदती रहती थी, हंसती मुस्कुराती भाभी सबका दिल जीत लेती थी।

शादी को पांच साल ही हुए थे कि एक दिन  बड़े भैया सडक दुर्घटना में चल बसे, भाभी का जीवन ही रंगहीन हो गया, सारे शौक रखे रह गये, वो निराश  रहने लगी थी। 

अदिति उस वक्त कॉलेज में  पढ़ती थी, वो भाभी का दुख समझती थी, मां को भी बहुत दुख पहुंचा था।

उसके बाद तीज आई तो अपने सूने हाथों को वो देखकर रोती रही, मां ने शगुन की मेंहदी लगाई, तो अदिति ने टोक दिया, मां, भाभी इतनी परेशान हैं, और आपने मेहंदी लगा ली?

“हां, मै तो सुहागन हूं ना,  त्योहार है, बिना मेहंदी के कैसे रह सकती हूं ? बेटा नहीं रहा पर मेरा सुहाग तो जीवित है। 

अदिति को सारी बातें याद आ गई, वो भी तो सुहागन है, इन सब चीजों की कीमत उससे पूछो जिनसे उनका सुहाग छीन गया है, वो एकदम से उठी और रात को ड्राइंग रूम में गई, और मेहंदी की कोन ढूंढने लगी, जो हेमा जी पहले ही ज्यादा खरीद कर लाई थी, उसने रात को ही पांचों अंगुलियां मेहंदी से लगा ली।

सुबह जब विक्रम उठा तो उसके हाथों में मेहंदी देखकर उसकी आंखें भी खुशी से चमक गई।

तभी वो बोली मम्मी जी तो अपने लिए नई साड़ी ले आई है, और मै क्या पहनूंगी? मेरे पास तो कोई हरी साड़ी भी नहीं है?

तभी विक्रम अलमारी खोलता है और एक थैली निकालकर उसे दे देता है, अदिति झट से वो खोलती है, तो देखती है, उसमें साड़ी के साथ रेडीमेड ब्लाऊज और मैंचिग चूड़ियां भी है।

अरे!! वाह ये सब आप मेरे लिए लाये हो, आपको पता था कि मै तीज करने वाली हूं “।

“नहीं, मै कुछ नहीं लाया ये सब तो मम्मी तुम्हारे लिए लाई है, तुम्हारी पहली तीज जो है, साड़ी पसंद आई या नहीं?

“बहुत सुंदर है!!, अदिति जल्दी से तैयार हो गई, और हेमा जी के कमरे में गई,” अपनी बहू को सजी संवरी देखकर उन्होंने तुरंत उसके काला टीका लगा दिया, ” मेरी बहू को किसी की नजर नहीं लगे”।

मम्मी जी मुझे माफ कर दीजिए, मैंने आपको बहुत कुछ सुनाया और आपका दिल भी दुखाया, आपने तो मुझे कितनी बार बोला, पर मै आपकी भावनाओं की ही खिल्ली उड़ाती रही।

” अदिति, सुहागन होना भी ईश्वर का आशीर्वाद है, जो रीति-रिवाज बन गये है, उन्हें निभाने से हमें खुशी ही मिलती है, घर में सकारात्मक माहौल रहता है, सजी-धजी पत्नी तो हर पति के मन को भाती है।

बहू, हर त्योहार किसी ना किसी कारण से मनाया जाता है, एक हमारे त्योहार मनाने से हमारे पति भी खुश रहते हैं , और उन दुकानदारों का परिवार भी खुश रहता है, जिनसे हम सामान खरीदते हैं। ये तीज-त्योहार सबके चेहरे पर खुशी ले आता है।

मै अकेले अपने लिए ही साड़ी नहीं लाई थी, मुझे पता था, तुम्हारा भी पहला त्योहार है, तो तुम भी नई साड़ी ही पहनोगी, वैसे भी सजना-संवरना हम पत्नियों का अधिकार है, तो भला हम क्यों इसमें पीछे रहें?

तुम नौकरी करती हो, तुम्हारे पास समय नहीं होता है, पर फिर भी तुमने रात को मेहंदी लगाई, सुबह उठकर तैयार हो गई क्योंकि अपने सुहाग के लिए पत्नी कुछ भी कर सकती है, चाहें वो पढ़ी-लिखी नौकरी पेशा हो या आम घरेलू महिला हो।

माता ने हमें सुहाग दे रखा है तो हमें उसका सम्मान करना चाहिए, इसमें उम्र का कोई बंधन नहीं होता है, शरीर बूढ़ा होता है पर पति के लिए मन की भावनाएं कभी नहीं बदलती है।

अदिति सब समझ गई थी, उसने हेमा जी के साथ मिलकर पूजा की और आगे से अपनी सास को सजने-संवरने के लिए ताना देना बंद कर दिया।

पाठकों, सजने -संवरने खुश होने की कोई उम्र नहीं होती है, बस दिल में भावना और लगन होनी चाहिए, शौक हो तो वो हर उम्र में पूरा हो सकता है। हमें अपने शौक को जिंदा रखना चाहिए।

अर्चना खंडेलवाल

मौलिक अप्रकाशित रचना

1 thought on “सास बन गई हूं, पर मै सुहागन हूं – अर्चना खंडेलवाल  : Moral stories in hindi”

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!