पागल कहीं की – संध्या त्रिपाठी: Moral stories in hindi

         हॅलो मैम….. मैं जिला अस्पताल से बोल रहा हूं …आपकी बेटी रत्ना का प्रसव के पश्चात निधन हो गया है…! कृपया अस्पताल से संपर्क कर मृत शरीर को अपने सुपुर्द लें…।

       क्या.. क्या…?? आपको कोई गलतफहमी हो गई है …मेरी बेटी रत्ना नहीं है …और आपको मेरा फोन नंबर किसने दिया…?  सॉरी …..कह कर सुलोचना ने फोन रख दिया और सोचने लगी आखिर किसी की तो बेटी होगी ना रत्ना… कौन अस्पताल में गर्भवती महिला को छोड़कर चला गया… नवजात शिशु का क्या होगा , भगवान उसकी आत्मा को शांति दे …न जाने कितने सवालों के मध्य दिल से  “ओह ” बोल अपने दैनिक कार्य में सुलोचना व्यस्त हो गई…।

      अगले दिन सुबह-सुबह पेपर पलटते वक्त आंचलिक खबरों वाले कॉलम में अस्पताल वाली घटना का जिक्र ……सुलोचना की उत्सुकता बढ़ गई …आंखें गड़ा कर घटना वाली खबर के साथ लगे रत्ना की तस्वीर को देखा……

     रामेश्वर ओ रामेश्वर …..हमारी कावेरी ….जोर से चिल्लाते हुए बगल वाले कमरे में बैठे पति को पेपर दिखाया…फोटो कुछ स्पष्ट नहीं थी  .. रामेश्वर ने सुलोचना के मानसिक स्थिति को भांपते हुए  सांत्वना देने के अंदाज में बोले … नहीं सुलोचना ये रत्ना है …!

          कैसी बातें कर रहे हो रामेश्वर…? दुनिया की कोई भी माँ अपने बच्चों को पहचानने में कभी भूल नहीं कर सकती…. हां वो तो है  लेकिन  , चलो जल्दी करो अस्पताल चलते हैं … आनन-फानन में दोनों पति-पत्नी अस्पताल पहुंचे … सारी जानकारियां इकट्ठी की गई ..तब पता चला कि……. 

  प्रसव पीड़ा से व्याकुल एक नवयुवक इस रत्ना नाम की महिला को लेकर आया था और जल्दी-जल्दी में इसका नाम शायद रत्ना ही बताया था और जो फोन नंबर दिया था…एक पर कोई फोन उठा ही नहीं रहा था  और दूसरा… जिस पर अस्पताल से सुलोचना के पास फोन गया था वो  युवक बात करके , महिला को भर्ती कर , कुछ जरूरी दवाइयां और पैसों का इन्तजाम करने को कहकर  गया…… महिला की हालत काफी नाजुक थी ….फिर वो युवक लौटकर आया ही नहीं…!

       सर  , वो नवजात बच्ची कहां है…? सुलोचना ने अधीर होते हुए पूछा …अभी हमारे अस्पताल में ही उसे विशेष निगरानी कक्ष में रखा गया है…. पर आप लोग कौन हैं ..? और इतनी जानकारी आपको क्यों चाहिए… क्या आपको बच्चा गोद लेना है..?

  आपके अस्पताल से कल जिसे फोन किया गया था वो मैं ही हूं सर….

पर आपने तो कल मना कर दिया था फिर आज …?  अस्पताल के अधिकारी ने आश्चर्य से पूछा…!

     हां सर मुझे भी समझने में देर हो गई …..बहुत देर……

…..काफी समय पहले की बात है……

प्रेगनेंसी टेस्ट… पॉजिटिव रिपोर्ट…! सुलोचना के खुशी का ठिकाना ही ना रहा …आखिर हो भी क्यों ना शादी के पाँच सालों बाद ये खुशखबरी जो मिली थी ….दोनों पति-पत्नी मन में न जाने कितने सपने संजोए भावी मेहमान के आने का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे….. रामेश्वर मुझे तो बिटिया चाहिए …..लड़कियों के फ्रॉक झबले ड्रेसेज कितने प्यारे-प्यारे मिलते हैं…. रामेश्वर के सीने में सिर रखकर प्यार से सुलोचना कहती …..हाँ सुलोचना मुझे भी तुम्हारी ही छाया चाहिए , बेटी के रूप में ….और दोनों प्यार से एक दूसरे का हाथ थाम लेते…।

..भगवान ने दोनों की विनती सुन ली..

बिल्कुल सामान्य बच्चों की तरह ही तो पैदा हुई थी कावेरी ….बिल्कुल सामान्य …..साधारण नैन नक्श वाली कावेरी पहली संतान जिसे पूरे परिवार का भरपूर प्यार मिल रहा था ….शुरू शुरू में तो सब कुछ सामान्य था पर जैसे-जैसे कावेरी बड़ी होती गई उसकी कुछ गतिविधियां  असामान्य सी होने लगी थी ….बात-बात पर चिढ़ना ..रोना …अनावश्यक हंसना… कुछ ऐसी हरकतें जो सामान्य से परे होती थी ….सुलोचना को कावेरी की ये हरकतें असामान्य लगने लगी…. अतएव उन्होंने डॉक्टर को दिखाने की सोची….!

     पहली बार पता चला कि…. कावेरी का दिमाग सामान्य बच्चों से कुछ कम है …यह जानकर सुलोचना और रामेश्वर के पैरों तले जैसे जमीन ही खिसक गए ….

जैसे-जैसे कावेरी बढ़ती जा रही थी उसकी शैतानियां भी उतनी ही रफ्तार से बढ़ रही थी ….सुलोचना खून के घूंट पीकर रह जाती …एक दिन की बात है कामवाली सहायिका के ना आने पर सुलोचना झाड़ू पोछा कर जैसे ही रसोई में आई…. कावेरी ने फुल स्पीड में पंखा चलाकर एक बर्तन में मुरमुरे (मुर्रा ) रख उड़ा रही थी और जब सारे घर में मुरमुरे बिखर जाते तो वो ताली बजा बजा कर खूब हंसती…!

     अचानक सुलोचना की नजर कमरे में बिखरे मुरमुरे पर गई ….व्यस्तता और काम की अधिकता की वजह से थकी  हारी सुलोचना ने कसकर कावेरी को डांटा ….ये क्या की है….?  ” पागल कहीं की ” और हल्के से गाल पर एक थप्पड़ भी लगा दिए ….डरी सहमी कावेरी पर्दे  के पीछे छिप गई… कावेरी के बड़ी-बड़ी आंखों में , मोटे आंसू की बूंदे बस लुढ़कने ही वाले थे…. सुलोचना झट जाकर कावेरी को गले से लगा लिया और बोली ….मुझे माफ कर दे मेरी बच्ची…. मैंने तुझे पागल कहा ….मैं जानती हूं फिर भी…. और खुद भी रोने लगी….

कई बड़े अस्पतालों के चक्कर भी काटे , दवाइयां दी गई पर कावेरी पर कोई असर ही नहीं हो रहा था हालांकि कभी-कभी कावेरी का व्यवहार बहुत सामान्य भी होता था…।

 जैसे-जैसे कावेरी बड़ी हो रही थी सुलोचना और रामेश्वर की परेशानियां भी बढ़ती जा रही थी कई लोगों ने सलाह दी कि किसी ऐसी संस्था में डाल दो जहां इस प्रकार के बच्चों की देखरेख होती है और उन्हें मानसिक रूप से सुधारने का प्रयास किया जाता है …एक बार दिल पर पत्थर रखकर पति-पत्नी ने किसी संस्था से संपर्क भी किया और वहां जाकर बच्चों को देखने की इच्छा जाहिर की पहले तो उन लोगों ने बच्चों से मिलने या दिखाने में आनाकानी की ..पर सुलोचना के विशेष आग्रह पर उन्होंने बच्चों को दूर से देखने की अनुमति दे दी….. कुछ बच्चे गहरी नींद में सो रहे थे सुलोचना के मस्तिष्क में गलतफहमी ने जन्म लिया… कि कहीं इन्हें नींद की दवाई देकर सुलाया तो नहीं जाता…. और इसी आशंका से वह अपनी बच्ची को वहां छोड़ना नहीं चाहती थी…!

     अब भगवान की नियति और अपनी किस्मत मानकर दोनों पति-पत्नी इन परिस्थितियों से संघर्ष करने को तैयार हो गए और अपने पास ही कावेरी को रखने की सोची…

उतार-चढ़ाव के मध्य समय बीतता गया …थोड़ा बहुत घर के कामों में कावेरी हाथ भी बटाती थी… बड़ी मशक्कत कर आठवीं की परीक्षा भी पास कर ली थी कावेरी ने… मोहल्ले के बच्चे कभी-कभी कावेरी को चिढ़ाते भी थे वह बहुत चिढ़ जाती थी गुस्सा भी करती थी …कावेरी के घर के पास में ही रहने वाले एक निर्धन परिवार का बच्चा महेंद्र भी कावेरी के स्कूल में ही पड़ता था… और कहीं ना कहीं महेंद्र , कावेरी के प्रति सहानुभूति या दया भी रखता था…।

   महेंद्र हर उस बच्चों से पंगा लेने को तैयार रहता जो कावेरी को छेड़ते या तंग करते थे.. हर मुसीबत में कावेरी का रक्षा कवच बन सामने खड़ा हो जाता था… कावेरी का एक महेंद्र ही तो दोस्त था…।

   कभी-कभी विषम परिस्थितियों में कावेरी की आंखें भी महेंद्र को तलाशती थी… शायद बुद्धि कम होने के बाद भी , अनजाने में ही सही…. किसी का परवाह करना.. भावनाओं का एहसास करना कावेरी को अच्छा लगता था…।

     एक दिन मोहल्ले में एक बारात आई …सजी-धजी दुल्हन को देख कावेरी ने सुलोचना से कहा ….माँ मुझे भी ऐसी दुल्हन बनना है …आंखों में आंसू भरे मन में तड़प लिए सुलोचना मन ही मन सोची…. अरे तुझसे कौन शादी करेगा मेरी लाडो…!

मैं तो तुझे दिन-रात ध्यान देकर संभालती हूं …तू ससुराल में जाकर क्या संभालेगी… वहां तुझे कौन संभालेगा… पहले समझदार बन जा फिर दुल्हन बनना …इतना ही तो कह पाई थी सुलोचना कावेरी से…!

     कावेरी की बात सुनकर पास में ही खड़ा महेंद्र मुस्कुरा रहा था मानो कह रहा हो मैं करूंगा कावेरी शादी तुमसे…! 

  सुलोचना की बात सुनकर महेंद्र ने पूछा… आंटी क्या शादी सिर्फ घर संभालने के लिए ही की जाती है… ससुराल में लड़कियों को कोई नहीं संभाल सकता क्या…?

   महेंद्र की बातें सुनकर सुलोचना मुस्कुरा पड़ी…. सोची ..बच्चा है ना तू… इसीलिए ऐसी बातें कर रहा है… जब हकीकत से पाला पड़ेगा ना तो तू भी पीछे हट जाएगा…!

बात आई गई और खत्म हो गई …समय बीतने के साथ कावेरी ने भी जवानी के दलहीज पर कदम रखा… सुलोचना और रामेश्वर की चिंताएं दिन दुगनी रात चौगुनी बढ़ती जा रही थी….।

तेरा दिमाग खराब हो गया है क्या …??   उस पगली से शादी करेगा…?   हम गरीब जरूर हैं लेकिन… आगे महेंद्र की माँ कुछ कहती …महेंद्र के पिता ने कहा रुको महेंद्र की माँ ….इतनी जल्दबाजी न करो….. शायद कावेरी अकेली संतान थी और शादी के बाद प्रॉपर्टी के लालच में महेंद्र के पिता शादी के लिए तैयार हो चुके थे…!

   सुलोचना कावेरी और महेंद्र के दोस्ती और लगाव को समझती थी.. बहुत कुछ सोच समझकर दोनों परिवार वाले मिलकर शादी के लिए राजी हो गए…।

    शादी के बाद ससुराल में सिर्फ महेंद्र को छोड़कर कावेरी को सब तिरस्कृत ही करते थे…. कावेरी भी समय और मौका देखकर जब महेंद्र घर में नहीं होता तो… रिक्शा कर मायके आ जाती… उसका इस तरह बार-बार मायका आना किसी को पसंद नहीं था शायद महेंद्र को भी नहीं…!  महेंद्र ने तो यहां तक कह दिया था कि आंटी जी आप लोग कावेरी से थोड़ा कम संपर्क रखेंगे तो ही वो स्थिरता से हमारे घर को अपना घर समझ सकेगी…!

  हालांकि महेंद्र भी कभी-कभी कावेरी की नादानियां से तंग होने लगा था… किशोर अवस्था की सहानुभूति और दया मिश्रित प्यार का जब हकीकत से सामना होता है तो बड़ा मुश्किल होता है इस संघर्ष से निकल पाना… बिल्कुल यही हाल महेंद्र का भी हो रहा था..! हालांकि महेंद्र परेशान जरूर था पर  कावेरी से शादी कर कभी पश्चाताप नहीं किया …!

एक दिन कावेरी मायके आ गई थी और वापस जाना ही नहीं चाहती थी.. सुलोचना और रामेश्वर समझा बूझाकर  महेंद्र के साथ वापस ससुराल भेज दिए थे..!

कुछ दिनों बाद महेंद्र और उसका परिवार गांव चला गया था…।

 बीच-बीच में फोन पर बातें भी होती थी…! 

…..तब क्या पता था….

अब तक शायद सुलोचना और रामेश्वर के अलावा अस्पताल के अधिकारी को भी समझ में आ गया था कि कावेरी का नाम रत्ना बताकर उसके माँ-बाप का फोन नंबर और पता बता कर लापता युवक और कोई नहीं कावेरी का पति महेंद्र ही था…..!

पर कावेरी की जगह नाम नाम रत्ना क्यों बताया ….शायद कावेरी की पहचान गुप्त रखना चाहता हो या न जाने क्यों…..?

   नहीं सर ….मुझे कोई केस या खोजबीन  नहीं करनी है ….महेंद्र वाकई में समझदार एवं कावेरी से प्यार करने वाला इंसान है…. मैं तो माँ थी ना सर कावेरी की….

कभी-कभी उसकी हरकतों से इतनी परेशान हो जाती कि लगता… पैदा होते ही मर गई होती तो एक बार कष्ट होता…. ये बार-बार का रोना बर्दाश्त नहीं होता था… मैं जानती हूं इतने लंबे समय वो कावेरी के साथ कैसे बिताया होगा… कितना त्याग किया होगा… कावेरी को रखना और समझना झेलना कोई मामूली बात नहीं थी सर…! और सबसे बड़ी बात महेंद्र ने कभी कोई शिकायत हमसे नहीं की..!

    बस दुख है तो एक बात का सर.. कावेरी की मौत सुहागन हुई है तो अंतिम संस्कार पति के हाथों से होना चाहिए था…! खैर… कम से कम कावेरी को अस्पताल तो पहुंचा कर गया जिससे कावेरी का अंश हमें मिल सका है… महेंद्र जहां भी रहे सुखी रहे खुश रहे…।

    सुलोचना और रामेश्वर नातिन को गोद में लेकर जैसे ही मुड़े… मेन गेट से सायरन बजाते हुए एम्बुलेंस आकर रुकी…. दो युवक एम्बुलेंस  के अंदर से एक पार्थिव शरीर को उतार रहे थे….वहाँ लोग बातें कर रहे थे….पता चला है कि दवाई के पैसे कम पड़ रहे थे ..आनंद फानन में पैसों की तलाश में भटकते हुए किसी ट्रक ने ठोकर मार दी थी जिससे इस युवक की मौत हो गई…!

      एम्बुलेंस से बाहर निकालते वक्त सफेद कपड़ा मुख पर से नीचे लुढ़क गया… ओह महेंद्र…!

ये क्या हो गया …अभी अभी तो मैंने कहा था महेंद्र जहां भी रहे खुश रहे सुखी रहे…  वो कावेरी के साथ ही सुखी और खुश रह सकेगा… शायद इसीलिए भगवान ने उसे भी कावेरी के साथ बुला लिया …अब एक संपूर्ण बुद्धि के साथ नई कावेरी और नए महेंद्र का मिलन हो सकेगा…!

नातिन को गोद में उठाए… बेटी दामाद दोनों के अंतिम संस्कार के लिए निकल पड़े सुलोचना और रामेश्वर..!

नोटः — कहानी है कहानी ही समझ कर पढ़ें अन्यथा ना लें… इस तरह के विशेष बच्चे (स्पेशल चाइल्ड) के संघर्ष पूर्ण जीवन और माता-पिता के चुनौती को बताने का प्रयास मात्र  है..।

 ( स्वरचित मौलिक सर्वाधिकार  सुरक्षित और अप्रकाशित रचना )

# बेटियां जन्मदिवस प्रतियोगिता 

     ( पहली कहानी )

संध्या त्रिपाठी

2 thoughts on “पागल कहीं की – संध्या त्रिपाठी: Moral stories in hindi”

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!