नई सोच,नया बदलाव – माधुरी : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : शुभम व नमिता पूरे तीन साल बाद अपने देश इंडिया लौट रहे थे,दोनों के ही मन में बिचारे की उथल-पुथल चल रही थी। पता नही इन तीन सालों में उन दोनों के पेरेंट्स का क्या हाल हुआ होगा।क्यों कि शुभम व नमिता दोनों ही अपने अपने मां बाप के इकलौते थे। हांलांकि कि वे दोनों एक ही आई टी कंपनी में कार्यरत थे,दोनों ने एमबीए भी आईआीएम कैलकटा से किया था, फिर भाग्य से पोस्टिंग भी एक ही कम्पनी में मिल गई। पहले साथ सहपाठी फिर साथ-साथ जॉव तो जान पहचान से शुरू हुआ सफर कब मित्रता से प्यार में बदल गया पता ही नही चला।जव दोनों के मन में ही प्यार का अंकुर फूटने लगा,और उम्र भी शादी के योग्य हो चली,तो दोनों ने ही अपने अपने पेरेंट्स से इस बाबत बात करने की योजना बनाई।

बात कुछ यों थी कि नमिता के पेरेंट्स साउथ इंडियन थे वही शुभम के पेरेंट्स पूरे नॉर्थ इंडियन थे।

एक घर में इडली दोसा को प्राथमिकता दी जाती थी तो दूसरे घर में पूरी कचौरी, लड्डू मठरी के नाश्ते उड़ाए जाते थे।एक परिवार अय्यर था यानी मद्रासी ब्राह्मिन तो दूसरा पूरा बनिया परिवार।

दोनों बच्चे अपने रिश्ते को आगे बढ़ाना चाहते थे लेकिन अपने-अपने पेरेंट्स के आशीर्वाद के साथ। ऑफिस से आने के बाद दोनों इसी हालत विचार करते कि किस तरह अपने अपने पेरेंट्स को इस शादी के लिए राजी किया जाय।इस बीच में इन दोनों की पोस्टिंग तीन साल के लिए न्यूयॉर्क की कम्पनी में कर दी गई। दोनों के मन में चिन्ता के बादल उमड़ रहे थे। पेरेंट्स को इतने लम्बे समय के लिए अकेले किस के सहारे छोड़ा जाय ,दोनों के ही पापा रिटायर हो चुके थे।

एक दिन शुभम ने माइंड में एक आइडिया क्लिक किया क् क्यों न विदेश जाने से पहले हमलोग दोनों परिवारों को एक बड़े वंगले में शिफ्ट करबा दें ताकि एक दूसरे के साथ रहने से न केवल दोनें को एक दूसरे की कम्पनी मिल जायगी और एक-दूसरे के साथ समयभी अच्छे से व्यतीत होगा।

शुभम ने चिंता व्यक्त की कि उसके पापा को डाइबिटीज की प्रोब्लम है यदि कभी उनकी डाइबिटीज ऊपर नीचे होती है तो मेरी मॉम बहुत पैनिक हो जाती हैं, यदि अय्यर अंकल साथ में होंगे तो इस तरह की चिंता नही होगी कि कोई तो है उनकी देखरेख के लिए, तभी नमिता ने भी कहा मेरे अप्पा का ब्लडप्रेशर भी ऊपर नीचे हो जाता है कभी कभी खानपान की गड़बड़ी से गुप्ता अंकल के साथ रहने से मैं भी अप्पा बारे में बेफिक्र रहूंगी।बैसे आइडिया तो तुम्हारा एकदम सॉलिड नई सोच व नया बदलाव के साथ।

पहले नमिता ने अपने घर शुभम के बारे में बात की कि वह शुभम को पसंद करती है व उससे शादी करना चाहती है।

फोन स्पीकर पर होने की वजह से उसकी अम्मा ने जब यह बात सुनी तो कहने लगी,अईअईयो ऐसा कैसे हो सकता जी,हमारी नमिता तो पूरी कचौरी खा-खा कर बीमार ही होजायगी,नही नही उसके हर रोज इडली दोसा खाना ही पसंद है।हम यहां मद्रास में ही अपनी जाति का लड़का देख कर उससे ही शादी करेंगे।

चूंकि स्पीकर पर बात हो रही थी तो नमिता ने जव अपनी अम्मा की बात सुनी तो तुरंत बोलने लगी अम्मा पिछले साल जब आप लोग वाराणसी मंदिर गयेथेऔर फिर मथुरा गए थे तव तो आप यही पूरी कचौरी कितने स्वाद ले ले कर खारही थी और साथ में कमेंट भी घर रहीं थी कि कितना स्वादिष्ट खाना है यहांका।

और अम्मा# पता नही किस ज़माने में जी रही हैं आप ।आजकल जात पात को भला कौन मानता है।दोनों की पसंद नापसंद व बिचारों का तालमेल अधिक मायने रखता है,सुखद जीवन के लिए।

नमिता के अप्पा ने कहा बेटे नमिता तुम चिंता मत करो, मैं तुम्हारी मां को इस शादी में लिए राजी कर ही लूंगा बस शादी से पहले हम लोग एकबार शुभम से जरूर मिलना चाहेंगे।फिर तेरी खुशी में ही हमारी खुशी शामिल है।

दूसरी तरफ जब शुभम ने अपने घर नमिता के बारे में बातचीत की तो उसके पेरेंट्स तो बिना किसी नानुकुर के राजी हो गए इस शादी के लिए। क्योंकि अपने सर्विस पीरियड में शुभम के पापा की पोस्टिंग कुछ सालों के लिए मद्रास में होचुकी थी। अतः उनको मद्रासी बहू से कोई एतराज़ नहीं था।

नमिता शुभम दोनों बहुत खुश थे। शादी से पहले दोनों परिवारों ने एक दूसरे से मिलने का दिन व समय निर्धारित किया। साधारण बातचीत के बाद यह निश्चय किया गया कि शादी से पहले दोनों की कोर्ट मैरिज हो जाय फिर बाद में शुभ मुहूर्त में दोनों की शादी सम्पन्न करवा दी जायगी ताकि विदेश जाने से पहले दोनों पति पत्नी बन कर जांय।

कहते हैं जब ऊपर वाला जोड़ियां बनाता है तो नीचे भी उसी तरह के संयोग जुट ही जाते हैं।शादी करके नमिता व शुभम दोनों तीन साल के लिए न्यूयॉर्क चले गए।दोनों समधियों कोएक बंगले में शिफ्ट करके।

कुछ दिन तो दोनों को चिंता हुई कि पता नहीं वे लोग एक-दूसरे के साथ एडजस्ट करभीपाऐंगेया नही।

लेकिन कुछ ही दिनों में वीडीओ कॉल पर बातचीत करके पता लगा किइडली दोसा खाने सेशुभम के पापा की डाइबिटीज काफी कन्ट्रोल में है और नमिता के पापा का ब्लडप्रेशर भी अब पहले से बेहतर रहने लगा था।दोनों परिवार साथ साथ सैर करते यदि मकर संक्रांति मनाई जाती तो पॉंगल भी मनाया जाता चारों लोग एक-दूसरे के साथ काफी अच्छी तरह से घुल-मिल गए थे।कभीटाइम पास करने के ताश की बाज़ी लग जाती तो कभी चैस खेल कर समय व्यतीत किया जाता।

अड़ोस पड़ोस में इन लोगो की काफी जान पहचान हो चली थी इन तीन सालों में।जब लोगोंको पता चलता कि वे लोग एक दूसरे कि समधी हैं तो लोग उनके बच्चों की सोच की दाद देते कि समयानुसार अपनी सोच बदल कर नया बदलाव कर लेने में ही भलाई होतीहैन कि पुरानी लीक पर चलते रहने में।

स्व रचित व मौलिक

माधुरी

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