पहचान – भगवती सक्सेना गौड़

राधा को कुछ जरूरी काम से दिल्ली जाना पड़ा। ट्रेन में बहुत भीड़ थी रिजर्वेशन का कोई मतलब नही समझ आ रहा था,लखनऊ से चढ़ने वाले धक्का मुक्की भी कर रहे थे। अचानक लगा पीछे से किसी ने सूटकेस राधा के पैर पर  रख दिया। वो जोर से चिल्ला पड़ी,”अंधे हो क्या, बच गयी, वर्ना बहुत तेज़ लगती।”

 

“सॉरी, मैडम, गलती हो गयी।”

 

सीट पर सामने वही सज्जन थे, कुछ ही देर में राधा ने अंदाज़ लगाया, इनकी आंखे शून्य में ताक रही हैं, लगता है देख नही पा रहे।

 

अचानक जब चेहरे को ध्यान से देखा उसके मुंह से निकला, मोहन तुम।

 

“कौन, मेरा नाम कैसे जानती हो।”

 

“याद करो, कॉलेज में कोई तुम्हारा दोस्त था क्या, तुम तो कहते थे, लाखो में भी पहचान लूँगा। मैं राधा, तुम्हारी दोस्त।”

 

राधा और मोहन तीन वर्षों तक कॉलेज में एक क्लास में पढ़े थे, एक साथ बैठते, खाते, घूमते थे। लोगो को रश्क होता था, कि इनमें कैसी दोस्ती है। कुछ लोग शक भी करते थे, कहीं कुछ प्यार व्यार तो नही। पर धीरे धीरे हमारे व्यवहार से सबको विश्वास हो गया।

मोहन राधा से कहता, बड़ी मुश्किल से किसी को कोई करीबी दोस्त मिलता है, कभी भी किसी की बातों में मत आना। हम हमेशा आलोचना-प्रत्यालोचन, राग- द्वेष, दुराव-छिपाव से दूर रहेंगे। विश्वास ही दोस्ती की बुलंद दीवार होती है।



पर, राधा की कॉलेज की पढ़ाई पूरी होते ही उसके पापा ने विवाह तय कर दिया, और वो समय इतना स्वच्छंद नही था, कि कोई लड़की अपने ससुराल में अपने दोस्त का जिक्र भी करे। दिल से भुलाना मुश्किल तो था, पर बंदिशों का ताला लगा दिया, कभी तन्हाई में , कोई परेशानी में याद आ ही जाता था।

 

“मेरी रोशनी तुम ले गयी, और मैं अंधेरे में खो गया।”

 

“कैसे हो, आज नियति ने एक बार फिर राधा और मोहन को कुछ घंटो के लिए मिला दिया। 25 साल बाद तुमसे मिलन हुआ, वो भी इस हाल में, जिन आंखों की मैं हमेशा तारीफ करती थी, वहां अंधेरा कैसे हो गया, बताओ, नही तो दिल फट जाएगा।”

 

“सखी राधा, हालात ने हमे अलग किया, तुम्हे मैं कभी नही भुला पाया, सब कुछ होते हुए भी अंदर अंदर घुलता रहा, डायबिटीज ने घेरा फिर ग्लूकोमा हो गया। आंखों से तो नही पर मैं दिल से पूरी तरह तुमको महसूस कर रहा हूँ।

ईश्वर भी आज हम पर मेहरबान है, देख तो नही सकता वो मोहनी सूरत पर हाथों को छूकर तुम्हे महसूस करना चाहता हूं, सुबह दिल्ली पहुँचने तक हम इन 25 सालों का वृतांत सुनाएंगे और रात भर दोनो बाते कम और आंसू ज्यादा बहाते रहे।”

 

सुबह राधा ने कहा,” मैं कोशिश करती हूं, मेरा बेटा दिल्ली में आंखों का डॉक्टर है, ये उसका कार्ड है, अपने बेटे को साथ लेकर जाना, शायद वो कुछ मदद करे।”

 

राधा और मोहन फिर जुदा हुए।

 

और राधा के बेटे ने मोहन की आंखों का आपरेशन किया और मोहन अपनी आंखों से देखने मे सफल हुआ।

 

स्वरचित

भगवती सक्सेना गौड़

बैंगलोर

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