सुकून – कमलेश राणा

 कुछ दिनों से प्रात: भ्रमण शुरू किया है तो लगता है कि प्रकृति ने हमें कितना कुछ दिया है,,, और हम कृत्रिम साधनों में ही सुख ढूढ़ने की कोशिश कर रहे हैं। 

 

  जो ताज़गी सुबह सबेरे बाहर की हवा में है,,,,वह AC ,,कूलर की हवा में कहाँ??जब जड़ी बूटियों की सुगंध से सुवासित हवा शरीर को स्पर्श करती है तो सच मानें,,,तन के साथ ही साथ मन भी प्रफुल्लित हो जाता है। 

 

  चिड़ियों का  मधुर कलरव,मोर का नृत्य,कोयल की कूक,नदी की कलकल ध्वनि ,जंगली फूलों की खुशबू का आनंद ही कुछ अलग है।

 

  साथ ही रास्ते में पड़ने वाले मन्दिरों में भगवान के दर्शन और भग्वत्भजन का लाभ भी मिल जाता है,,,,   जहाँ हम जाते हैं वहाँ मन्दिर के सामने कुछ खेत हैं और कुछ हिस्से में बेंच पड़ी हैं ,,,पर हमारा तो प्रिय स्थान परकोटे की चौड़ी दीवार पर बैठना है,,,,

 

 वहां से पीछे नदी और उसके किनारे के वृक्ष बहुत ही सुन्दर नज़ारा प्रस्तुत करते हैं,,,जब सूरज का लाल गोला पेड़ों के पीछे से निकलकर आता है तो उसका सौंदर्य अप्रतिम होता है ,,,और उस ऊर्जा के असीम स्त्रोत के स्वागत में हाथ स्वमेव ही जुड़ जाते हैं।   

 

 बहुत सारी महिलाओं से मुलाकात भी होती है,,,कुछ योगा करतीं हैं खुले आकाश के नीचे,,बहुत सारे समाचारों के साथ ही साथ लोगों का नजरिया भी पता चलता है।    

 

  पर सबसे अच्छी बात यह है कि अब नई पीढ़ी बुजुर्गों के महत्व को समझने लगी है और अधिक सम्मान भी देने लगी है,,,ऐसा वहां आई प्रौढ़ महिलाओं की बातों से महसूस होता है,,चलो कुछ तो सुखद बदलाव आ रहा है।  

 

  जब वो कहतीं हैं,,आराम से चलेंगे ,,काम तो सारा बहू कर लेती है,,

 


आज मेरी मुलाकात अपनी पड़ोसन से हुई,,,घर तो उनका पास ही है पर मिलना बहुत दिनों में होता है,,वह भी केवल हाय हलो तक ही सीमित है,,,लेकिन आजकल प्रात:भ्रमण के समय हम रोज ही मिल लेते हैं,,काफी समय तक साथ बैठते भी हैं,,,

 

उनकी उम्र लगभग 60वर्ष होगी,,,उनके पति का देहांत हुए 25वर्ष हो गये हैं,,उस समय उनके चार बच्चे थे,बड़े बेटे की उम्र मात्र 14वर्ष थी,,,किस तरह उन्होंने उनको पाला होगा अकेले,,,मैं हमेशा सोचती थी,,,आज तीनों बेटे अपने पैरों पर खड़े हैं,,,5 पोते-पोती भी हैं,,,

 

आज वह अपने परिवार के बारे में बताने लगीं,,,चेहरे से खुशी फूटी ही पड़ रही थी   बोलीं,”बेटे बहुएं बहुत ध्यान रखते हैं मेरा,,,आज मन हुआ तो खाट पर दरी बिछाकर सो गई,,,छोटा बेटा आया,मम्मी गद्दा क्यूँ नहीं  बिछाया,,,मैने कहा,,मुझे ऐसे ही अच्छा लग रहा है,,नहीं,,जल्दी उठो मैं गद्दा ले कर आता हूँ,,बहू से बोला,,तुम इतना भी ध्यान नहीं रखती,,मम्मी कैसे सो रही हैं,,,,फिर रात को थोड़ी ठंड सी लग रही थी,,तभी दूसरा बेटा लघुशंका के लिए उठा,,,कमरे में झाँक कर देखा और अपनी चादर धीरे से उढ़ा गया,,,

 

कभी कोई काम करना चाहूँ तो बहूएं हाथ पकड़ लेती हैं,,मम्मी आप रहने दो,हम कर लेंगे,,,और तो और अगर मैं सो जाऊँ तो सब एक दूसरे से कहेंगे,,,अम्मा सो रही हैं न बिल्कुल आवाज मत करो,,मैं कभी-कभी गुस्सा भी हो जाती हूँ,,,खेलने दो न बच्चों को,,,अम्मा कौन सी ऐसी आफ्लातून हैं  कि जाग गई तो गज़ब हो जाएगा,,,जरा सा कोई चीज उठाने को झुकूं 

तो छोटे बच्चे तुरंत आ जायेंगे,,,दादी हमें बतायें क्या करना है,,हम कर देंगे,,खानपान ,आराम का भी अब बच्चे बहुत ध्यान रखते हैं ,,,

 

उनके चेहरे के  सुकून ने मन को बड़ी तसल्ली दी,,जहाँ आजकल माता पिता के साथ दुर्व्यवहार की खबरें ही ज्यादा सुनाई देती है,,,,,वहां,, ऐसी सकारात्मक बातें सुन कर मन ताज़गी से भर जाता है और सारे दिन खुद को ऊर्जा से भरा हुआ महसूस करती हूँ।

 

कमलेश राणा 

ग्वालियर

 

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