अहंकार कभी न करना   –  विभा गुप्ता 

   ” सुनो, अगर आप इजाज़त दो तो मैं अपनी पढ़ाई पूरी कर लूँ।” विनिता ने अपने पति विनय से पूछा जो ऑफ़िस की कुछ फ़ाइलों को देखने में व्यस्त था।पत्नी की बात सुनकर उसने तुरन्त हाँ कह दिया क्योंकि वह भी चाहता था कि विनिता अपनी ग्रेजुएशन पूरी कर ले।

              विनिता अपने चार भाईयों के बीच अकेली बहन थी।लाड़-प्यार के साथ-साथ उसे शिक्षा प्राप्त करने का भी पूरा अवसर मिला।जब वह बीएससी(साइंस)के द्वितीय वर्ष में थी तभी उसके दादाजी को दिल का दौरा पड़ा, अपनी पोती को वे दुल्हन के रूप में देखना चाहते थे।सो आनन-फ़ानन में विनय जो कि उसके पिता के सहकर्मी का बेटा था और बिजली विभाग में इंजीनियर के पद पर कार्यरत था, से उसका विवाह हो गया।

         विनय को रहने के लिए एक सरकारी क्वाटर्र मिला था जिसमें ज़रूरत के सभी सामान उपलब्ध थे।विनिता ने जल्दी ही खुद को कॉलोनी के लाइफ़स्टाइल में ढ़ाल लिया।समय बीतते वह एक बेटा और एक बेटी की माँ भी बन गई।बच्चों को पालने और उन्हें पढ़ाने-लिखाने में उसका दिन कैसे बीत जाता,उसे पता ही नहीं चलता।कभी-कभी अपने कॉलोनी की किसी लेडी को ऑफ़िस जाते देखती तो वह सोचती कि यदि वह ग्रेजुएट होती तो शायद वह भी वर्किंग होती लेकिन फिर अपने विचारों को झटक कर काम में व्यस्त हो जाती।स्वभाव से सरल और मृदुभाषी विनय भी अपने परिवार एवं अपनी ज़िंदगी से बहुत संतुष्ट था।विनय के रिटायर्ड पिता अनिकेत बाबू पत्नी संग अपनी पुश्तैनी खेती की देखरेख में समय बिता रहें थें, कभी-कभी वे बेटे विनय से मिलने चले आते थें।

         अब जब बेटा सातवीं और बेटी पाँचवीं कक्षा में पढ़ने लगी तो विनिता की ज़िम्मेदारियाँ बहुत कम हो गई तो उसने सोचा कि अब अपनी पढ़ाई पूरी कर लेती हूँ।विनय की सहमति मिलते ही उसने अपने कॉलेज़ से कॉन्टेक किया और डिस्टेंस लर्निंग के माध्यम से बीएससी तृतीय वर्ष की परीक्षा पास करके वह ग्रेजुएट हो गई।जाॅब करने की उसकी दबी इच्छा फिर से जाग्रत हुई, यहाँ पर भी विनय ने उसका साथ दिया और एक वर्ष का कंप्यूटर डिप्लोमा कोर्स पूरा करते ही उसे शहर के ही एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी मिल गई।शुरू- शुरु में तो उसे घर से निकलने में काफ़ी परेशानी होती थी लेकिन अपनी हिम्मत और विनय के सहयोग से उसने जल्दी ही घर और ऑफ़िस में ताल-मेल बिठा लिया।



           उसके वर्क स्किल्स से कंपनी को बहुत फ़ायदा होने लगा,उसे भी तरक्की मिलने लगी और उसकी व्यस्तता बढ़ने लगी।यह तो कुदरत का नियम है कि जब इंसान तरक्की की सीढ़ियाँ चढ़ने लगता है तो अहंकार भी उसके साथ चलने लगता है,ईर्ष्या- क्रोध सहचर हो जाते हैं और रिश्ते पीछे छूट जाते हैं।विनिता को भी यह गुमान होने लगा था कि वो ही सबसे आगे है और सब उसके पीछे। देर से घर आना और बात-बात पर विनय से उलझना,उसे नीचा दिखाना उसकी आदत बन गई थी।अब विनय का कुछ भी पूछना उसे अखरने लगता था और बच्चे…,वे तो अपनी मम्मी को देखने के लिए भी तरस जाते थें।जो घर कहकहे और बच्चों की शरारतों से गुलज़ार रहा करता था,अब वहाँ एक तनावपूर्ण निस्तब्धता का वास हो चुका था।

           घर का ऐसा माहौल देखकर विनय ने सोचा,कुछ दिनों के लिए माँ- पिताजी आ जाएँगे तो बच्चों का मन बहल जाएगा और विनिता भी अपनी ज़िम्मेदारियों को समझने लगेगी।लेकिन विनिता अपनी नौकरी,ओहदे और आधुनिकता के अहंकार में इतनी अंधी हो चुकी थी कि उसे यहाँ तक पहुँचाने वाला उसका अपना पति ही उसे सबसे बड़ा दुश्मन नज़र आने लगा था।

अब तो उसे अपने सास-ससुर का भी लिहाज़ न था।जिस बहू ने कभी अपने सास-ससुर के सामने ऊँची आवाज़ में बात तक न की थी,आज वो जींस और स्लीवलेस टाॅप पहने बेखटके उनके सामने से निकल जाती है,यह देखकर वे हैरान थें।उसके ससुर ने तो एक दिन उसे समझाना भी चाहा कि बेटी, ज्ञान और शिक्षा का उपयोग जीवन को व्यवस्थित एवं सुचारू रूप से चलाने के लिए करना चाहिए।

उसका अहंकार करना तो मूर्खता की निशानी है।घमंड की आग ने तो रावण और कौरव जैसे शूरवीरों तक का नामो-निशान मिटा दिया था।फिर हम…..।वे अपनी बात पूरी कर पाते,उससे पहले ही विनीता बोल पड़ी, ” मैं जानती हूँ कि मेरी तरक्की आपकी आँखों में खटकती है।” कहकर पैर पटकती हुई वह बाहर निकल गई थी।

             एक रात जब वह अपने बाॅस की बड़ी गाड़ी में घर लौटी तो विनय को बहुत गुस्सा आया लेकिन वह खून का घूँट पीकर रह गया।सोचा,सुबह विनिता से बात करेगा लेकिन वह तो तड़के ही ऑफ़िस जाने के लिए तैयार होने लगी।शायद वह विनय का सामना नहीं करना चाहती थी।बेटे- बहू की आपसी दूरी अनिकेत बाबू से छुपी हुई न थी।लेकिन आज बहू के बदले तेवर उन्हें कुछ ठीक नहीं लगे।शायद उनकी अनुभवी आँखों ने भावी आशंका को भाँप लिया था,इसीलिए विनिता जब गाड़ी में बैठकर जा रही थी तो उन्होंने उसकी गाड़ी का पीछा किया।



          गाड़ी एक पार्क के बाहर आकर रुक गई।विनिता के साथ उसका बाॅस था, दोनों पार्क के एक बेंच पर बैठे थें, बाॅस उसे कुछ समझा रहा था, साथ ही बेवजह उसे स्पर्श करने का भी प्रयास कर रहा था।विनिता के बार-बार मना करने से उसका बाॅस बौखला गया और चीखते हुए बोला, ” तुम्हें यहाँ तक लाने में मैंने जो मेहनत की है उसकी कीमत तो वसूलना है न मुझे।” जवाब में विनिता भी चीखी, “कीमत कैसी! यहाँ तक तो मैं अपनी काबिलियत और मेहनत से पहुँची हूँ।”

सुनकर बाॅस हँसा और व्यंग्यपूर्ण लहज़े में बोला, ” काबिलियत! तुम्हारी औकात थी ही क्या, थोड़ी-सी तुम्हारी झूठी तारीफ़ क्या कर दी, तुम तो आसमान पर ही बैठ गई।” अपने झूठे दंभ का कड़वा सच सुनकर विनिता आसमान से ज़मीन आ गिरी।उसका घमंड चूर-चूर हो चुका था।उसने चट से अपने बाॅस के गाल पर एक तमाचा जड़ दिया।बाॅस अपने अपमान का बदला लेने के लिए जैसे ही उसकी ओर लपका, तभी एक फिल्मी दृश्य की तरह अनिकेत बाबू आ गए और अपनी छड़ी बाॅस की पीठ पर बरसाने लगे।बाॅस तो उल्टे पाँव भाग गया लेकिन विनिता शर्म और अपराधबोध से अपने ससुर से आँखें नहीं मिला पा रही थी।

            उसने अनिकेत बाबू के पैर छूकर माफ़ी माँगी।अनिकेत बाबू बोले, ” बेटी, अहंकार एक व्यक्ति के सर्वस्व को नष्ट कर देता है,इसलिए अहंकार कभी मत करना।”  ” जी पापाजी, लेकिन क्या विनय मुझे माफ़ कर पाएँगे?”  ” क्यों नहीं। ” कहकर वे विनिता को लेकर घर आ गए।

         विनिता को घर वापस देख विनय और बच्चे बहुत खुश हुए।विनिता ने जब विनय से माफ़ी माँगनी चाही तो विनय ने उसे गले से लगा लिया।विनिता को अपने अहंकार का सबक मिल चुका था।इसलिए उसने उस कंपनी को छोड़ कर दूसरी ज्वाइन कर ली और उनके परिवार की  खुशियाँ फिर से लौट आई।

     #अहंकार 

                ——– विभा गुप्ता 

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