मेरी मां की भाषा हिंदी,,,,,, – मंजू तिवारी,

मेरी मां की भाषा हिंदी जिससे मेरा दिल का नाता है। किसको बोलने में मुझे बड़ी सहजता का अनुभव होता है। भाषा कोई भी बुरी नहीं होती है। लेकिन जो भाषा हमारी मां की होती है उस भाषा को बोलने में बड़ा ही आनंद आता है मौलिकता होती है कोई बनावटीपन का स्थान होता ही नहीं है। और हिंदी का तो क्या कहना,,,, हिंदी के साथ तो हिंदी में बोले जाने वाली कई बोलियां जुड़ी हुई है जो बड़ी मिठास भरी होती है जिनके बोलने मात्र से हम किस जगह के रहने वाले हैं सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। समय के साथ चलने के लिए हमें कई भाषाओं का ज्ञान होना ही चाहिए यह अच्छी बात है लेकिन अपनी ही माता की भाषा को छोड़ देना कहां की चतुराई है आप जरा सोच कर देखिए जो हमारे माता-पिता की बोली होती है उस  बोली में जब हम उनसे बात करते हैं तो कितना अच्छा लगता है। हम और वे दोनों ही बहुत ही सहज होते हैं अपनेपन का एहसास हमेशा बना रहता है। 

लेकिन जब हम अपने ही माता-पिता से अन्य बोली या भाषा में बात करते हैं।तो आनंद नहीं आता ,,,,, भारतवर्ष में हिंदी की ही बहुत सारी बोलियां है जो बोली जाती है हिंदी भाषा तो हम बोल लेते हैं लेकिन बोलियों को बोलने में हमें शर्म महसूस नहीं करनी चाहिए हिंदी के साथ-साथ अपनी बोली भी बोलिए और मौलिकता का अनुभव करिए जिससे हिंदी और हिंदी की बोलियां दोनों ही वजूद में सदा बनी रहे और आपसी बातचीत में मौलिकता के साथ मिठास भी बनी रहे,,,, आधुनिक होने का मतलब हिंदी और इसकी बोलियों को छोड़ना बिल्कुल भी नहीं है।,,,, ये मत सोचिए कि जो अंग्रेजी बोल लेता है वह हमसे ज्यादा बुद्धिमान है। और हम हिंदी बोलते हैं इसलिए हम बुद्धिमान नहीं हैं। भाषा से बुद्धिमान होने का कोई लेना देना नहीं है इसलिए अन्य भाषाओं को जरूर सीखिए,,, लेकिन अपनी मां की भाषा हिंदी और हिंदी की बोलियों को कभी मत छोड़िए,,, और अपनी मौलिकता को बनाए रहिए,,, अपनी मां की भाषा हिंदी और इसकी विभिन्न बोलियों को बोलने में शर्म कैसी,,,,?  गर्व से हिंदी बोलिए,, हिंदी दिवस की सभी को बहुत-बहुत शुभकामनाएं,,,,

मंजू तिवारी, गुड़गांव

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