न्याय-रीटा मक्कड़

‘बहु…रागिनी बहु

जरा इधर तो आना”

‘जी मम्मी जी”

‘वो कल अंजली बिटिया और दामाद जी आ रहे हैं। खाने में कुछ अच्छा सा बना लेना।तेरे पापा जी बाजार जा रहे हैं।जो चाहिए अभी से मंगा लेना उनसे”

“जी मम्मी जी मैं अभी लिस्ट बना कर लाती हूँ।’

रागिनी जल्दी से ससुर जी को लिस्ट पकड़ा कर रात के खाने की तैयारी में जुट गई। कुछ ही देर में उसके पति राजीव आफिस से आने वाले थे।साथ साथ सुबह की भी जो तैयारी अभी कर सकती थी वो भी करने लगी। सुबह अकेली क्या क्या करेगी।

उसकी ननद शादी के बाद पगफेरे के लिए आई ।लेकिन उसके बाद हनीमून और बाकी सब के चलते दो महीने बाद आ रही हैं।

उसके हाथ तो चल रहे थे।लेकिन उसके दिमाग  में तो पता नही क्या क्या बातें उथल पुथल मचा रही थी।

कितनी सीधी सादी और भोली थी सात साल पहले जब उसकी शादी हुई थी। दुनियादारी की कुछ भी समझ नही थी उसे। ना ही उसे सामने वाले की चालाकियां समझ मे आती। आती भी  कैसे। घर मे चार भाई बहनों से बड़ी थी


होश सम्भालते ही पढ़ाई के साथ घर की जिमेदारियाँ भी उसको मिलती गयी और मिडिल क्लास परिवारों में तो वैसे ही उस टाइम लड़कियों को बाहर घूमने या अकेले कहीं जाने की इजाजत नही मिलती थी।  घर से स्कूल और स्कूल से घर, और फिर ऐसे ही उसने कॉलेज की पढ़ाई पूरी की।

स्नातक की शिक्षा पूरी होते होते ही शादी भी कर दी गयी उसकी। हर लड़की की तरह उसके भी शादी को लेकर बहुत सपने और उमंगे थी। लेकिन  वो सब चकनाचूर हो गए जब शादी करके वो एक ऐसे घर मे गयी जहां ससुराल वाले अपने सभी शौक तो बड़ी बहू के साथ पूरे कर चुके थे।

अब तो बहु के रूप में उन्हें एक काम वाली की जरूरत थी  जो कि पहले से मौजूद बहु की मदद कर सके।ताकि बाकी किसी को कुछ न करना पड़े। दिन रात दोनो बहुएं काम करती फिर भी ननदें बिना बात के परेशान करती । आते जाते कुछ न कुछ चुभने वाली बातें सुना देती। फिर एक दिन जेठ जेठानी भी अलग घर मे शिफ्ट हो गए और वो सब कुछ सहने के लिए बिल्कुल अकेली रह गयी।

 वो इतनी डरती थी कि एक अक्षर न बोल पाती आगे से।और न ही अपने मायके में किसी को कुछ बताती। ऊपर से पति भी कुछ नही बोलते।उसपर होती ज्यादतियां देख कर भी अनदेखा कर देते। सास, ससुर 6 ननदें और साथ मे देवर, जेठ, ओर जेठानी। इतना बड़ा परिवार।


ऊपर से पति का साथ भी सिर्फ बेडरूम तक ही था।उसके बाद कुछ नही।जब भी वो परेशान और दुखी होती या ज्यादा किसी की बात दिल को चुभती तो अपने कमरे में जा कर रो लेती। उसकी एक ननद जो कुंवारी थी उसने तो उसको बहुत ज्यादा परेशान किया ।  लेकिन उसने फिर भी कभी उसको बददुआ नही दी।न ही कभी अपने मुंह से कभी उसके लिए अपशब्द कहे।

सोचते सोचते उसकी आंखें भीग गयी

वो कहते हैं ना किसी दुखी दिल से निकली हुई आवाज  ऊपर तक जाती है और ईश्वर की लाठी में आवाज़ नही होती।

उस ननद की जब शादी हुई तो उसके पति की सात बहने थी यानी सात ननदें।

अगले दिन जब अंजली दामाद जी के साथ आई।रागिनी ने खूब आवभगत की।

जब सब लोग खाना खा रहे थे तो अंजली पानी लेने के बहाने रसोई में रागिनी के पास आई तो रागिनी ने पूछा…”अंजली तुम खुश तो हो न…ससुराल में। दामाद जी अच्छे तो हैं ना।”

“भाभी बस मैं तो हरदम यही सोचती हूँ और आज आपसे पूछना चाहती हूं कि भाभी आप इतने सालों से कैसे इतना सब सह रही हैं फिर भी मुस्कुराते हुए कैसे सब कुछ मैनेज कर लेती हो…”

मौलिक रचना

रीटा मक्कड़

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