मित्र का अधिकार – महजबीं : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : अखिल और अमन दोनों बचपन के बहुत अच्छे दोस्त थे। दोनों साथ खेले और पढ़े। बड़ा होकर अमन एक  सरकारी अधिकारी बना और अखिल ने अपने पिता का  बिजनेस  संभाला। दोनों का विवाह हो गया।  अमन की पोस्टिंग बड़े शहर में हो गयी। और अखिल अपने ही शहर मे रह के अपना बिजनेस देखने लगा।अमन के दो बेटे हुए। और अखिल का एक बेटा और एक बेटी। दोनों के बच्चे अच्छे स्कूल मे पढ़ रहे थे।  कई वर्षों तक अमन और अखिल में  मुलाक़ात नहीं हुई। 

तभी अचानक अखिल के परिवार पर एक विपदा आ गयी। अखिल को तेज बुखार आया और उसके एक हाथ और एक पैर  पैरालिसिस के कारण बेकार हो गए। वो बिस्तर को लग गया।  बहुत इलाज कराया। पर वो ठीक नही हो पाया। धीरे- धीरे उसका कारोबार ठप होने लगा।  उसकी आर्थिक स्थिति बिगड़ती जा रही थी।

अब तो उसके लिए घर का खर्च चलाना ही मुश्किल था। बच्चे अभी सातवीं आठवीं कक्षा में पढ़ रहे थे। बच्चों के स्कूल की  मँहगी फीस देना उसके लिए मुश्किल होने लगा। हालाँकि उसके दोनों बच्चे पढने मे बहुत होशियार थे। कहते हैं कि बुरे समय मे साया भी साथ छोड़ देता है। अखिल के साथ भी ऐसा ही हुआ।

स्वार्थी रिश्तेदारों और मित्रों ने दूरी बना ली। माता- पिता का तो पहले ही देहांत हो गया था। जो लोग पहले उसके आगे पीछे घूमते थे। अब उससे मिलने से कतराते थे।  अखिल की पत्नी  एक अच्छी गृहणी थी। वह बहुत कम पैसे में घर का खर्च चला रही थी। और पति की सेवा  कर रही थी। 

पत्नी ने अखिल को राय दी, ” बेटी मुस्कान का नाम स्कूल से हटा लेते हैं उसको  अधिक पढ़ाना आवशयक नहीं है।  प्राइवेट परीक्षा दिला कर थोड़ा बहुत पढ़ा देंगे।घर का काम काज सिखा  देंगे और कम उम्र मे ही ब्याह देंगे। बेटे सलिल को अच्छे स्कूल और कॉलेज मे पढ़ाएंगे। “अखिल ने भी पत्नी की बात स्वीकार कर ली। और मुस्कान को  घर बिठा लिया। मुस्कान बहुत रोई अपनी पढ़ाई  छूटने पर। 

        इधर अमन का तबादला वापिस इसी शहर में हो गया। आने के बाद उसे अखिल की याद आई। अमन अब एक उच्च अधिकारी बन चुका था। पर उसमें तथा उसके परिवार के सदस्यों में तनिक भी अहंकार नहीं था। अमन अखिल से मिलने उसके घर पहुँचा। अखिल की यह दशा देख कर वह बहुत दुखी हुआ।

उसने अखिल से उसके बच्चों के बारे मे पूछा। जब अखिल ने उसे मुस्कान  की शिक्षा के बारे में बताया। तो अमन बहुत आहत हुआ और बोला , ” मुस्कान मेरी बेटी की तरह हैं उसकी पढ़ाई का खर्च मैं उठाऊँगा। वह जब तक चाहे पढ़ सकती है। ” अखिल और उसकी पत्नी इंकार करने लगे ।उनका आत्म – सम्मान इस बात को स्वीकार नहीं कर पा रहा था।

पर अमन ने उनको बहुत दिलासा दिया और कहा, “कि मैं तुम्हारे  ऊपर कोई कृपा नहीं कर रहा हूँ।बस मित्र के प्रति अपना कर्तव्य निभा रहा हूँ। समय आने पर तुम अपना कर्तव्य निभाना। ” अमन के इतना ज़ोर देने पर अखिल मान गया। 

   मुस्कान बहुत प्रतिभाशाली थी। वह हर क्लास में प्रथम आती।अमन की सहायता और अपनी मेहनत तथा लगन से वह आगे बढ़ती रही। उसका मेडिकल की परीक्षा में चयन हो गया। मेडिकल की पढ़ाई पूरी कर के वह एक अच्छी डॉक्टर बनी। अखिल का बेटे ने भी शिक्षा पूरी कर के अपने पिता का बिजनेस फिर से संभाल लिया था। 

इधर अमन के दोनों पुत्र भी बड़े हो गए  तथा दोनों होनहार  इंजीनियर बने।अब अमन ने अपने बड़े बेटे के विवाह के बारे में सोचना शुरू किया। उसका बेटा दिल ही दिल में मुस्कान को पसंद करता था।

जब यह बात अमन की पत्नी ने अमन को बताई  तो वह बहुत खुश हुआ।और पत्नी के साथ अखिल के घर गया और उससे बोला, ” अखिल, आज मैं तुमसे कुछ मांगने आया हूँ, इंकार मत करना”। अखिल ने उत्तर दिया, “तुम जो कुछ मांगो, अधिकार से माँगो, यह मेरा सौभाग्य होगा कि मैं भी तुम्हारे कुछ काम आ सकूँ। ” अमन बोला, “मैं मुस्कान बेटी से अपने बेटे अमित का विवाह करना चाहता हूँ।

उसे मेरे घर की रौनक बना दो। हम उसे बहु नहीं बेटी बना कर रखेंगे। ” अखिल बोला, “यह तो तुम्हारा अधिकार है। तुमने तो उसके लिए पहले ही एक पिता की तरह कर्तव्य निभाया है। हमारे लिए इससे बड़ा सौभाग्य क्या होगा कि वह तुम्हारे घर की बहु बने। मैं मुस्कान से पूछ कर तुम्हें बताता हूँ।

” मुस्कान ने भी   बड़ी खुशी से इस विवाह के लिए हाँ कर दी। और चार महीने बाद अमित और मुस्कान विवाह के पवित्र बंधन में बंध गए। अमन ने अपने मित्र के प्रति जो कर्तव्य निभाया था। आज उसके बदले में उसे ऐसा अधिकार मिला। जिससे दोनों मित्रों के घर में  खुशियाँ  छा गयीं। 

लेखिका:   महजबीं

#अधिकार

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