अहंकार के छटते बादल – तृप्ति शर्मा

कितनी जमती थी न दोनों में ,कितनी बातें कितनी छेड़खानी और पता नहीं कितने ही खेल खिलौने आपस में बांट लिया करते थे वो हमेशा । इन सबके बीच पता नहीं चला कब दोनों बचपन लांघ बड़े हो गए, पर अब सबकुछ बदल गया था । सुहानी और अनंत के बीच अब पहले जैसा कुछ भी नहीं रह गया था।

   सुहानी तो अभी तक अनंत में ही खोई हुई थी पर अनंत बिल्कुल बदल चुका था, इंग्लैंड से पढ़कर आने के बाद बचपन की दोस्त सुहानी से उसकी बस,” हेलो” “हाय” ही होती थी। हालांकि सुहानी ने कई बार बात करने की कोशिश की पर वो इग्नोर कर देता था उसे। सुहानी जो अनंत और अपने एक हो जाने के सपने संजोए बैठी रही थी अब उन्हीं सपनों के टूटने के डर से खुद बुरी तरह टूटती जा रही थी।   

अनंत बिल्कुल बदल चुका था । बिज़नेस मैनेजमेंट का कोर्स करके आने के बाद उसने यहां अपने बिज़नेस की नींव रखी जो अनंत के घमंड की तरह रोज बढ़ता चला जा रहा था। अनंत की सोच सातवें आसमान पर उड़ने लगी थी।

   सुहानी जब भी उससे बात करने की कोशिश करती तो वह बस हूँ, हाँ में जवाब देता और चला जाता। अनंत अपने आगे उसे कुछ नहीं समझता पर सुहानी तो जैसे पागल थी उसके लिए।

सब नजरअंदाज कर देती थी । अनंत का बोलने का ढंग, उसके न बात करने के बहाने सबकुछ तो अनदेखा कर देती थी वह ।अनंत का बिज़नेस दिन पर दिन परवान चढ़ता जा रहा था और साथ ही साथ उसका और उसकी कलीग निशा मित्रता भी । अनंत उसके साथ और उसके आगे पीछे घूमता रहता था आजकल। बढ़ता पैसा ,रुतबा और खूबसूरत निशा का साथ अनंत के अहंकार को और बढ़ा रहे थे।

सबकुछ उसने निशा पर छोड़ दिया था, खुद को भी और अपने काम को भी। अब उसका ध्यान काम पर कम निशा पर ज्यादा होता था । कोई समझाता तो कह देता ,

“मैं कभी नहीं हारता मैं जिस काम में हाथ डालता हूँ वही बढ़ता चला जाता है”।

पर अहंकार कब किसका साथ देता है?



यही अनंत के साथ भी हुआ।

ले डूबा अनंत को उसका अहंकार और बर्ताव । बसंत के बाद पतझड़ आना स्वाभाविक है। उसके काम पर उसका व्यवहार पतझड़ बनकर छा गया जो सबकुछ सुखा गया ,बिजनेस ,पैसा, घर ,साथ ही निशा के प्यार को भी, जिस पर सबसे ज्यादा एतबार था अनंत को । जिसपर सबसे ज्यादा लुटाया अनंत ने अपना प्यार और अपना पैसा वही धोखा देकर चली गई ‌। वो निशा के प्यार में पागल ,अनभिज्ञ ही रहा कि कब और कैसे सब अपने नाम करवा लिया निशा ने। मोहताज हो गया अनंत ,न काम का होश और न अपना। बिज़नेस की तरह वो भी डूबता चला गया ,शराब में।

ऐसे ही एक दिन शराब के नशे में गाड़ी के नीचे आने से बचाया सुहानी ने अनंत को। सुहानी अब तक अनंत के लिए बेशुमार लगाव अपने दिल में लिए बैठी थी । आख़िर बचपन का दोस्त और प्यार था वो उसका। कदम के साथ-साथ दिमाग भी लड़खड़ा गया था अनंत का ,निशा के जाने का ग़म,उसकी धोखाधड़ी ,बिजनेस में नुकसान ने उसे पागल सा कर दिया था।  अनंत के निर्मम व्यवहार के बाद भी एक अच्छे दोस्त की तरह पूरा साथ दिया सुहानी ने उसका।  सब से लड़ झगड़कर अपने घर रखा। सबको विश्वास भी था कि सुहानी अनंत को वापस ले आएगी ,हंसती-खेलती दुनिया में । उसका इलाज कराना शुरू किया अपने हाथ से खाना खिलाती, बच्चे की तरह ध्यान रखती । ढाल की तरह हमेशा उसके साथ खड़ी रहती।

सुहानी की मेहनत रंग लाई ,अनंत के चेहरे की रंगत मुस्काने लगी। बसंत लौटने लगा था उसकी ज़िंदगी में, ठीक होने लगा था वह अब। अनंत और सुहानी का परिवार बेहद खुश था।

सुहानी को चाहने भी लगा था अब अनंत। सुहानी ने अनंत के घर वालों की मदद से नया काम शुरू किया । अनंत  धीरे-धीरे अब काम में दोबारा दिलचस्पी लेने लगा था ।गाड़ी एक बार फिर पटरी पर आ गई थी। अहंकार का अंधेरा छट गया था। सुहानी ने अपना नाम सार्थक करते हुए अनंत का जीवन सुहाना कर दिया था। निशा जो रात की कालिमा की तरह उनके जीवन पर छा गई थी ,उसका साया अब दूर दूर तक नहीं था।

सुहानी भी अनंत की चाहत दोबारा पाकर बहुत खुश थी ,पर उसका पहला बर्ताव उसे नयी शुरुआत नहीं करने दे रहा था। एक डर उसके मन में अब भी था कि अनंत फिर से तो नहीं बदल जाएगा। फिर एक दिन अनंत ने सुहानी का हाथ अपने हाथों में लेकर कहा,

” मैं जानता हूँ सुहानी ,मैंने तुम्हें बहुत दुख दिया है,दिल दुखाया है तुम्हारा पर अगर तुम मुझमे अब भी वो प्यार देखती हो तो क्या मेरे साथ अपना जीवन बिताना पसंद करोगी। शादी करोगी मुझसे ,जिंदगी भर यूं ही मेरा साथ दोगी

सुहानी की आँखों से झर-झर आंसू बहने लगे। अनंत  मुस्कुराया और गुनगुनाने लगा,

“नहीं मैं नहीं देख सकता तुझे रोते हुए”

सुहानी ने बहुत प्यार से अनंत के कंधे पर अपना सिर टिका दिया।

#अहंकार

तृप्ति शर्मा।

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