पुनर्मिलन – प्रीती सक्सेना

      आज ऑफिस का पहला दिन ,, कॉलेज खत्म होने के बाद,,, बहुत ही रोमांचक और उत्तेजना से भरपूर ,महसूस कर रही थी जिया,, नया शहर,,, नए लोग,, नया माहौल,,, फिर भी अपने हिसाब से अपने को,,, प्रेजेंटेबल,, करके ऑफिस आई थी। जिया ।

     कुछ और भी न्यू ज्वाइनिंग थी,,, परिचय हुआ,,, और सब अपनी टीम लीडर के चेंबर में मीटिंग के लिए,, चले गए। आज पहला दिन था,, ज्यादा कुछ तो नहीं किया,,, पर समझ आया की,, काम कठिन है,,, भरपूर मेहनत तो करना पड़ेगी।

          दूसरे दिन लिफ्ट में कुछ लोग मिले,,, हैलो मैडम,,, आप न्यू ज्वाइनिंग हैं,?? जी हां,,, ओके ओके,,, मैं भी आपके ही ऑफिस में हूं,,, मैं जतिन,,, मैं जिया,,, खुशी हुई आपसे मिलकर,,,, बस इतनी सी बात हुई और उनके ऑफिस की फ्लोर आ गई।

      कुछ दिनों में जिया,, काफ़ी अच्छे से पूरा काम समझ गईं,,, वो एक फैमिली के साथ पेइंग गेस्ट,,, के तौर पर रह रही थी,,, बस पति पत्नी थे,,, बच्चे छुट्टियों में कभी कभार आया करते थे।

अंकल, आंटी, अच्छे थे,, मन लग गया था उसका।

     हफ्ते के पांच दिन तो अच्छे से निकल जाते थे,,, पर शनिवार,, रविवार का दिन,, काटे नहीं करता था,,, शनिवार को तो,, आंटी,, दोनो समय का खाना नाश्ता दे देती,,,, पर सन्डे शाम को उन्होंने मना कर दिया था।

     अकेले जाने का दिल तो नहीं कर रहा  था,,, पर भूख लग रही तो हिम्मत करके,,, एक रेस्टोरेंट पहुंचीं,,,, अपनी पसन्द की डिश ऑर्डर की,,,, जैसे ही,,, पहला निवाला,, मुंह में लिया,,, एक जानी, पहचानी आवाज आई,,, क्या मैं,, यहां बैठ सकता हूं। एकदम चौंक गईं,,,, देखा तो जतिन था,,, ओह श्योर,,, प्लीज बैठिए,,, दरअसल सभी टेबल्स भरी हुई हैं,,, आप अकेले दिखी तो मैने पूछ लिया,,, कोई दिक्कत तो नहीं आपको,,,, नहीं नहीं,, ऐसी कोई बात नहीं,,, मैं तो खुद भी अकेलापन महसूस कर रही थी।


      उस दिन जतिन से काफ़ी सारी बातें हुईं,,, अच्छा खुश मिजाज़,,, इन्सान लगा

    मेरी फैमिली पुणे में थी,,,, छुट्टियों में घर जाना आसान था,, जब भी छुट्टियां मिलती,,, मैं

घर चली जाती,, मम्मी पापा  भी निश्चिंत थे,, मेरे पास रहने से ।

       जतिन से अक्सर मुलाकातें,,, होती रहती थीं,,, उसकी,, निष्फिकर हंसी,,, बिंदास व्यवहार,, अच्छा तो लगने लगा था,, पर,, अपनी तरफ़ से कोई संकेत उन दोनों ने ही नहीं दिया था  ।

    शनिवार को,,, लिफ्ट में जतिन मिल गया,,,, हाई,, जिया,,, आज का क्या प्रोग्राम है??? कुछ भी नहीं,,, घर जाऊंगी,, नहाकर,,, आंटी के हाथ का खाना खाऊंगी,,, कुछ देर,, मम्मी पापा,, भाई से बात करूंगी,,,, गाने सुनूंगी,,, फिर सो जाऊंगी,,, तुम्हारे घर के पास ही ,, बढ़िया रेस्टोरेंट है,,, चलें,, वहीं डिनर करते हैं,,,, खयाल बुरा तो नहीं,,, एक बार आंटी को, इनफॉर्म कर देती हूं,,, वरना वो मेरा डिनर बना लेंगी।

 

     घर आकर जतिन के बारे में सोचती रही,, कोई संकेत तो दिया नहीं,,, पर कोई बात तो है,,, उसे मेरी कंपनी अच्छी लगने लगी है,,, वरना,, दोस्तों को छोड़कर,, वो मेरे साथ क्यों आता।

       मम्मी अक्सर पूछती थीं,,, कोई पसन्द हो तो बताना बेटा,,, हमें कोई ऐतराज नहीं,,, मैने जतिन के बारे में बताया तो,, पर प्यार जैसा कुछ नहीं,,, ये भी कह दिया।

         ऑफिस की छुट्टियां हुईं,,, तीन दिन के लिए पुणे आ गईं,,, जतिन के रोज फोन आ गए,, मम्मी, मुस्कुराने लगीं,,, मैं झेंप गई,, सच में मम्मी ऐसा कुछ नहीं है

       संडे शाम मैं मुंबई निकलने वाले थी,,, अचानक डोर बैल बजी,,, दरवाज़ा,, पापा ने खोला,,, सामने जतिन था,,, मेरा दिल जैसे हलक,,, में फंस गया,,, ये यहां कैसे????

    बेतकल्लुफी से अंदर आया,,, मम्मी पापा के,,, पैर छुए,,, भाई को गले लगा लिया,,, आराम से बैठकर इस तरह बातें करने लगा,,, मानो,, जन्मों से पहचान हो।

      मम्मी पापा को साफ साफ कह दिया,,, मुझे जिया,, पसन्द है,, शादी करना चाहता  हूं,,, अगर आपका आशीर्वाद हो तो ,,, मेरे पेरेंट्स दिल्ली में हैं,, एक बहन शादीशुदा है,,, मैं अपने पेरेंट्स को,,, जिया के बारे में बता चुका हूं,,, उन्हें कोई ऐतराज नहीं है।


          सब कुछ होता चला गया,,,, और एक महीने के अंदर मैं जतिन की,, दुल्हन बन गई  ।हनीमून के हम  लिए सिंगापुर  गए । एक दूसरे को पाकर बहुत खुश थे हम।

       जतिन के मम्मी पापा शादी के बाद जल्दी ही दिल्ली चले गए,, हमने रोका  पर। रुके नहीं वो।

      जिम्मेदारियां बहुत बढ़ गईं थीं,, घर मैनेज करना,, ऑफिस का काम,,, दिन भर इतनी व्यस्तता रहती की,, मम्मी पापा को फोन भी नहीं कर पाती,, अचानक एक दिन,, दिल्ली से फोन आया,, मम्मी पापा,,, आने वाले हैं,,, मैने अपने हिसाब से सभी तैयारी कर ली,,, साफ सुथरा बेडरूम, वाशरूम,, सारा घर हेल्पर की मदद से चमका लिया।

       जतिन मेरा बहुत ध्यान रखते थे ,,, हम एक दूसरे में इतने खोए रहते थे की,,, कोई और भी हमारे साथ इस घर में रहने वाले हैं,,, ये हम एक दूसरे को बार बार समझाते रहते थे।

 

         मम्मी पापा आए,,, मैने पूरी कोशिश की,,, उन्हें खुश रखने की,,,, मम्मी कुछ कम बोलती थी,,, जतिन से ही ज्यादा बात होती थी उनसे,, मुझसे कोई खास दिलचस्पी कभी दिखाई नहीं उन्होंने,,, मैंने देखा,, वो जतिन का सारा काम  खुद करने की कोशिश करती,,, जतिन के सामने मुझे अपमानित कर देती,,, मैं चुपचाप सहन करती रही,,, इसे उन्होंने मेरी कमजोरी या हार समझा,,, बेटे पर ,, एकाधिकार की भावना ने उन्हें इतना स्वार्थी बना दिया,,,, कि वो जतिन को मेरे खिलाफ करने के लिए,, मोरचा लेकर खड़ी हों गईं,,

     मैं तनाव ग्रस्त होती जा रही,,, अवसाद में डूबती जा रही,,, जतिन कुछ समझाते तो उनसे भी उलझ जाती,,, न जानें हमारे प्यार को किसकी नज़र लग गई,,, मेरा ,,, तिनका तिनका, करके बनाया आशियाना,,, टूटने की कगार पर आ गया,, सोचने समझने की शक्ति ही न रही मुझमें,,, घोर अवसाद की

अवस्था मे पहुंच गईं मैं,,, ऑफिस से छुट्टी लेकर घर में पड़ी रहती,, जतिन,,, भी असमंजस में रहते,,, क्या हो रहा है ,, क्यों हो रहा है,

              जतिन के सामने कुछ,,, मेरे सामने कुछ और ही रूप रहता,, मम्मी का,,,, हारकर मैं,, मम्मी पापा के पास चली गई,,, मुझे विश्वास था,,, जतिन, मेरे बिना नहीं रह पाएंगे,,, मुझे लेने बहुत जल्द आयेंगे,,,, पर मेरा ये भरोसा भी टूट गया,,, पहले रोज फोन आते,, फिर,, कुछ दिनों का अन्तर होने लगा,,,, टूट रही थी मैं,,, बिखर रही थी मैं,,, रोज इन्तजार करती, जतिन का,,, पर वो नहीं आए,,, आया तो तलाक़ का नोटिस,,,, सारे प्रश्न चिन्हों पर विराम,, लग चुका था,,, अब कोई उम्मीद बाकी न रही।

        दो साल गुजर गए,,,, हम हमेशा के लिऐ जुदा हो गए,,,, रह रहकर मैं पुरानी यादों में खो जाती,,, सोचने पर मजबूर हो जाती,,, आख़िर मुझसे जतिन को दूर करके,, मम्मी को क्या मिला,,, क्या बेटे के लिए,,, उनका प्यार इतना संकुचित था कि,,,,, बेटेका ही घर तोड़ दिया।


      मैं दिल्ली में ही जॉब कर रही थी,, जीने की इच्छा मानो खत्म सी हो गई थी,,, मम्मी दोबारा शादी की बात चाहकर भी नहीं कर पाती थीं ।

           आज ऑफिस में इंपोर्टेंट मीटिंग थी,,, जैसे ही लिफ्ट में गई,,,,, सन्नाटे में आ गई सामने जतिन,,,, समझ नहीं आ रहा था कैसी प्रतिक्रिया दूं,,, लिफ्ट से निकली,,, पीछे पीछे जतिन भी आए,,, सामने आकर खड़े हो गए,,, कैसी हो जिया,,,, मैंने आंखो में आंखे डालकर कहा,,, देख लो,,, जैसी छोड़कर गए थे,,, वैसी ही हूं,,, जिंदा हूं,,,, ऐसा मत बोलो,,, क्या हम कहीं बैठकर बात कर सकते हैं???? क्या बात करना है,,, क्या बचा है अब बात करने को,,, सब कुछ तो खतम हो चुका,,,,, प्लीज,,, एक बार,, तुमसे बात करना है मुझे,,,, मेरी इंपोर्टेंट मीटिंग है,,, मैं उसके बाद हाफ डे लेकर,,, यहीं मिलूंगी,,, अपना फोन नम्बर दो जिया,,,, क्यों। ???  कहा तो यहीं मिलूंगी,,,, जतिन ने मेरे हाथ से फोन खींच लिया,,, और अपने फोन पर नंबर ले लिया,,,,, सच कहूं तो बहुत अच्छा लगा मुझे,,, उसका ,,, इस तरह अधिकार दिखाना।

    मीटिंग खत्म हुई,,, नीचे आई तो जतिन को वहीं पाया,,, हम एक रेस्टोरेंट में गए,,, कॉफी पीते पीते,,,, जतिन ने मेरा हाथ अपने हाथों में ले लिया,,, मैंने धीरे से अपना हाथ खींच लिया,,, ये हक,,, नहीं है अब तुम्हें,,,, वो चिल्ला पड़ा,,, क्यो हुआ ऐसा जिया,,, आंखो से आंसू बहते जा रहे थे उसके,,, मैं भी खुद को संभाल नहीं पाई,, खुद को,,, फूट फूटकर,,, रो पड़ीं,,, वक्त का भान ही न रहा,, सारी बातें सिलसिलेवार,, होती चली गई,,, एक दूसरे की गलतियां,,, मम्मी का बीच में आकर दरार डालना,,, सब कुछ।

          कोर्ट में हैं हम,, मम्मी पापा दोस्त सब बहुत खुश  हैं,, हमारे पुनर्मिलन से,,, सामने से,, जतिन के मम्मी पापा को देखकर,,, मेरा खिला चेहरा पीला पड़ गया,,, मम्मी,, ने हाथ जोड़ लिए मेरे सामने, मैने उनके हाथ पकड़ लिए,,,, अपनी सारी हरकतों के लिए माफ़ी मांगी उन्होंने,,, मैंने माफ कर भी दिया,,, ईश्वर ने हमें हमारा प्यार दोबारा ,,, लौटाया है, और कुछ नहीं चाहिए अब।

प्रीती सक्सेना

मौलिक

इंदौर

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