पहले मैं पत्नी हूं – शुभ्रा बैनर्जी: Moral stories in hindi

 “मां !ओ मां ,कहां हो तुम?”नीरज हमेशा की तरह चिल्लाते हुए घर में घुसा। सामने ही रवि बैठे थे।बेटे को घूरते हुए कहा”आ गया ,मां का चमचा।”दिशा को हंसी आ गई।यह पहली बार नहीं हुआ था।बाप -बेटे में ज्यादा बात कभी नहीं होती थी।रवि ख़ुद भी गंभीर स्वभाव के थे,बेटा भी उन्हीं पर गया था।अपनी हर छोटी-बड़ी बात मां से ही साझा करता था।दिशा ने कई बार समझाया था “बेटा,अब तू बड़ा हो गया है।

पापा की भी उम्र हो रही है।उनका भी तो मन करता होगा कि तू उनके पास बैठे,बात करें।इतना संकोच क्यों करता है?उनसे भी हंस -बोल लिया कर।”नीरज का एक ही जवाब होता”,बचपन से ही नहीं कर पाया,अब कैसे करूं?ड्यूटी से आते ही तुम धमका देती थी”देख ,अभी थक कर आएं हैं।अभी ज्यादा चांय-चांय मत करना।थोड़ा आराम कर लें,फिर बात करना।वह फिर कभी नहीं आता था।पापा टी वी देखते,और तुम पढ़ाने बैठा देती थी।”

दिशा बाप -बेटे के बीच बढ़ती हुई दूरियों से चिंतित रहने लगी थी।अब वह ज्यादा से ज्यादा कोशिश करने लगी कि उन दोनों में सामान्य बातचीत होने लगे।नीरज के आवाज देने पर जानबूझकर कूदकर आगे नहीं आती थी।रवि भी दिशा के इस बदलाव से दंग थे।अक्सर कहते”तुम मां-बेटे में कोई झगड़ा हुआ है क्या?”दिशा अनजान बनकर पूछती”नहीं तो,क्यों?”रवि कुछ नहीं कहकर चुप हो जाते।दिशा की समझदारी काम कर रही थी।रवि और नीरज के बीच मधुर रिश्ता बन रहा था।रवि के सारे छोटे-बड़े काम अब नीरज कर लेता था।गुस्सैल रवि का स्वभाव भी अब काफी शांत हो गया था।दिशा समझ सकती थी कि अपने बेटे को अपना मजबूत कंधा बना कर एक पिता को आत्मसंतुष्टि का बोध हो रहा था।

पढ़ई पूरी करते-करते रवि के बैंक का काम भी नीरज ही देखने लगा था।नौकरी लगने पर पहली बार बाहर जाते हुए पिता से कहकर मां को अपने साथ ले गया था नीरज।एक महीने तक रहकर उसका नया घर और काम-काज संभालकर दिशा रवि के पास वापस आ गई।

शादी की बात चलने लगी तो नीरज ने अपने पापा को बताया “पापा ,मैं एक लड़की को पसंद करता हूं।सजातीय नहीं है,पर अच्छे घर की है।मां तो जरूर इसके खिलाफ होंगी।आप उन्हें समझा लेंगे ना।”रवि के बताने पर दिशा अचंभित हो गई।जो बेटा अपनी छोटी सी बात मनवाने के लिए मां की सिफारिश लगाता था,आज वह पापा को सिफारिश कर रहा है।अब बेटा पुरुष बन चुका है पूरा।दिशा इस शादी के पक्ष में नहीं थी,क्योंकि रीति-रिवाज बिल्कुल अलग होंगें।सब कुछ सिखाना

पड़ेगा।रवि ने मनाया”जाने दो न,दिशा।कौन सा हमारे साथ रहना है उन्हें।अपनी जिंदगी अपने हिसाब‌ से जीने दो उन्हें।दिशा ने भी सोचा पुरानी परंपराओं को अक्षरशः मानने वाले रवि ने जब रजामंदी दे दी तो,मैं क्यों इस शादी के खिलाफ रहूं,बुरी बनूं।बात यहीं नहीं रुकती।शादी डेस्टिनेशन में होगी।गिने चुने मेहमानों को बुलाया जाएगा।बड़ा होटल होगा।सब अपनी पसंद का खाना खा सकेंगें।वही शादी और रिसेप्शन भी हो जाएगा।

दिशा इस बात से सहमत नहीं।कितने रिश्तेदार हैं,मित्र हैं।किसे छोड़ेंगे?पहली शादी है घर की।आस लगाए बैठें हैं कब से नाते दार कि नीरज की शादी में ये करेंगे,वो करेंगे। अब उनको‌ मना‌ करने का भार मां पर दे दिया।मालूम है ना उसे पापा तो उसकी ही बात मानेंगीं और मां पापा के खिलाफ कभी नहीं‌ जाएगी।दिशा खिलाफ‌ होकर भी रह नहीं‌ पाई ।शादी का‌ खर्च हमारी जमा पूंजी को पार कर रहा था।रवि‌ ने‌ लोन ले लिया।इसका‌ भी‌ विरोध किया दिशा‌ने,पर रवि के सामने एक‌ न‌ चली‌ दिशा की।

स्त्री आखिर‌ में अपने पति और‌बेटे से हार‌ रही‌ थी।पैसों की‌ अंधाधुंध खर्च दिशा‌ से देखी नहीं‌ जा‌ रही थी।सबके सोने के बाद रवि अपना‌साराबैंक एकांउंट चैक कर रहे थे।दिशा से बोले,”कोई नहीं,हमारा घर‌ तो‌ बचा रहेगा‌ ना।छत रहेगी तो‌ हम कुछ नया कर‌ लेंगे।तुम खिलाफ‌मत जाना‌नीरज‌के।उसे बहुत दुख‌होगा।

इसी‌ जोड़ घटाने को‌ करते शादी‌ की‌ तारीख भी‌ पक्की हो‌ गई। गिने-चुने दिशा‌और‌ रवि‌ के कुछ लोग,बाकी‌ सब‌ लड़की वालों‌ के ।दिशा‌ हजम ही‌नहीं कर‌‌ पा रही थी कि,कैसे,नीरज अपने पिता की‌आरथिक अवस्था क़ो नजर अंदाज कर‌ रहा है।बाद मेंऔर‌ खर्च भी होंगे।रवि कैसे संभालेंगे।बेटे से‌ तो‌ मांगना‌ भी मंजूर‌नहीं होगा उन्हें।अपनी‌ प्रतिष्ठा‌ को‌ दांव‌पर नहीं‌ लगा‌ पाएंगे।

रवि की हालत देखकर अपने सारे गहने लाकर‌रवि को‌ दिया और कहा”अपने लाड़ले‌ बेटे‌की बहू को‌ पहनाएंगे हम ये।”रवि‌ छटपटा गया।कितनी मुश्किल से जोड़ जोड़कर ,वो‌भी‌उतनी‌ छोटी‌सी‌ तनख्वाह‌ से बनवाया‌ था दिशा‌ने।चलो‌उसने सिद्ध कर‌ दिया‌किवह अब पूरी तरह से विवाह के खिलाफ‌ नहीं‌ है।ये मांएं‌ बस बच्चों से‌ रूठने‌ और‌ मनाने‌ में कितनी‌ माहिर होती हैं।ले -देकर‌शादी‌ निपटी।गृहप्रवेश में‌ बहू भात बनाने की जिम्मेदारी नई बहू पर पड़ी,तो नीरज कह बैठा”,मैंने आर्डर कर‌ दिया है।आता‌ ही‌ होगा खाना।”रश्मि को अभी कुछ भी बनाना‌ नहीं आता मां।सीख जाएगी।”शिखा‌ ने फिर‌ चुपचाप घर पर ही‌ लोग बुलवाकर‌ खाना‌ बनवाया।

शादी के कुछ दिन‌ बाद‌ ही दोनों‌ हनीमून पर चले गए।जाते हुए एक बार भी पापा से पूछने की जरूरत नहीं‌ समझी।

दिशा‌ घर और बेटे को बदलता देख रही थी।रवि चेहरे पर चिंता और मुंह में झूठी हंसी दिखाएं लगे थे भोज करवाने।शादी‌ के काम निपट‌ गया सकुशल।यही आशीर्वाद है माता‌ रानी‌ का।नीरज शुरू से ही‌ शादी‌ के बाद‌ विदेश‌ जाना‌ चाहता था। भाग-दौड़ के‌ बीच वीजा भी आ गया।रवि बहुत खुश‌ थे कि बेटे के साथ कुछ दिन‌ विदेश जाकर रह आएंगें।नीरज से कहा तो वह बहाने बनाने लगा”पापा,मैं अभी तो एफोर्ड नहीं कर पा रहा,अगले साल पक्का आपको ले जाऊंगा।”दिशा‌ इस‌

बार भी‌ नीरज के खिलाफ नहीं हुई।नई‌-नई शादी है।एक दूसरे को जानने का समय चाहिए ना।हमारे जैसे लड़ते झगड़ते नहीं हैं आजकल के बच्चे।दोनों बराबर घर चलाते हैं।अगली बार मैं‌ ना भी जाऊं तो रवि को भेज दूंगी।बड़ा‌ शौक है उन्हें विदेश घूमने का।”

अगले दिन की फ्लाइट से दोनों यूके चले गए।फोन आते पर कम।दिशा और रवि दोनों एक दूसरे को समझाते कि नई जगह है,समय ही‌ नहीं मिलता होगा।दो साल बाद नीरज और बहू घर आए।बहू मां बनने वाली थी।इस बार भी फैसला रवि की सलाह पर नीरज ने लिया।बहू को मायके रख आया,क्योंकि मैं अब कमजोर हो चुकी‌ थी”।मुझसे ज्यादा कमजोर तो पापा हुएं हैं  नीरज।साइलैंट अटैक‌ आ‌ चुका है। एक ही तमन्ना है दिल में,कि तेरा घर देख आएं,विदेश‌घूम आएं।”नीरज चुप रहा।उसकी चुप्पी‌ के सारे समानार्थी शब्द दिशा के मन में तैर रहे थे।

तीन‌ महीने रुका नीरज,पर अधिकतर अपनी ससुराल में।बहू ने बेटे को जन्म दिया था।नीरज अब उसे छोड़कर रह ही नहीं पाता था।वीजा अवधि खत्म हो रही थी ,सो नाश्ते के समय बताया उसने”मां ,एक जबरदस्त आइडिया आया है दिमाग में।हमारी‌ कंपनी के कांट्रेक्ट में मेरे,पत्नी और बच्चे के अलावा एक इंसान ही जा पाएगा।तुम ऐसा करो,अभी तुम चलो।अगली बार तुम यहां रुकना,पापा हमारे साथ जाएंगे।”उसकी सारी बातें ना जाने क्यों झूठ लगी।रात को‌खाना देते समय नीरज और उसकी बीबी की बात सुनी”अब क्या करूं मैं,पैरेंट्स हैं।जाने की इच्छा है।

तो चलो‌ ना पापा  को‌ ही ले चलतें हैं।अच्छे से डॉक्टर को भी दिखा देंगें।”नीरज कह रहा था ।बहू ने धीरे से कहा “बुद्धू हो क्या तुम?पापा‌ जाकर मेरे लिए सरदर्द ही बनेंगे।मैंने देखा है,मां एक भी काम करने नहीं देतीं,ना पापा को,और ना तुम्हें।मैंने तो तुम्हें सिखा दिया है।पापा को कैसे समझाऊंगी?देखो नीरज हम दोनों काम पर चले जाएंगे,तब घर और बच्चों को कौन संभालेगा।कीपर का चार्ज बहुत ज्यादा है।वेस्ट करने से पेसा क्या फायदा।मां रहेगी तो मेड लगेगी भी और हमारा बच्चा सेफ भी रहेगा।मां खाना भी‌ बना लेंगी।बच्चों को उनसे संस्कार भी सीखने‌ मिलेंगे।”

आज दिशा‌‌ को असलियत समझ आई कि उन्हें वहां‌ घर का काम करवाने इतना बुलावा दिया जा रहा।

रवि खुशी-खुशी दिशा का सामान पैक कर रहे थे।दिशा रवि की  दवाईंयां।कैब आ चुकी थी। बेटे-बहू तैयार होकर रवि के पैर छूकर बोले”पापा आप कुछ दिन एडजस्ट कर लेंगें ना।हम मां को आपसे दूर लेकर जा रहें हैं।वह खुश रहेंगीं वहां।आप अपना खाना और दवाई समय पर लेना।”रवि की आंखों से आंसू झरता देखकर दिशा ने पूछा “क्या हुआ,मैं जा रही तो अच्छा लग रहा होगा।अपनी मनमर्जी करोगे।रवि ने दिशा का हांथ पकड़कर कहा”मैं ग़लत था।सोचता था बेटे पिता के करीब होतें हैं।मैं ग़लत था,बेटे हर उम्र में मां के करीब ही होतें हैं।तुम्हें तो भगवान का शुक्रिया अदा करना चाहिए,कि बेटा और बहू के साथ जा रही हो।अगली बार‌मैं आ जाऊंगा ना तुमसे मिलने।”

पति के भोलेपन पर दिशा को‌ हंसी आ गई।अपना बैग अनपैक कर दिया उसने।यह शायद पहली बार था कि वह बेटे के किसी बात के खिलाफ जा रही थीं।नीरज ‌भौंचक्का‌ होकर  बोला”ये क्या मां,तुमने अपना बैग क्यों खोला?।वहां‌कुछ नहीं‌ ह़ोगा तुम्हें।सारे दिन‌में बस सोए रहना है बच्चे के साथ।”

दिशा‌ आज पहली‌ बार‌ पति और‌ बेटे के‌ खिलाफ गई। आज उसके‌ मन पर‌ बरसों से पड़े पत्थर चूर-चूर होकर‌ आंखों से रिस रहे थे।वह नीरज से बोली”मैंने आजतक तुज्ञ्हारे पापा के‌क्या उनके मां-बाप के खिलाफ  भी

नहीं गई।आज‌ मैं  तेरे साथ नहीं जा रही हूं।पापा को अकेला छोड़ कर जाना ठीक नहीं होगा।अभी हमारे बहुत सारे प्लान‌हैं ,जो कम पैसों में‌पूरे हो सकतें हैं।मैं नहीं आ रही नीरज।मेरे लिए पति पहले है,बेटा नहीं।

शुभ्रा बैनर्जी

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