आभा रो रोकर थक चुकी थी। कोई उसे सांत्वना देने वाला नहीं था। पूरा परिवार चैन की नींद सो रहा था ।उसका पति अभीर भी घोडे बेंच कर सो रहा था ।उसे होश नहीं था कि बगल में लेटी पत्नी रो-रोकर हलकान हो रही है। आभा बैड पर से उठकर खिड़की के पास आकर खड़ी हो गई । पूर्णिमा का चाँद अपनी चाँदनी से पूरे बातावरण को सराबोर कर रहा था। किन्तु उसके जीवन में तो अंधेरा ही अंधेरा था।वह सजल नेत्रों से आसमान में तारों को देखकर अपने मम्मी पापा को खोजने का प्रयास कर रही थी।
कहां चले गये आप लोग मुझे छोड़ कर मुझे भी अपने साथ ले जाते। आप नहीं जानते कि मैं दुनियां में कितनी अकेली तन्हा हूं। किससे कहूं अपना दुख दर्द। किसे अपना राजदार बनाऊँ।
पापा आपको नहीं पता कि आपकी परी, राज- दुलारी, , राजकुमारी न जाने कितने नामों से पुकाराते थे आज कितनी तन्हा, बेबस है। देख सकते हो ऊपर से तो उसकी हालत देख लो ।चाचा-चाची ने मुझे पाला तो जरुर केवल आपकी सम्पती के खातिर। किन्तु उन्होंने आपकी इस परी पर क्या क्या जुल्म नहीं ढाये।
जो चाची कभी मेरे गालों पर प्यार से चुम्बनों की बौछार कर देतीं थीं उन्हीं के हाथ के निशान मेरे गालों पर सुबह शाम छपे रहते हैं । कितना मारती, भूखा रखती काम करवाती, मैं थक कर चूर हो जाती पर कभी प्यार के दो बोल नहीं बोलती। हमेशा कोसना ताने मारना। पापा क्या मैंने आप लोगों को मारा था , आपकी मृत्यु में मेरा क्या दोष किन्तु मुझे ही जिम्मेदार ठहरातीं। पहले तो रोती अब तो आंसू भी सूख गये ।
थोडा बडे होने पर जैसे-तैसे वे मेरी शादी कर जिम्मेदारी से फ्री होना चाहतीं थीं सो बिना सोचे समझे मुझे यहाँ इस नरक में ढकेल दिया। यहाँ मुझे कोई नहीं चाहता । ये लोग एक नम्बर के लालची हैं मुझसे कह रहे हैं कि अपने बाप की संपति में अपना हिस्सा माँगूं । मम्मी आप ही बताओ मैं क्या करूं ।
जिन चाचा-चाची ने मुझे पेटभर खाना नहीं खिलाया, नौकरों की तरह काम करवाया वे क्या मुझे सम्पती में हिस्सा देगें। नहीं लाने पर ये मुझे मारते हैं,घर से निकालने की धमकी देते हैं अब में कहाँ जाऊं बताओ । मेरी हालत तो यह हो रही है, कि कुएं से निकली और खाई में गिरी। सोचा था कि शादी के बाद एक दूसरे घर में जाकर शायद मेरी किस्मत बदल जाए। मुझे प्यार करने वाला परिवार मिल जाए। जीवनसाथी मुझे समझे और मुझे प्यार करे। किन्तु ऐसा कुछ नहीं हुआ मम्मी। आपकी ये गुड़िया तो फुटबाल की तरह एक घर से दूसरे में उछाल दी गई।
मैं अपनी व्यथा किससे कहूँ। सास में, मैं हमेशा आपको ढूंढती हूँ शायद मुझ विन माँ की बच्ची की वो मां बन जाती तो मेरा मन मातृ सुख से तृप्त हो जाता, पर ऐसा नहीं हुआ। ससुर भी मेरे पापा नहीं बन सके ।मेरी हम उम्र एक ननद है उसमें मैं अपनी बहन, सहेली को ढूंढती हूं किन्तु वह कहीं नहीं मिलती। मिलती तो है एक कर्कश ननद जो हमेशा ही मुझे धुतकारती रहती, मेरे ऊपर हुक्म चलाती है ।एक छोटा देवर है वह भी भाई का स्थान न ले सका उसके छोटे-छोटे काम पूरे न होने पर माँ से मेरी शिकायत कर मुझे गलियां दिलवाता है , पिटवाता है।
मम्मी विदाई के समय लडकी को सीख दी
जाती है कि सास-ससुर को माँ-बाप ,ननद देवर को छोटा बहन भाई समझना, मैं ऐसा ही सोचती हूँ फिर भी मुझे प्रताडित क्यों किया जाता है। कितनी प्रताडना सहूँ मैं। दुःख तो मुझे तब ज़्यादा होता है जब आप लोगों को कोसा जाता है, गालियां दी जाती हैं। मरे हुए लोगों के लिए ऐसा बोलना उचित है क्या।
सास हमेशा कहती हैं कि कुछ नहीं आता। कोई काम ढंग से नहीं करती। मां ने क्या सिखाया। अब आप ही बताओ मम्मी उनका ऐसा कहना उचित है क्या जबकि उन्हें अच्छी तरह से मालूम है कि आप मुझे छोटी पांच बर्ष की उम्र में ही छोड गईं थीं । चाची ने कुछ सिखाया नहीं मैं क्या करूं। क्या वे स्वयं मेरी माँ बनकर मुझे सिखा नहीं सकतीं। प्यार से सिखायें तो में सब सीख जाऊँगी किन्तु ऐसा नहीं होता।
ननद देवर को पढते देख मेरी भी इच्छा होती है पढ़ने की । क्या मम्मी लड़कियां ससुराल में पढ नहीं सकतीं। वे मुझे थोडा पढ़ा सकते हैं नहीं केवल अनपढ, गंवार कह कर मेरा अपमान करते हैं। आप लोग होते तो क्या मैं अनपढ़ , गंवार रहती। मेरे को डाक्टर-डाक्टर खेलते देख पापा हमेशा कहते थे मेरी परी को डाक्टर बनाऊंगा। आज उनकी परी नौकरानी बन कर रह गई है। और तो और मम्मी जिनका हाथ पकड़ कर मैं इस अनजान घर में आई थी जो मेरे पति हैं उन्होंने भी मेरा साथ नहीं दिया। न मुझे कोई सम्मान देते हैं , न मेरे दुख दर्द से उन्हें कोई मतलब है।
गन्दी गन्दी गालियां देना, बात बात पर हाथ उठाना , अपमानित करना क्या ऐसे ही व्यक्ति को पति कहते हैं। मेरे पापा तो ऐसे न थे, वे तो आपको कितना प्यार करते थे। ऐसी गालीयां मैंने नहीं सुनी थी न आपको मारते थे तो मेरा पति ऐसा क्यों है यह मेरा दुर्भाग्य ही तो है।
तीन साल हो गए शादी को आजतक मेरे से प्यार से नहीं बोले न कभी मेरे मन की बात समझने की कोशिश की न कभी मेरी कोई इच्छा भी है जानने भी जरूरत समझी। बस दिन भर परिवार बालों की जरूरतें दौड़-दौड़ कर पूरी करो, ताने सुनते हुए और रात को बिस्तर पर पति अपना हक जमाने में कोई कसर नहीं छोडता कि उसकी इच्छा है भी या नहीं कहीं मुझे कोई तकलीफ तो नहीं में तो बस उनके हाथ का खिलौना हूं चाहे जैसे तोड़-मरोड कर काम लिया और मतलब पूरा होने पर करवट बदलकर सो जाना।
अब आप ही बताओ पापा-मम्मी मैं किसलिए, किसके लिए जीऊँ। जब मेरा किसी के लिए कोई आस्तित्व ही नहीं है । मेरा रहना न रहना बराबर है तो क्यों न में इससे मुक्ति पा लूं ।
मम्मी अब मैं बहुत थक गई हूँ अब मुझसे सहन नहीं हो रहा । में आपके पास आना चाहती हूं। आपकी गोद में सिर रख कर सुख की नींद सोना चाहती हूं ।यह तो अच्छा है कि अभी तक कोई बच्चा नहीं हुआ अगर इन लोगों ने मुझे घर से निकाल दिया, चाचा-चाची अब मुझे रखेंगे नहीं, तो उसे लेकर मै कहाँ जाती ये दुनियां बड़ी खौफनाक है अकेली औरत को चैन से जीने नहीं देगी नित्य मर मर कर जिऊंगी।
बच्चा भी मेरी ही तरह दर दर ठोकर खाता भिखारी बनता इससे तो अच्छा है कि में अभी अपनी जीवन लीला समाप्त कर लूँ। पापा – मम्मी आपतो रखोगे न मुझे अपने पास। आप तो प्यार करेंगे न मेरे को जिसकी मैं भूखी हूं। आ रही हूँ मैं मम्मी- कह उसने अपने हाथ की नस काटली और वहीं फर्श पर लेट गई ।
पति वहीं निद्रा सुख में लीन था और वह धीरे -धीरे मृत्यु की और अग्रसर हो रही थी। सुबह जब अभीर ने आवाज लगाई चाय तो दे जा ।बहुत देर तक नहीं आई तो उठकर जैसे ही खड़ा हुआ कमरे में खून देखकर और आभा को इस तरह पडा देखकर चौंक गया। उसने तुरन्त आभा को देखा सांस चल रही थी, हाथ पर पट्टी बाँध अस्पताल ले गया। डाक्टर ने चैक कर जबाब दे दिया। शी इज नो मोर।
यह सुनते ही वह बदहवास सा आभा से लिपट गया,ये क्या किया तुमने ।डाक्टर ने पुलिस को फोन कर दिया। तुरन्त पुलिस आ गई। शव मोर्चरी में रखवा आवश्यक पूछताछ में जुट गई। अब जो होना वह कार्यवाही होती रहेगी किन्तु पंछी तो शरीर रूपी पिंजरे से आजाद हो चुका था। शान्ति की खोज में वह विलीन हो चुकी थी एक आस लिए प्यार पाने की।
शिव कुमारी शुक्ला
स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित
बहुत नकारात्मक दुःख भरी कहानी। पाठक गण अपनीअपनी दैनंदिन की समस्याओ से समय निकाल कर पढते समय कुछ सकारात्मक लेखन की अपेक्षा रखते हैं ।
Bakwaas