ओ साथी रे तेरे बिना भी क्या जीना – कामिनी केजरीवल : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : जीवन साथी दो अलग अलग शब्दो का एक अभिन्न अखंडित शब्द है जीवनसाथी।यह वह शब्द है जो जिंदगी के ऊंचे नीचे , कच्चेपक्के पथरीले या सहज रास्तो पर एक दूसरे का हाथ पकड़ कर मंजिल तक पहुंचने की कोशिश करता है

     ऐसे साथी से हमेशा के लिए दूर होकर अपनी जिंदगी के चित्र को रंगहीन देखना किसी भी स्त्रीया पुरुष के लिए एक अभिशप्त जीवन को जीना जैसा लगता है पर मैने इस यथार्थ को अपने बहुत ही नजदीक से देखा हैयह कोई कहानी नही बल्कि एक सत्य घटना है जिसे मैने कहानी का मूर्त रूप देने की कोशिश की है

खुशियो ने उसके जीवन मे भी दस्तक दी थी ।याद आती है मुझे वह खूबसूरत शाम जिस दिन जैन साहब अपने मंझले बेटे राज के सर पर लाल सेहरा बांधकर उसकी दुल्हन कृति को अपने घर ले आने के लिए तत्पर होते है, तो दूसरी ओर कृति भी सफेद लहंगे और लाल चुनरी ओढ़ कर अपने सलोने पिया की प्रतीक्षा में बैठी थी। राज अपनी सफेद अचकन और लाल साफे में गजब ढा रहा था तो दूसरी ओर कृति भी सफेद और लाल मैचिंग के आउटफिट में बेहद खूबसूरत लग रही थी। ऐसा लग रहा था विधाता ने खुद अपने हाथों से इस खूबसूरत जोड़ी को संवारा है। आज जैन साहब की खुशियों का ठिकाना था 

रुनझुन रुनझुन पायल की झंकार से बंधी हौलेहौले से अपने मेहंदी रचित पांव को उठाती कृति अपने साजन  के घर गई यहाॅ बिना सास की ससुराल जरूर थी परंतु स्नेहिल ससुर जिठानी जेठ नंदो और प्यारे से देवर ने उसको हाथों हाथ लिया 

  धीरेधीरे वही के माहौल में रचबसकर कृति अपने साजन के साथ छोटेछोटे खट्टे मीठे समय की प्यारी प्यारी यादों को अपने आंचल में बांधती  चली गई , चाहे वह शिमला कुल्लू मनाली में बिताया हुआ हनीमून का ट्रिप हो या मांडू और महेश्वर की फिजाओं में सिमटे हुए प्यार के लम्हे थे ।पैसों की अधिकता थी परंतु प्यार और आपसी सहयोग ने इस कमी को नजरअंदाज कर दिया था और वह दोनों ही अपनी दुनिया को बड़ी ही शिद्दत और प्यार से संवारने में लग गए ।समय का चक्र चलता रहा और साथ ही साथ उनके प्यार की बेल भी परवाह चढ़ने लगी ।इसी प्यार की निशानी नन्ही सी परी   प्रिया के आगमन ने तो उनकी खुशियों में चार चांद ही लगा दिए थे। प्रिया अपने साथसाथ अपने छोटे भाई सिद्धार्थ की खुशखबरी भी लेकर आई ,अब राज और कृति पिया और सिद्धार्थ इन चारों की दुनिया प्यार किलकारियों और अठखेलियों के सुख से रची बची थी। यह वह आदर्श फैमिली थी जिसके दुख सुख सब एक दूसरे के साथ साॅझे थे 

जहां राज अपनी जिंदादिली और हाजिरजवाबी के कारण सभी पार्टियों की जान था तो वही कृति की   मेहमाननवाजी और खातिरदारी चर्चा का विषय का बना रहता ।यह लगता था दोनों एक दूसरे के लिए ही बने हैं। 

 सब कुछ सुचारू रूप से अच्छा चल रहा था एक तरफ राज अपने बिजनेस को आगे बढ़ाने में लगा था तो कृति ने घर और बच्चों की  जिम्मेदारियां की डोर बखूबी संभाल ली थी ।जिंदगी बहुत ऊंचे ऊंचे ख्वाब देखते हुई बढ़ रही थी  कि वक्त ने जैसे पहिया ही बदल दिया हो जिंदगी के कैनवास पर जो सतरंगी रंग बिखरने शुरू ही हुए थे कि ऐसा लगा मानो श्वेत रंगने सब अपने अंदर समा लिया हो

     कृति विश्वास ही नहीं कर पा रही थी कि अभी कुछ घंटे पहले जिसके साथ हाथों में हाथ लेकर वह घूम फिर रही थी शॉपिंग कर रही थी अचानक अचानक वह उसे इतनी दूर चला गया है। उसकी चमकती हुयी  आंखें एकदम निस्तेज शून्य रहित हो गई थी और वह एकदम खामोश और मूक 

  जिस पिता ने अपने हाथों से अपने बेटे का सेहरा सजाया था उन्हीं कांपते  हाथों से जवान बेटे को कंधा देते हुए वही बाप फूट फूट कर रो पड़ा। उन आंखों में अपने दर्द के साथसाथ अपनी  बहू का गम भी शामिल था जो कहीं ना कहीं जो आंसुओं के कतरों में निकल रहा था 

    बेटे को खोने के बाद  जैन साहब की दुनिया बहू और बच्चों के भविष्य की चिंता में लग गई उन्होंने कृति का एडमिशन अच्छे कॉलेज में करा दिया जिससे वो फाइनेंस की पढ़ाई कर सके और खुद साथ ही साथ उसे बिजनेस के गुर भी पूर्वी सिखाने लगे ससुर और बहू का यह रिश्ता अब बाप बेटी कम फ्रेंड जैसा बन गया था रिश्तो में मर्यादा थी पर बात कहने की स्वतंत्रता भी थी

कृति की कम उम्र को ध्यान रखते हुए उन्होंने अपनी बेटियों के माध्यम से कृति से दोबारा विवाह के लिए की बातचीत भी की और यह भी कहा कि वे दोनों बच्चे  अब  उनकी जिम्मेदारी है परंतु कृति ने साथसाथ यह कह कर ना कर दिया कि अब दो नहीं तीनों ही बच्चे उनकी जिम्मेदारी बन चुके हैं अपने कांपते हाथों से उसके सर पर अपना आशीर्वाद देते हुए जैन साहब ने फिर एक कर्मयोगी की तरह अपना जीवन आरंभ कर दिया कृति पहले से काफी कुछ संभल गई। अपने प्यार और लगन से सबके बीच अपने लिए वैसा ही स्थान बना लिया था जैसा कि इस घर के बेटे राज का था सबके लिए सबके साथ बिना किसी शिकवे शिकायत के अपने दर्द  और आंसू को अंदर ही अंदर छुपा कर कर्तव्य के रास्ते पर आगे ही आगे चल रही थी  

        बेशक सिंदूर का लाल रंग उसके साथ नहीं था परंतु परिवार के सदस्यों के अपनेपन और सहयोग ने उसके उस बेरंग जीवन को फिर से सुनहरे रंगों  भरने की कोशिश करने लगे बिना हमसफर के यह सफर तय करना कृति के लिए आसान नहीं था परंतु अपने आत्मविश्वास और राज के साथ देखे गये उसके अधूरे सपने को पूर्ण करने के लिए अपने नाजुक कंधों पर  जिम्मेदारियां के बोझ को डाल दिया   

यह  कहना कि आदमी अपने आप संभल जाएगा बहुत आसान है परंतु जब जीवन की नैया को  खेने  वाली पतवार छूट जाती है तब उस जीवन को फिर से तूफानी लहरों से अपने को अकेले संभालना ,अपने दर्द को छुपाते हुए सबके सामने मुस्कुराते रहना एक नामुमकिन सा काम है ।उसकी  यह एक ऐसी तपस्या है जो निरंतर चलती रहेगी   रेडियो पर बजते हुऐ  गाने के ये शब्द उसके दर्द को  बयां कर रहे थे 

साथी रे तेरे बिना भी क्या जीना

कामिनी केजरीवल

 

1 thought on “ओ साथी रे तेरे बिना भी क्या जीना – कामिनी केजरीवल : Moral Stories in Hindi”

  1. अद्भुत! प्रभावशाली हक़ीक़त का इतना सही विवरण!

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