परिवर्तन की लहर – पुष्पा जोशी : hindi stories with moral

hindi stories with moral : आज पॉंच दिन हो गए थे। घर में तनाव का माहौल चल रहा था। कोई किसी से बात नहीं कर रहा था। कोई किसी से कुछ बोलता तो भी बिल्कुल संक्षिप्त में। देवेंद्र बाबू के परिवार में कुल सात सदस्य थे। वे उनकी पत्नी सुशीला। राघव और मीरा उनके बड़े बेटा बहू। रोहन और सुनिता छोटे बेटा बहू जिनकी अभी छह माहिने पूर्व शादी हुई थी,

और बंटी उनका ५ वर्ष का पोता। बात यह थी कि रोहन पॉंच दिन पूर्व रात को बहुत पीकर आया।  सुनिता ने उसे पीने के लिए मना किया, तो उल्टा सीधा बोलने लगा और उसपर हाथ उठा दिया। सुनिता ने उसके उठे हुए हाथ को पकड़ लिया। तभी से वह सुनिता को अनापशनाप बोल रहा है।देवेन्द्र बाबू के दोनों बेटे पीते थे, और घर के लिए यह नई बात नहीं थी।

मीरा को भी राघव की यह आदत बिल्कुल पसन्द‌ नहीं थी पर उसने परिस्थिति से समझौता कर लिया था। सुशीला जी सुनिता को समझा रही थी, बेटा यह रोज का क्लेश अच्छा नहीं है, रोहन को समझाने कोई फायदा नहीं है तू माफी मांग ले, घर में यह तनाव ठीक नहीं है। सुनिता का कहना था कि “जब मैंने कोई गलती नहीं की तो क्यों बर्दाश्त करूँ”

सुनिता पढ़ी लिखी समझदार लड़की थी। उसे भी बुरा लग रहा था कि रोहन उसके सारे काम हाथ से कर रहा है,उससे बात नहीं कर रहा है।मगर, उसके मन में यह विचार भी आ रहा था, कि अगर आज उसने माफी मांगी तो इनकी आदत में सुधार नहीं होगा, और उसकी हालत भी मीरा भाभी जैसी हो जाएगी। राघव भैया आए दिन दारू के नशे में उन्हें अनर्गल बोलते हैं

और हाथ भी उठा देते हैं। बंटी भी सहमा हुआ रहता है।रोहन नौकरी करके आता और घर का यह तनाव उसे भी अच्छा नहीं लगता। ऊपर से अपना काम भी उसे ही करना पड़ता। वह परेशान हो गया था। आखिर आठ दिन के बाद वह सुनिता से बोला ‘अब मैं यह पीने की आदत छोड़ दूंगा। क्या तुम इसमें मेरी मदद करोगी।’  

‘बिल्कुल करूँगी। रोहन में हमेशा तुम्हारे साथ हूँ। बस अपनी यह आदत छोड़ दो, देखो इससे तन, मन, धन तीनों का नुकसान होता है और आने वाली पीढ़ी को भी  हम गलत दिशा देते हैं।’ रोहन का प्रयास और सुनिता के साथ के कारण उसकी पीने की आदत छूट गई। घर में परिवर्तन की लहर आ गई थी और देवेंद्र बाबू बहुत खुश थे उनके मन में एक आशा जग गई थी

कि रोहन को देखकर शायद राघव भी सुधर जाए और परिवार सुखी हो जाए। देवेंद्र बाबू ने कभी बॉटल को छुआ भी नहीं था। वो और सुशीला जी दोनों बच्चों को समझाते थे, मगर उसका उन पर कोई असर नहीं होता था। एक बार राघव की तबियत बहुत खराब हो गई। डॉक्टर ने पीने के लिए बिल्कुल मना कर दिया।

स समय परिवार के सभी लोगों ने उसे समझाया। राघव बंटी को बहुत प्यार करता था,उसके मन में भी यह विचार आया कि अगर मुझे कुछ हो गया तो बंटी का क्या होगा। उन्होंने इस लत को छोड़ने का प्रण किया। परिवार के सभी लोगों ने उसकी सहायता की और उसकी यह लत छूट गई। परिवर्तन की एक लहर ने परिवार में ऐसा परिवर्तन लाया कि सब तरफ खुशहाली छा गई।

प्रेषक-
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित

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