परिवार का साथ जरूरी है – लतिका श्रीवास्तव  : Moral stories in hindi

पीहू की पीर कौन समझेगा!! जान से ज्यादा प्यारा था उसे अपना कैरियर।हो भी क्यों ना बचपन से एक स्वप्न जो उसके दिल में दिमाग ने बुन लिया था वह आकार लेने को छटपटाता रहता था।

और इतने बरसों की अथक मेहनत संघर्ष के बाद आज जब वह मौका आया कि वह विदेश में अपने मनपसंद कॉलेज में अपना कैरियर ऊंचाइयों पर ले जाती तभी उसके मांपापा ने उसकी शादी का ऐलान कर दिया था।

बहुत हो गई तुम्हारी पढ़ाई लिखाई जितना हम कर सकते थे अपना कर्तव्य कर दिया अब पहले शादी कर लो फिर जहां भी बाहर पढ़ने या नौकरी करने जाना हो जाती रहना… पिता ने धीमी किंतु दृढ़ लहजे में अपना निश्चय सुना दिया था और मां भी लगभग उनकी बात से सहमत ही थी।

पीहू के लिए पिता के ये बदले तेवर सहन कर पाना कठिन हो गया था पहली बार यूं अचानक पिता का अपने खिलाफ जाना  वह स्वीकार नहीं कर पा रही थी। जो पिता बचपन से अभी तक उसकी पढ़ाई पर ही केंद्रित रहते थे मेरी होनहार बेटी मेरी नाक है तू… मेरा गर्व है तू कहते नही थकते थे .. उसके हर क्लास में प्रथम आते ही मिठाई लेने दौड़ पड़ते थे और पूरे मोहले में अपने पूरे ऑफिस में सबको खिलाते रहते थे … भविष्य के सुनहरे रुपहले सपने उसकी आंखों में बोते रहते थे … वही आज उसके जीवन के सबसे स्वर्णिम अवसर पर पीछे हट रहे हैं.. अभी तक तो हर कदम पर हर दुरूह परिस्थिति में मुझे ही निर्णय लेने को बाध्य करते थे कठिनताओं का मुकाबला करने में साथ अडिग खड़े मिलते थे और आज जब मेरा चयन सच में हो गया है तब अचानक मेरे ही निर्णय के खिलाफ हो गए हैं..!!

आपने ठीक से सोच लिया है पीहू को दुख नहीं हो रहा होगा आपके इस तरह कहने का..!पहली बार आप उसके निर्णय के खिलाफ हुए है! मां आनंदी अपने पति राज कमल से चिंता व्यक्त कर रही थीं।

नहीं आनंदी मैं उसके खिलाफ नहीं हूं… मैंने बहुत सोच समझ कर ही ये फैसला लिया है मैं जानता हूं पीहू अभी बहुत नाराज हो रही होगी और दुखी भी लेकिन सब हो जाने के बाद उसे मेरी बात सही ही लगेगी।

लेकिन उसने आपसे ऐसी उम्मीद नहीं की थी …अभी तक आपने उससे शादी के बारे में कभी चर्चा ही नही की थी आनंदी अपनी बेटी की मनःस्थिति से वाकिफ थी।

आनंदी मैं ऐसी चर्चा कैसे करता!! पिता हूं उसका ..अपनी जिंदगी में मैं जो नही कर पाया सब अपनी बेटी से करवाने की जिद ठान ली थी मैंने इसीलिए अपनी इस इकलौती बेटी को ही अपना पुत्र भी मान लिया था… वो सब कुछ जो एक पुत्र कर सकता है मैने अपनी पुत्री से करवाया और मेरी पीहू भी मेरी हर अभिलाषा को पूरी करती गई यकीनन एक पुत्र से भी ज्यादा किया इसने।

फिर अभी इसके चयन पर आप खुश क्यों नही हो रहे हैं आनंदी बोल उठी।

 

सही कह रही हो आनंदी मैं खुश होना चाह रहा हूं पर जाने क्यों एक अनजाना डर मेरी खुशी को ग्रहण लगा रहा है।अचानक मुझे अपनी बेटी बड़ी दिखाई देने लगी है।कन्या दान का सर्वोपरि धर्म मेरे समक्ष चट्टान की तरह खड़ा हो गया है।आनंदी मुझे प्रतीत होने लगा है कि अब इस मोड़ पर या इसके आगे मैं इसके बाहर जाने पर मैं इसके लिए सहारा नहीं बन पाऊंगा कुछ नही कर पाऊंगा … आजकल के जमाने की बढ़ती हुई दुसह्य घटनाओं का आतंक मुझे इसकी शादी करने के उपरांत ही बाहर भेजने को विवश कर रहा है राजकमल जैसे आज दिल की सारी अनकही लेकर बैठ गए थे।

और जो शादी के बाद इसे ऐसा मौका ना मिला तो.!!आप पिता होकर पीछे हट रहे हैं और उसके होने वाले पति से उम्मीद कर रहे हैं…!!क्या आपको अपनी बेटी पर भरोसा नहीं रहा ..! क्या आपको डर है कि आपकी बेटी बाहर जाकर आपसे दूर रहकर अपनी मनमानी करने लगेगी निर्बाध स्वतंत्रता उसे गुमराह और अविवेकी बना देगी आनंदी अपनी बेटी के लिए मुखर हो गई।

नहीं नही आनंदी मुझे अपनी बेटी पर पूरा भरोसा है लेकिन अब उसकी महत्त्वाकांक्ष से डर जाता हूं मेरे ही कारण उसके दिमाग में  नई महत्वाकांक्षाओं का बीजारोपण होता रहा है जो नित पल्लवित होता रहता है शादी विवाह की अवधारणा से तो वह कोसो दूर है ।विवाह जीवन की मतवपूर्ण कड़ी है इसे भी समय पर होना चाहिए इस तथ्य से वह पूर्णतः अनभिज्ञ है… उसकी कोई गलती नही है मैने भी उसे कभी इस बारे बताया ही नहीं  राजकमल के मन में जैसे मथानी चल रही हो।

मैंने तो अक्सर चर्चा करने की कोशिश भी की और उसका मन जानने की भी लेकिन…..आनंदी ने शिकायती लहजे में कहा चाहा था….

….लेकिन मैं जानता हूं मेरे ही कारण उसने तुम्हारी इस तरह की किसी भी बात को सुनने में  कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई और हर बार तुम्हारी ऐसी चर्चा की अवहेलना की हंसी उड़ाई विवाह को उसने एक निहायत ही गैरजरूरी और अपने कैरियर में अवरोध की तरह ही देखा …जब मेरी सभी महत्त्वाकांक्षा पूरी हो जाएंगी तभी मैं शादी करूंगी ऐसी धारणा उसके दिमाग में जम गई ।

कहीं तान्या की शादी हो जाने से तो इस तरह के विचार आपके मन में नहीं आ रहे हैं अचानक आनंदी ने मानो विस्फोट किया !!

हां आनंदी शायद यही सत्य है…अब मैं एक बेटी के  पिता की भांति सोचने लगा हूं अभी तक समाज रिश्तेदारी की बातों की उपेक्षा करने वाला मेरा मन अब उनकी बातों पर ध्यान देने लगा है कि आखिर तो तुम पुत्र के नहीं एक पुत्री  के पिता हो कन्यादान समय पर कर दो वरना ईश्वर को क्या मुंह दिखाओगे यही तो तुम्हारा सबसे बड़ा कर्तव्य है।

छोटे भाई की बेटी तान्या की शादी के समय से ही मुझे एहसास हो रहा है ।पीहू से छोटी है तान्या उसकी शादी हो गई छोटे ने तो शादी तय करने से पहले कई बार मुझसे पूछा था भैया पीहू बड़ी है पहले उसकी शादी होनी चाहिए सब लोग क्या कहेंगे बाद में पीहू की शादी में कोई अड़चन ना आए आप  ठीक से सोच कर बता दीजिए … तान्या के लिए बहुत अच्छा रिश्ता आया है घर द्वार सब बढ़िया है इसीलिए मैंने सोचा अपने इस कर्तव्य से मुक्त हो जाऊं.. अगर आप कहेंगे तो मैं अभी रुक जाता हूं..!!

लेकिन मैं अडिग था नही अभी पीहू अपने पैरो पर खड़ी हो जाए तभी शादी करूंगा … मैने सोचा था पीहू  अब  जॉब कर ही लेगी लेकिन इसने तो और आगे पढ़ाई करने की योजना बना डाली अब जब तक इसकी यह पढ़ाई पूरी नही होगी शादी नही हो पाएगी… समाज रिश्तेदारी के खिलाफ कितनी बार जाऊंगा मैं..अगर इस बीच मुझे कुछ हो गया तो कन्या की शादी ना कर पाने के ऋण से मेरी आत्मा कभी मुक्त नहीं हो पाएगी… मैं क्या करूं आनंदी विचारों के चक्रवात में फंसता जा रहा हूं ..  आज अपनी ही बेटी के निर्णय के खिलाफ मैं उसका पिता खड़ा हूं..!! दुख असमंजस की व्यथा कथा उनके चेहरे पर स्पष्ट हो रही थी।

पिता जी ….. आप बिल्कुल दुखी नहीं होइए आज तक आप की ही प्रेरणा हिम्मत और सारे समाज रिश्तेदारी के खिलाफ जाकर मेरा साथ हमेशा देने के कारण ही तो मैं आपकी बेटी भी पुत्र भी बन कर आज इस मुकाम तक पहुंच सकी हूं … आप ना होते आपकी हिम्मत ना होती तो मेरी भी शादी कब की कर दी गई होती… मेरे कारण आप जरा भी तनाव ना लें अभी भी मैं आपके कहे के खिलाफ नहीं जाऊंगी आप की इच्छा है कि आपकी बेटी अपने पैरो पर खड़ी हो जाए तो मैं बाहर जाकर आगे पढ़ने के विचार को छोड़ कर यहीं मिल रहे जॉब को ज्वाइन कर लेती हूं…. !! अचानक पीहू आकर पिता से लिपट गई थी। राजकमल चकित हो गए और उसकी बातों से मर्माहत से हो गए कुछ भी नही बोल पाए  खामोशी से अपनी बेटी को महसूस करते रह गए जो अपने पिता की चिंता कम करने के लिए खुदअपने खिलाफ होने को तत्पर थी।

 

…तुम्हारी बेटी अपने सपने को त्याग कर तुम्हारी इच्छा की बलि चढ़ जायेगी तो तुम खुद को क्या जवाब दे पाओगे राजकमल… कल किसने देखा है… शादी के बाद अगर तुम्हारी पीहू अपने कैरियर को लेकर दुखी होगी तो क्या तुम सुखी हो जाओगे..!! तुम्हारा कर्तव्य केवल इसकी शादी करके खत्म नहीं होगा बल्कि तुम्हारा कर्तव्य अपनी बेटी को सुखी और संतुष्ट जीवन देना है …अगर तुम अपनी बेटी के सपने को अधूरा तोड़ दोगे तो तुम्हारी आत्मा को मरने के बाद क्या जीते जी भी चैन नहीं मिलेगा…. मानो राजकमल की आत्मा कराह उठी थी।

नहीं बेटी तुझे मौका मिला है अपने स्वप्न हकीकत में बदलने का तू जरूर कर… शादी विवाह पुत्री के सुखी जीवन की मंगल कामना से ही किए जाते हैं…बचपन से अभी तक जो बीजारोपण मैंने तुझमें किया है आज प्रस्फुटित पौधे को पूर्ण विकसित होने की जमीन मिल रही है मैं उसे नही छीनूंगा … हमेशा की तरह मैं आज भी अपनी बेटी के निर्णय के साथ मजबूती से खड़ा हूं … कह जोर से गले से लगा लिया बेटी को जैसे अपनी मजबूती सिद्ध कर रहे हों …!!

पिता जी आप संसार के बेस्ट पिता जी हैं पीहू का गला भर आया था ।

पिता पुत्री के भावातीरेक की बारिश से आनंदी भीग उठी और इस बारिश में इतने दिनों से घर में व्याप्त अबूझ तनाव चिंता अवसाद भी तीव्र गति से बह गया….!

सुनिए फिर जल्दी से जाइए और हमेशा की तरह सोहन हलवाई की दुकान से पेड़े लेकर आइए मोहल्ले भर में बांटना नहीं है क्या..!!आनंदी की मीठी झिड़की सुन पिता पुत्री मुस्कुरा उठे और राजकमल तत्क्षण ही मीठा लेने चल पड़े थे..!!

लतिका श्रीवास्तव

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