रब है दोस्ती – *नम्रता सरन”सोना”*

“अब कहां गए, आपके वह तथाकथित दोस्त, जिनके लिए आप एक पैर पर तैयार बैठे रहते हैं, कोई एक नज़र नहीं आता, पूछा किसी ने आपसे,कि इतने समय से फैक्ट्री बंद पड़ी है,तुम्हारा घर कैसे चलता है, किसी ने टोह तक नहीं ली, बाकी सब तो ठीक है, निमेष की फीस का क्या करें, अब नहीं जमा की तो, एग्जाम में नहीं बैठने देंगे” रश्मि ने झुंझलाते हुए विमलेश से कहा।

“तुम दोस्तों को क्यों बीच में लाती हो,अब इस समय सभी परेशान हैं, करता हूं कुछ ” विमलेश ने जवाब दिया।

“क्यों न लाऊं दोस्तों को बीच में, आपके दोस्त तो, हमसे भी बढ़कर है आपके लिए, फिर क्यों किसी एक ने भी खबर नहीं ली,हुंह, सिर्फ खाने और दिखाने के है यह लोग” रश्मि पैर पटकती हुई वहां से चली गई। तभी विमलेश का फोन बजा।

“हेलो, कहो यार , क्या हालचाल है?”विमलेश ने कहा।

“बढ़िया है, मस्त हैं,तू बता, तेरा सब कैसा चल रहा है? उधर से आवाज़ आई।

“बस यार, हालत खस्ता है,कई दिनों से काम बंद है, जमा पूंजी खर्च हो गई, अब तो खाना खर्चा, निमेष की फीस तक भरना मुश्किल हो रहा है,अभी इसी बात पर रश्मि से अनबन हो गई” विमलेश ने दिल हल्का किया।

“वाह रे विमलेश बाबू, बस यही है तुम्हारी दोस्ती, एक बार बोलते तो सही, मैं भी परेशान था, इसलिए इतने दिन तुझसे बात नहीं कर पाया, पर अब हालात बेहतर है, सुन, मैं तेरे घर आ रहा हूं, ओके”कहकर उधर से फोन कट गया।

कुछ ही देर में विमलेश के घर की डोरबेल बजी, विमलेश ने दरवाजा खोला तो देखा, सामने शिरीष और मुकुल खड़े थे, दोनों के हाथ में बड़े-बड़े झोले थे।

“आओ यार, बड़े दिनों बाद मुलाकात हो रही है”विमलेश ने फीकी हंसी हंसते हुए कहा।

“हां, और इसीलिए तूने हमें खारिज ही कर दिया, कैसा दोस्त है रे तू, भाभीजी ओ भाभीजी, ज़रा बाहर तो आईए आप” शिरीष ने रश्मि को पुकारा, रश्मि कुछ सोचकर, फुफकारती हुई बैठक में आई।

“ये लीजिए भाभीजी, तीन चार महीनों का राशन है, और आप निमेष की फीस बुक दीजिए, अभी फीस भर कर आते हैं, ऐसे कैसे एग्जाम नहीं देने देंगे,चल यार,सोच मत,आधी आधी रोटी खाएंगे, दोस्त हैं तो क्या सिर्फ मौज मस्ती के लिए, नहीं यार , दोस्ती अच्छा बुरा समय नहीं देखती, एक दोस्त ही हैं जो हर हाल में आपके साथ रहता है, क्यों भाभीजी , मैं सही कह रहा हूं ना”शिरीष ने रश्मि से कहा, रश्मि की भरी आंखें ,छलक गई, रुंधे हुए गले से बस यही निकला-

सच्ची बात है भाई साहब, रब है दोस्ती”

 

*नम्रता सरन”सोना”*

भोपाल मध्यप्रदेश

रचना मौलिक एवं अप्रकाशित है‌।

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