” दिल के अरमां आंसुओं में बह गए ” – अनिता गुप्ता 

मी लॉर्ड! मैं मानता हूं कि मेरे बेटे ने शराब के नशे में बहक कर गलती की है और मैं इस गलती को सुधारने के लिए भी तैयार हूं।” शहर के पहुंचे हुए नेताजी ने कटघरे में खड़े हुए कहा।

” आप इसे गलती कहते हैं ? अपराध किया है आपके अहंकारी बेटे ने अपराध।” प्रतिपक्ष के वकील ने जिरह जारी रखी।

” एक लड़की के आत्मसम्मान को कुचलना,उसकी इज्ज़त तार-तार करना,समाज में नजरें उठा कर न चल पाना,घुटन भरी जिंदगी देना को, आप नशे में की गई गलती कहते हैं ? अहंकार में चूर होकर अपराध आपका बेटा करे और सजा निर्भया भुगते,ये कहां का इंसाफ माई लॉर्ड ?

” मैं इस अपराध की सजा निर्भया को नहीं भुगतने दूंगा। मैं अपने बेटे की शादी निर्भया से करूंगा और उसे अपने घर की बहु बना कर सारे अधिकार भी दूंगा।जिससे समाज उस पर अंगुली ना उठा सके।” नेताजी ने कहा।

शहर की अदालत में नेताजी के बेटे के ऊपर बलात्कार का केस चल रहा था। निर्भया का आरोप था कि उसकी सहेली की जन्म दिन की पार्टी में नेताजी के बेटे ने सॉफ्ट ड्रिंक में कुछ मिला कर पिला दिया और फिर उसके साथ बलात्कार किया।

निर्भया जब पुलिस में रिपोर्ट लिखवाने गई,तो पुलिस द्वारा रिपोर्ट लिखने से मनाकर दिया गया।तब उसने मीडिया का सहारा लिया। तब जाकर उसकी रिपोर्ट लिखी गई। कोई भी एडवोकेट उसका केस लेने को तैयार नहीं हुआ तो केस सरकारी वकील को दिया गया।

आज नेताजी के बयान से केस आपसी राजी नामा से खत्म होने की कगार पर आ गया। हालांकि निर्भया को उस बलात्कारी से शादी करना मंजूर नहीं था। लेकिन उसके माता – पिता ने उसपर शादी के लिए हां करने का दवाब बनाया और समझाया कि,

” इतना अच्छा रिश्ता हाथ से न जाने दे। इस रिश्ते से उसके परिवार का भला हो जायेगा।उसके बेरोजगार भाई को नौकरी मिल जाएगी। उनकी समाज में इज्जत बढ़ जायेगी और खुद निर्भया को एक सम्मनीय जिंदगी मिल जायेगी।वैसे उससे कोई शादी करने को भी तैयार नहीं होगा।”

आखिरकार निर्भया की नेताजी के बेटे से शादी हो जाती है और वह अपनी ससुराल आ जाती है। ससुराल में उसको पूरा मान सम्मान मिलता है।घर की व्यवस्था की देखरेख का जिम्मा उसी को सौंप दिया जाता है। तिज़ोरी में  से पैसे निकाल कर देना – लेना भी वही करती है।आने वाले महत्वपूर्ण मेहमानों से भी मिलती है। लेकिन ये सब करने में उसे अपने दिमाग का इस्तेमाल नहीं करना होता है। वह अपने विचार प्रकट नहीं कर सकती।

इधर नेता जी ने एक तीर से दो निशाने लगा लिए। एक तो निर्भया को चुप करा कर अपने बेटे को जेल जाने से बचा लिया ।

दूसरा आम जनता में उनकी वाहवाही हो जाने से उनकी अगले चुनाव में टिकट और जीत दोनों पक्की हो गई।

जब कभी निर्भया अपनी जिंदगी पर विचार करती है,तो पाती है कि उसे सब कुछ तो मिल रहा है सिवाय आजादी के।जो उसे दी तो है लेकिन वो उसको अनुभव नहीं कर पाती है। जिसकी शिकायत वो किसी से नहीं कर सकती। क्योंकि सभी की नजरों में वो एक खुशहाल जिंदगी जी रही है और वो खुद भी जिए जा रही है ये सोचती हुई कि ,

“दिल के अरमां आसूंओं में बह गए।”

 

 

अनिता गुप्ता 

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