नम्बर दो – रीटा मक्कड़

आज अकेले बैठे हुए नीरजा फिर से अतीत की यादों में खो गयी थी । उसे वो सब बातें याद आने लगी जिन बातों ने कदम कदम पर उसके दिल को गहरे जख्म दिए थे। हालांकि देखने वालों को यही लगता था कि वो अपने घर संसार और अपने पति बच्चों के साथ बहुत खुशहाल जीवन जी रही थी लेकिन वो जख्म जो उसने दिल के अंदर छुपा रखे थे वो कभी कभी जब भी दोबारा जाग जाते तो उसके तन मन को बहुत लहूलुहान कर देते।

        उसके दर्द की शुरुआत तब हुई जब वो अपने माँ बाप के घर उनकी दूसरी सन्तान के रुप मे पैदा हुई।चूंकि पहली संतान लड़का थी और वो पहले बच्चा होने के कारण उसे हमेशां ज्यादा प्यार और फिर तीसरी और चौथी संतान को भी इसलिए ज्यादा प्यार मिला क्योंकि एक तो छोटी बहन थी और एक भाई वो भी सबसे छोटा और सबका लाडला था।

और उसके हिस्से में आई जिम्मेदारी और बाकी भाई बहनों और घर की देखभाल में माँ की मदद करना।

उसके बाद आई स्कूल की बारी हर क्लास में वो हमेशां अव्वल आती रही लेकिन जब बोर्ड की परीक्षा तो दिन रात एक करके उसने तैयारी की ।जब रिजल्ट आया तो पहले उसको टॉपर घोषित किया गया बाद में पता चला कि किसी और स्टूडेंट के 2 मार्क्स ज्यादा आ गए और वो फिर दूसरे नम्वर पर आ गयी।


 

उसके बाद कॉलेज स्टार्ट हुआ वहां भी वो हमेशां पढ़ाई में अव्वल आती रही ।लेकिन जब फाइनल एग्जाम का रिजल्ट आया तो पता चला कि हमेशां बहुत कम नम्बरों से पास होने वाली एक स्टूडेंट ने टॉप किया है । सभी उस लड़की को बधाई दे रहे थे लेकिन नीरजा जानती थी के उसकी बहन उसी कॉलेज में प्रोफेसर है और उसको किस तरह एग्जाम में धोखे से पेपर करवाये गए। लेकिन खूब मेहनत करने वाली को मिला दूसरा स्थान।उसकी तकलीफ और दर्द किसी को नज़र नही आये।

 

फिर उसकी शादी हो गयी।शादी करके वो जिस घर मे गयी वहां भी पहले से एक बहू यानी उसकी जेठानी मौजूद थी और वो दूसरे नम्बर की ही बहु बन कर रह गयी। जेठानी जिस घर मे पहले से हो उस घर मे अपनी जगह बनाने के लिए दूसरे नम्बर की बहू को बहुत कुछ झेलना और बहुत संघर्ष करना पड़ता है।

ये सब भी वो खुशी खुशी कर लेती लेकिन उसको सबसे बड़ा शूल तो तब लगा जो कि उसके दिल के हर हिस्से को तार तार कर गया जब उसको पता चला कि पति की ज़िंदगी मे भी पहले से कोई थी और वहां भी उसका नम्बर दूसरा ही है। उस पहले नम्बर को वहां से हटा के खुद को दूसरे से पहले नम्बर तक पहुंचने में शायद उसकी पूरी ज़िंदगी भी कम पड़ जाए।

लेकिन औरत अपनी ज़िंदगी मे कदम कदम पर समझौते ही तो करती है तो उसने भी इस बात के साथ समझौता कर लिया था कि ये हमेशां नम्बर दो पर रहना ही उसकी जिंदगी की नियति है।

मौलिक रचना

रीटा मक्कड़

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