डरती हूं तुम्हें खो ना दूं –  कुमुद मोहन

 रमेश जी को रात में सीने में दर्द हुआ,पसीना आया और दिल घबराया!सीमा अकेली समझ नहीं पा रही थी इतनी रात किसे जगाऊं,कहां जाऊं,किसे बुलाऊं?

बदहवासी में पड़ोसी मित्रा जी का ही ध्यान आया!कांपते हाथों से फोन लगाया सीमा की घबराई आवाज सुन कर  मित्रा दंपत्ति फौरन चले आए उन्होंने देखा तो बताया “हार्ट अटैक लगता है”सीमा को ढाढस बंधाया और  रमेश जी को अस्पताल में एडमिट करा दिया!

डाक्टर रमेश जी को आइ सी यू में ले गए! कुछ देर बाद एक जूनियर डाक्टर रमेश जी के पैंट,शर्ट,चश्मा,पर्स और मोबाइल सीमा को थमाकर जल्दी से वापस चला गया!

हक्की बक्की सी सीमा कभी रमेश जी का सामान तो कभी ऑपरेशन थियेटर के दरवाज़े पर लगे लाल बल्ब को देख रही थी!उसकी आंख से आंसू थे और मुँह पर महामृत्युंजय मंत्र  “त्रयंबकम यजामहे!

मित्रा जी ने अस्पताल की कागजी कारवाई पूरी की और सीमा जी को कहा”भाभी! आप पैसों की चिंता ना करें मैने ए टी एम से निकाल कर भर दियें हैं!बच्चे आ जाऐंगे तो मैं ले लूंगा”

सीमा जी ने कृतज्ञ नज़रों से मित्रा जी का धन्यवाद किया और हाथ जोड़कर बोली आज आपने भगवान बनकर मेरी मदद की!

मित्रा जी ने पूछा क्या बच्चों को खबर कर दूं?

सीमा जी-अब आधी रात को क्यों परेशान करें,बेचारे रात में कहां भागेंगे,सुबह बता देंगे!

सीमा और रमेश के दो बेटे थे बडा रमन बैंगलोर और छोटा नमन मुम्बई में बड़ी बड़ी कम्पनियों में नौकरी कर रहे थे!दोनों अपने अपने परिवारों में अपनी ही दुनिया में मस्त थे!

बेटी निधी का ब्याह उन्होंने एक बिज़नेस परिवार में किया था !उसके सास-ससुर तो एक तरफ पति भी बहुत लालची निकला !अपने पास बहुत पैसा होते हुए भी उनकी यही इच्छा रहती कि निधी अपने मां-बाप से जब-तब पैसे और सामान सट्टा लाया करती रहे!



रमेश जी की ऐंजियोप्लास्टी हो गई!

सीमा रात भर अस्पताल के लाउंज में कुर्सी पर बैठी रही!

रह रहकर सीमा के सामने चलचित्र की तरह अपने और रमेश जी की शादी,बच्चे,घर ,दोनों की ज़िन्दगी की खट्टी-मीठी यादें, शुरू शुरू में सासू मां की ज्यादतियां,उनकी गलत सलत बातों पर भी रमेश जी का कोई प्रतिक्रिया न देना,बहन के आगे सीमा को कुछ न समझना,इन सब कारणों की वजह से सीमा जी रमेश जी से पूरे समर्पण से जुड़ाव महसूस नहीं करती थी!

रमेश जी में बदलाव उनकी मां के जाने के बाद आया!सीमा ने भी पुराना सबकुछ भूलकर रमेश जी के साथ अपनी नई ज़िन्दगी की शुरुआत की!

बच्चे बड़े होकर अपनी अपनी राह चले गए! रह गए  ये दोनों एक दूसरे के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित होकर!

रमेश जी के रिटायर होने के बाद तो उनका जुड़ाव और भी गहरा होता गया!

जैसे जैसे उम्र बढ़ रही थी दोनों एक दूसरे का ज्यादा से ज्यादा ख्याल रखते!बाथरूम में किसी को जरा सी देर होती तो दूसरा परेशान हो उठता!

रमेश जी अकेले बैंक या बाज़ार जाते तो सीमा जरा सी देर में परेशान हो उठती!

एक दूसरे के खाने पीने और दवा दारू का हर वक्त ख्याल रखते!

रमेश जी तो सीमा जरा बहुत भी इधर-उधर हो जाती “कहां हो -कहां हो “कहते पूरे घर में ढूंढ़ने लगते!

दोनों मन ही मन डरते अगर एक भी अकेला रह गया तो दूसरा कैसे रहेगा!

शुरू से दोनों अकेले रहते आए थे अब इस उम्र में अपना घर सबकुछ छोड़कर बच्चों के साथ कैसे रह पाऐंगे अक्सर सोचा करते!

सीमा रात भर यही सोचकर घबराती रही कि भगवान न करे अगर रमेश जी को कुछ हो गया तो वह क्या करेगी?

इन्हीं ख़यालों में डूबते उतराते कब सुबह हो गई सीमा को पता ही नहीं चला!

सुबह-सुबह सीमा ने रमन और नमन को रमेश जी के हार्ट अटैक के बारे में बताया!

रमन बोला”अब ऐंजियोप्लास्टी तो हो ही चुकी है,अब एकदम भागने से फायदा नहीं!अगले हफ्ते देखता हूं”

नमन भी बहाना बनाकर टाल गया उसने ये जरूर पूछ लिया कि पैसों की जरूरत हो तो बता दें!

सीमा असहाय सी बैठी रह गई जब उसे सबसे ज़्यादा बच्चों की जरूरत थी तभी वे उसके साथ खड़ें नही हुए! उनका दिल बहुत दुखा!


खैर !वो तो सीमा और रमेश अपनी बचत के बारे में हमेशा सजग रहते थे!हारी बीमारी कहकर नहीं आती यह सोचकर उन्होंने रमेश जी की पैंशन से भविष्य के लिए पैसा बचा रखा था ताकि कभी बच्चों के सामने कभी हाथ ना फैलाना पड़े!

रमेश जी का इंश्योरेंस भी था सो पैसे की कोई दिक्कत नहीं हुई!

अस्पताल से डिस्चार्ज होने के दो दिन बाद अचानक तीनों बच्चे आ पहुंचे!

सीमा जी और रमेश जी बहुत खुश हुए कि बच्चों को उनकी कितनी परवाह है, बेचारे अपना परिवार छोड़कर आ गए!

सीमा और रमेश जी को अपनी सोच पर पछतावा हो रहा था कि बेकार ही अपने बच्चों के लिए गलत और बेफिजूल की बातें सोच रहे थे!जो दर्द  बच्चों को मां-बाप के लिए होगा वह किसी पराऐ को थोड़े ही महसूस होगा!

सीमा जी ने रमेश जी की देखभाल में दिनरात एक कर दिया!उनकी सेवा और बच्चों के आ जाने से रमेश जी बेहतर महसूस कर रहे थे!

तीनों बच्चे भी काफ़ी टाइम बाद मिले थे वो भी रमन नमन अपनी पत्नियों और निधी अपने पति के बगैर इसलिए बातें खतम ही नहीं हो रही थीं!देर रात तक वे बतियाते रहते!

एक दिन रात को सीमा जी पानी लेने उठी तो बेटों और बेटी की आवाज सुन कर उनके कमरे के आगे ठिठक कर रूक गई! छोटा नमन बड़े भाई से कह रहा था “भैया  दिन  यूं ही बीत जाऐंगे अब कल पापा की विल बना कर उनके दस्तख़त करवा लो!रमन बोला “हां ठीक कह रहे हो इसबार तो पापा ठीक हो गए अगली बार अगर सीवीयर अटैक आया तो बाद में कोर्ट कचहरी का झंझट होगा!आधी तुम्हारे आधी अपने नाम लिखा लेता हूं”

सीमा जी के हाथ पैर कांपने लगे तभी निधी की आवाज सुनाई दी”वाह भाई लोगो!बहुत अच्छे !अरे अब तो मां-बाप की प्रॉपर्टी में बेटी का हिस्सा भी होता है मेरा भी बराबर का हिस्सा लिखो!मेरी सास और इन्होंने तो मुझे भेजा ही इस शर्त पर कि अगर पापा को कुछ हो गया तो मैं भी अपना हिस्सा लिए बिना ना लौटूं!”

सीमा जी में और कुछ सुने की हिम्मत नहीं थी!वे किसी तरह लड़खड़ाती धम से आकर बिस्तर पर गिर गई! “कहाँ चली गई थी?मैं परेशान हो गया था”!रमेश जी ने सीमा जी को पूछा?

सीमा ने रमेश जी की छाती से लग उन्हें अपनी बाहों में जकड़ कर कहा”तुम जल्दी से ठीक हो जाओ,वादा करो मुझे अकेला छोड़कर नहीं जाओगे!”

“अरे भई मैं कहाँ जाऊंगा तुमने सावित्री बनकर मेरे प्राण जो बचा लिये?”रमेश जी ने दुलारते हुए सीमा जी को सोने को कहा!

सुबह बच्चे कहीं बाहर गए तो सीमा जी ने रमेश जी को सब बताया!

दोनों ने निर्णय किया कि उनके मित्र रविन्द्र जी अपने एन जी ओ के लिए बहुत दिनों से उनके दो कमरे किराए पर लेने को कह रहे थे जिसमें वे एक नाश्ता केंद्र खोलना चाह रहे थे जिसमें वे बेसहारा और गरीब महिलाओं को रोज़गार देकर उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करना चाह रहे थे!


पर सीमा और रमेश जी हमेशा ये कहकर मना कर देते कि बच्चे भले ही साल दो साल में आते हैं आऐंगे और उन्हें अपने ही घर में आराम न मिले ऐसा कैसे हो सकता है!

रविन्द्र जी कहते थे कि सीमा जी इतना बढ़िया खाना बनाती हैं उनकी देखरेख में महिलाऐं जो नाश्ता बनाऐंगी वह निश्चित रूप से स्वादिष्ट और सेहत मंद होगा!सीमा जी का मन भी लगा रहेगा!

उसका नाम होगा “सीमा नाश्ता केंद्र “!

रमेश जी ने फौरन रविन्द्र जी से बात करके दो कमरे किराए पर दे दिये!

फिर उन्होंने अपने वकील को बुलाकर अपनी विल लिखा दी कि उनके बाद उनकी पूरी सम्पत्ति उनकी पत्नि सीमा को मिले !

साथ सीमा जी की विल करा दी कि उनके बाद यह पूरा मकान सीमा नाश्ता केंद्र के पास

रहे जिससे बेसहारा ,परित्यक्ता और गरीब महिलाओं की रोजी रोटी चलती रहे!

बाकी जो बैंक बैलेंस होगा वह तीनों बच्चों में बराबर बंट जाए! रमेश जी ने उनपर मित्रा जी और रविन्द्र जी के विटनेस के रूप में दस्तख़त भी करा दिये!

तीनों बच्चे आऐ तो रमेश जी ने दोनों की विल उन्हें पकड़ा दी!

तीनों एक दूसरे का मुँह देखते हुए वहां से चल दिये और वापस जाने के लिए सामान पैक करने लगे!

दोस्तों

रमेश जी सीमा जी ने ठीक किया या उन्हें अपने जीते जी सबकुछ बच्चों के हवाले कर देना चाहिए था?अपने कमेंट अवश्य दें!धन्यवाद

आपकी

कुमुद मोहन

9 thoughts on “डरती हूं तुम्हें खो ना दूं –  कुमुद मोहन”

  1. संपत्ति उन्होंने अर्जित की थी।भविष्य में उसका कैसे उपयोग हो,कौन उपयोग करे, इसका सही फैसला करने का हक उन्हीं का है।एकदम सही फैसला था।

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  2. एक दम सही फैसला। अगर औलाद ऐसी हो तो बिलकुल सही फैसला

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  3. Apne jite ji kabhi sanatan ke naam property nahi karni chaahiye. Anyatha Singhania jaisi haalat ho sakti hai. Agar will kiye bina mar gaye to bhi legal waris ko property milegi.

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