नियति को हमारा मिलना मंजूर नहीं था ….अर्चना सिंह: Moral stories in hindi

“शादी” ! मतलब इक नई उमंग, खुशी, उत्साह होता है ।और हर तरफ सब कुछ नया- नया सा लगता है न । ये सब तो उसकी सखियों ने खूब बताया था ।

पर शादी का दूसरा मतलब एक शब्द में कहें तो समझौता भी होता है । बस सखियों ने ये नहीं बताया था ।

स्वाति नाम था उसका । देखने मे अच्छी ,चंचल और बातों में बहुत चुहलपन था । बुआ जब पहली बार उसे देखी तो उसकी तारीफें करती नहीं थक रही थी । बुआ तो देखने मे अति सुंदर थी भी और खुद को भी सुंदर ही समझती थी । बुआ उसे देखकर ही बोली..”ये तो बिल्कुल मेरी भतीजी है , एकदम रंग – रूप, नैन- नक्श मुझ पर गया है ।

तारीफें करते नहीं थकती थी उसकी । धीरे- धीरे बड़ी हो रही थी स्वाति । बुआ का आना- जाना लगा रहता । स्वाति की चंचलता, खुशमिजाजी अनायास ही बुआ को अपनी ओर खींच लेती । बुआ- भतीजी दोनो में # अटूट बंधन बन गया था । जैसे- जैसे बड़ी होने लगी बुआ के घर जाने की ज़िद करने लगी । कभी पढ़ाई, कभी परीक्षा, कभी त्योहार किसी वजह से स्वाति का जाना नहीं ही हो पाया ।

आखिरकार शादी की उम्र होने लगी तो बुआ ने कहा..”तुम्हारी शादी के लिए लड़का मै देखूँगी और अपने ही शहर चंदौली में तुम्हारी शादी कराउंगी ।  स्वाति की माँ खूब खुश होती और दोनो बुआ- भतीजी की जोड़ी को नज़र न लगे ऐसा कहकर निहाल हो जाती ।स्वाति की दादी बस मुस्कुरा के इतना ही कहती..”ज्यादा आगे की योजना मत बनाओ, नज़र लग जाती है ।और वो बुआ का हाथ पकड़े अपने कमरे में चली जाती ।

उम्र हुई , लड़का देखने का सिलसिला शुरू हुआ । इत्तेफ़ाक़ से बुआ के बिन ढूंढे ही लड़का चंदौली शहर का मिल गया ।

अब तो दोनों बुआ भतीजी की खुशी का ठिकाना नहीं था । शादी तय होते ही दोनो ने सपने बुनने शुरू कर दिया । ऐसे मिलेंगे, वैसे मिलेंगे ये सब ।

लेकिन नियति को जाने क्या मंजूर था । कहते हैं न ..”पहले से योजना नहीं बनानी चाहिए । स्वाति के पापा प्रकाश जी ने ससुराल पक्ष वालों को अपनी बहन के बारे में इसलिए नहीं बताया कि कहीं वो लोग ज़िद न करें चंदौली से शादी करने के लिए । जबकि प्रकाश जी चाहते थे उनके शहर मिर्जापुर से शादी हो ताकि सभी रिश्तेदार, दोस्त, सब शामिल हो सकें ।

खैर.. शादी का शुभ मुहूर्त आ ही गया । मिर्जापुर में शादी खूब भव्य तरीके से सम्पन्न हुई ।

शादी के बाद जब विदा होकर स्वाति ससुराल की दहलीज पर आई तो अपना ज़ोरदार स्वागत देखकर उसकी आँखें चुंधिया गईं । पहले तो लगा मानो उसके सपनों को पंख लग गए हों ।

लेकिन ये खुशी ज्यादा दिन की नहीं थी । भीड़- भाड़ से जब स्वाति एकांत में बैठी तो सासु माँ ने उसे बता डाला कि बुआ के घर नहीं जाना, वहाँ से कोई रिश्ता नहीं चलने वाला । पहले तो स्वाति को उसके कानों पर यकीन न हुआ । फिर सासु माँ ने कहा…”अगर हमसे अच्छे सम्बन्ध रखना चाहती हो तो हमेशा के लिए वो घर भूलना होगा । तुम्हारी बुआ और मैं पड़ोसी हुआ करते थे । कितनी बातें बताऊं तुमसे ! बस इतना जान लो, आन की लड़ाई में हमलोग इस कदर अलग हुए की अब एक दूसरे का चेहरा तक नहीं देखना चाहते ।

सासु माँ की कड़क बातें सुनकर चंचल स्वाति सहम गई । विरुद्ध जाना उसके स्वभाव के विपरीत था । लेकिन ये रात उसके जीवन मे सदा टीस लेकर आएगी वो अंदर अंदर सोच रही थी । जब सासु माँ और ननद के साथ रिश्तेदारों के यहाँ, बाजार, कभी मॉल जाती तो उसकी नज़रें बुआ को ढूँढती । उसे लगता एक ही शहर में होने से शायद कहीं किसी जगह बुआ को एक बार देख पाऊँ ।

न स्वाति खुल के हँस पा रही थी और न खुल के रो पा रही थी । अपने ज़ख्म दिखाए भी तो किसे ?

जी चाह रहा था जी भर के रोकर अपनी तकलीफ शांत कर ले और कोई देखे भी नहीं ।

अपने मायके में भी उसने इस बात को बताना जरूरी नहीं समझा ये सोचकर कि क्यों, क्या कैसे इस बात का क्या जवाब देगी ?

अंदर से ऊहापोह चल ही रही थी कि स्वाति की ननद कविता कमरे में घुसकर अठखेली करते हुए बोली..”भाभी ! ये लो कपड़े बदल लो और फटाफट बाहर आओ तुम्हारे साथ एक फोटो लेना है मुझे । फीकी मुस्कान दिखाते हुए स्वाति कपड़े बदलने चली गयी ।

वापस आयी तो सभी रिश्तेदारों की महफ़िल सजी हुई थी और साथ मे उसका पति निलय भी था । वो चाह रही थी कब मौका मिले और कब सासु माँ वाली बात निलय को बताए । ताकि निलय की तरफ से उसे कुछ मरहम मिले । अंताक्षरी खेलते- खेलते सब थक कर सोने चले गए । अब स्वाति निलय के साथ अकेली थी ।

उसने सारी बात निलय को बताई फिर निलय ने भी बोला..”मम्मी चाहती है अगर  न मिलो तब तुम्हें मानना ही पड़ेगा । मम्मी कभी गलत नहीं बोल सकती । मैंने सुना था कि तुम्हारी बुआ का स्वभाव और बातें ठीक नहीं थी इस वजह से दूसरे लोगों से भी लड़ाई होती थी और हमलोगों से भी । अच्छा होगा भूल जाओ । जैसा निलय से जवाब चाहती थी स्वाति वैसा जवाब न पाकर वह दुःखी हो गयी । और बात को यहीं दबा देना उचित समझा ।

फिर भी थोड़ी देर रुककर उसने कहा..जैसे आपकी मम्मी की बात आपको सही लग रही मेरी बुआ हैं वो ,दिल के बहुत करीब । मेरे नज़रिए से भी तो सोचिए ।” बस कोई बहस नहीं चाहिए अब”। बोलकर निलय मुँह घुमाकर सो गया । नए रिश्ते की शुरुआत ऐसे  नहीं चाहती थी स्वाति ।

ये निलय नहीं उसकी माँ का निलय पर तीस सालों से चढ़ा हुआ रंग बोल रहा था । स्वाति भी सहमी सी हो गयी । वो जानती थी कि विरुद्ध जाने पर उसके मम्मी- पापा कभी साथ नहीं देंगे और वो ऐसे माता पिता भी नहीं हैं जो बेटी की एक शिकायत पर ससुराल जाकर उसे समझाएं या उसके मान को अहमियत दें ।

दुखी स्वाति ने खुद के कदमो को घर में ही सीमित कर लिया और चेहरे पर बनावटी मुस्कान का चोला ओढ़कर वो रोजमर्रा में लग गयी । ससुराल में 10 दिन बिताने के बाद अब वह अपने पति के पास चंदौली से ढेर सारे मीठे कड़वे बुआ की यादों के संग कोलकाता लौट गई । किसी इंसान का प्यार भुला देना इतना आसान तो नहीं होता और ये तो रक्त सम्बन्ध था । हर दिन काम करते करते उसे बुआ की बातें, बुआ की हंसी याद आ ही जाती । बीच – बीच मे उसे अक्सर लगता कि बुआ से चुपके से बात कर लूँ पर नहीं हिम्मत कर सकी  । उसने परिस्थितियों पर काबू करना सीख लिया था ।

अच्छे से ज़िन्दगी चल रही थी । स्वाति दो प्यारी बेटियों की माँ बनी । देखते – देखते बुआ से बिन बात हुए तेरह साल बीत गए, वो भी समझ चुकी थी कि बुआ और ससुराल वालों में कुछ ज्यादा ही तनातनी हुई है तभी बुआ ने भी अपनी ओर से पहल न की ।

आज जाने क्या हुआ था । स्वाति काफी बेचैन थी । नींद ही नहीं आ रही थी उसे । फोन में टाइम देखा तो अभी तीन ही बजे थे । कब फोन देखते- देखते उसकी आंख लग गयी पता ही नहीं चला ।

फिर सुबह नींद खुली तो हल्का उजाला हो चुका था । उसने फोन में टाइम देखा तो मम्मी के मैसेज पर नज़र गयी । मेसेज में लिखा हुआ था ..उठ गई? फिर दूसरा मेसेज था अभी नहीं उठी ? ये मेसेज लगातर पाँच बजकर सोलह मिनट और पाँच बजकर अट्ठारह मिनट का था । इतनी सुबह माँ ने क्यों पूछा, अंदर से अनहोनी महसूस हो रही थी लेकिन समझ नहीं आया क्या ।

बाहर टहलने निकली तो माँ के नम्बर पर फोन किया और पापा ने उठाया..स्वाति ने पूछा सब ठीक है पापा ? मम्मी क्या कर रही हैं ? पापा ने मायूसी भरा जवाब दिया…”तुम्हारी बड़ी बुआ नहीं रही । हमलोग वहीं जाने की तैयारी कर रहे । इतना बोलते ही स्वाति के हाथ से फोन  छूट गया और बुआ की सारी बातें दिमाग मे घूमने लग गयी ।

फोन उठाकर स्वाति दूर जाकर एक सीट पर आँखें बंद कर ली और उसकी आँखों से मजबूरी के आँसू कह लें या बुआ से जीवन भर बिछड़ने का दुःख निकलते रहे । अलार्म बज रहा था घर लौटने के लिए । आँखें पोछी स्वाति और घर मे जाकर बच्चों के लिए नाश्ता तैयार करने में जुट गई ।

यूँ तो बच्चों को भेजने के बाद वो पति संग चाय पीते हुए गपशप करती थी । पर उस दिन खुद के लिए उसने चाय नहीं बनाई । बस अपना कपड़ा लिया और उठाकर नहाने चली गयी । नल चलाकर वो चीख कर ऐसे रो रही थी ताकि उसकी रुदन कोई न सुने और अपना मन भी हल्का कर ले । बहते पानी के शोर में उसकी चीख भरी रुदन समाहित होते जा रहे थे ।

समझ ही नहीं पा रही थी वो बुआ को कसूरवार ठहराए , खुद को या फिर निलय के घरवालों को । शीशा देखकर खुद से सवाल कर रही थी वो…”क्या बुआ और उसका साथ इतना ही था, क्या उसके दिल मे इतना प्यार करने वाली बुआ के लिए इतनी ही तड़प थी कि वो चुपके से नहीं मिल सकती थी । बुआ भतीजी का # अटूट बंधन इस कदर टूट जाएगा सपने में भी नहीं सोचा था ।

सोच भी नहीं पाई थी कि इतनी जल्दी ऐसा हो जाएगा । फिर उसकी अंतरात्मा ने जवाब दिया..”जल्दी कहाँ ? तेरह साल कम थोड़ी होते हैं, तुमने हिम्मत ही नहीं दिखाई ।

नहाकर ज्यों ही निकली उसकी दोनो दीदियों का कॉल था । दोनों बुआ के अंतिम दर्शन के लिए जा रही थीं । स्वाति से भी पूछा कि..जाओगी तुम हमारे साथ ? अंतिम दर्शन तो कर लो ।

स्वाति ने मजबूती से एक शब्द में जवाब दिया..”नहीं” । जीते जी नहीं मिल सकी तो मिट्टी को क्या जवाब दूँ ? बड़ी दीदी ने बोला..”आखिरी मौका है स्वाति, निलय जी से पूछ लो वो इतने बेरहम तो कम से कम अब नहीं होंगे ।

स्वाति ने कहा…”निलय जी चाहते तो मुझे कभी भी मिलवा सकते थे दीदी, पर उन्होंने अपनी माँ की सुनी । तब निलय जी नहीं चाहते थे मिलवाना अब मैं नहीं चाहती मिलना ।

नियति को हमारा मिलना ही मंजूर नहीं था । तभी तो इतने बहाने बने, इतनी अड़चनें आईं, और तो और नए बने रिश्ते से खून के रिश्ते इतने कमजोर पड़ गए ।

आज सोचने पर वो बेबस थी कि मैं ही एक रिश्ते के आगे बेबस थी या मेरी जैसी और भी दूसरी औरतें हैं जो मजबूर होकर बनावटी खुशियों का चोला पहनकर ज़िन्दगी जीती हैं ।

फोन के गैलेरी से वह अपनी शादी की बुआ वाली फोटो निकालकर अपने सीने के पास रखकर वह सुबक- सुबक कर रो रही थी । और बुआ को खुद के दिल के करीब महसूस कर रही थी ।

मानो कह रही हो..”न एक शहर में शादी होती न जीवन भर के लिए हमलोग दूर होते ।

अर्चना सिंह

मौलिक, स्वरचित

2 thoughts on “नियति को हमारा मिलना मंजूर नहीं था ….अर्चना सिंह: Moral stories in hindi”

  1. Acchi nahi lagi aapki kahani
    Balki aapko ulta dikhana chahiye tha ki kaise swati ne apni bua aur sasural walon ko ek kiya

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