मेहमान (भाग 1) – श्वेत कुमार सिन्हा : Moral Stories in Hindi

रात के करीब दो बजे दरवाजे पर दस्तक हुई । सभी सोए थें । बाहर जोरों की आँधी बारिश हो रही थी और काफी बिजली भी कड़क रहा था ।

बाहर कोई लगातार तेजी से दरवाजा पीटे जा रहा था । आवाज़ सुन शोभा की नींद खुल गई और भयभीत होकर बगल में सोये ऋतिक को उठायी ।

“क्या है… ! सोने दो न, अभी ।” – ऊंघते हुए ऋतिक बोला।

“उठो न ! देखो, बाहर कोई बहुत तेज़ी से दरवाजा खटखटा रहा है । मुझे डर लग रहा है ।”–डरते हुए शोभा ने ऋतिक से कहा।

ऋतिक की आंखें खुल गईं । सामने घड़ी में देखा, तो अभी दो ही बज रहे थें । लाइट ऑन कर आँखें मलते हुए अपने कमरे से बाहर आया और दरवाजे के पास पहुँच आवाज़ लगाकर पूछा – “ कौन है….?”

पर, कोई जवाब न मिला । बाहर से कोई लगातार दरवाजा खटखटाये ही जा रहा था ।

पहले तो पास खड़ी शोभा को ऋतिक ने अपने पीछे किया और हिम्मत करके फिर से पूछा – “कौन है ? जबतक बोलोगे नही,  दरवाजा…..नही खुलेगा ।”

“प्लीज, दरवाजा खोलिए।” – बाहर से किसी महिला की आवाज आई । आवाज़ सुन ऋतिक ने दरवाजा खोल दिया ।

“तेज़ आंधी-तूफान के कारण मैं इस जंगल में फंस गई हूँ। आसपास केवल आपका ही घर दिखा । इसलिए, मदद मांगने आ गयी ।”

तकरीबन तीस साल की उम्र की दो महिलाएं भींगी हुई अवस्था में दरवाजे पर खड़ी थीं । उनमे से एक महिला ने अपने हाथों में एक सा बड़ा बैग पकड़ रखा था । दरवाजा खुलते ही दोनों कमरे के भीतर आ गयीं । उन्होने अपना नाम जया और विजया बताया ।

ऊपर से नीचे तक उन दोनों का पूरा बदन गीला हो चुका था और कपड़े बूरी तरह से भींगे हुए थें । अपना भारी भरकम बैग कमरे में एक किनारे रख गीले बदन को साफ करने के लिए वे तौलिया मांगी तो शोभा उन्हे बाथरूम में लेकर गयी । जहां जाकर उन्होंने खुद को साफ किया और बाथरूम से ही शोभा को आवाज़ लगा पहनने के लिए कुछ कपड़ों की मांग की ।

पहले तो शोभा को गुस्सा आया । मन ही मन बुदबुदायी कि इतना बड़ा बैग लेकर आयी है, उसमे से ही कपड़े लेकर क्यूँ नही पहनती । पर, कुछ न बोली और भीतर कमरे से कुछ कपड़े लाकर बाथरूम में उनकी तरफ बढ़ा दी।

“हमलोग पास के गाँव जा रहे थें । लेकिन, तेज आंधी तूफ़ान में फंस गए । काफी बिजली चमक रही थी। आसपास केवल आपका ही घर दिखा , तो मदद के लिए आ गयी । माफ करें,  आपलोगो को इतनी रात में तकलीफ देने के लिए ।”  – विजया ने शोभा से कहा ।

बाहर काफी बिजली चमक रही थीं, जिससे वे दोनो डर रहीं थीं । तभी, जया ने एक कप कॉफी का आग्रह किया। इसपर पर शोभा की त्योरियां चढ़ गई कि अब इतनी रात में इनके लिए कॉफी बनाना पड़ेगा ।

कॉफी की बात सुनते ही ऋतिक का चेहरा चमक उठा । चाय-कॉफी के आदी ऋतिक को तो कोई नींद से उठा कर भी पीने के लिए दे, तो वह मना न करे ।

न चाहते हुए भी शोभा को अपने अनजान मेहमानों के लिए कॉफी बनाने रसोईघर की ओर जाना पड़ा ।

बाहर सबकी आवाज़ सुन भीतर कमरे में सोया हुआ शोभा और ऋतिक का सात साल का बेटा-आरव भी जाग गया और मम्मा-मम्मा करते बाहर आ गया । दो अनजानी औरतों को देख वह अपने पापा के गोद में आकर बैठ गया।

आरव को देखकर जया-विजया का चेहरा खिल उठा । आरव के तरफ बढ़कर जया उसे ऋतिक की गोद से खींच अपने गोद में बिठा ली और अजीब तरह से घूरते हुए बोली –“बेटा…..क्या नाम है ? मेरे साथ चलोगे ? चॉकलेट… दूंगी , टॉफी….दूंगी, आकाश की सैर कराउंगी….हा हा हा।” अचानक से अंजान औरतों की गोद में आने से आरव डर गया था ।

तभी, रसोई से कॉफी लिए शोभा कमरे में आयी और आरव को जया-विजया के गोद में घबराया देख झल्ला उठी। झट से आरव को उनके गोद से खींच हिदायत देते हुए उन्हे बोली कि आपलोग कॉफी पीजिए । हमने आपको रात में सिर छिपाने के लिए जगह दिया है, इसका मतलब यह कतई नही है कि घर के सदस्यों को आपलोग बेमतलब परेशान करें ।

शोभा की बातों का उन औरतों पर तनिक भी फ़र्क न पड़ा। ऋतिक की तरफ मुस्कुराकर देखते हुए जया ने शोभा से कहा कि आप दोनों की जोड़ी बड़ी प्यारी है । तभी तो इतना प्यारा बच्चा भी हुआ है आपको ।

उनकी बातों पर शोभा आग बबूला हो गयी, पर कुछ भी बोल न पायी और परेशान निगाहों से ऋतिक की ओर देखने लगी । आँखों ही आँखों में ऋतिक ने उसे धैर्य न खोते हुए शांत रहने का इशारा किया ।

ऋतिक ने जया-विजया से उनके घर के बारे में पूछा । एक-दूसरे को देखते हुए वे दोनों मुस्कायीं और दोनों ने अलग-अलग जवाब दिया । यह सुन ऋतिक थोड़ा अचंभित हुआ, पर इसे नज़रअंदाज़ कर गया । फिर, विजया ने बताया कि वे दोनों थोड़ी दूरी पर स्थित चिनानेर गांव में रहती हैं और दूसरे गांव की ओर जा रही थीं ।

तभी, शोभा यकायक खड़ी हुई और पीछे हटती हुई चिल्ला पड़ी – “खून खून” ।

“कहाँ हैं खून ?” – ऋतिक ने शोभा से पूछा ।

फर्श पर खून बिखरा पड़ा था । ध्यान से देखा तो जया के पैरों से ढेर सारा खून निकल रहा था, लेकिन उसे तो कोई फर्क ही नही पड़ रहा था । शोभा के बताने पर भी उसने कहा कि घबराने की कोई जरूरत नहीं । मैं तूफान से घबराकर भाग रही थी तो गिर जाने के कारण पैरों में चोट लग गई और उनसे खून निकलने लगा। खुद ही ठीक हो जाएगा ।

“पर इतना खून !” – शोभा ने भयभीत होकर कहा ।

शोभा, जया को बाथरूम लेकर गयी और लौटकर बाहर कमरे में आने लगी।

तभी, सामने खिड़की में प्रतीत हुआ मानो बाहर से कोई झांक रहा हो । चीखते हुए शोभा तेजी से भागी और बाहर  कमरे में बैठे ऋतिक की बाहों में आकर छिप गई।…..

अगला भाग

मेहमान (भाग 2) – श्वेत कुमार सिन्हा : Moral Stories in Hindi

 

मूल कृति : श्वेत कुमार सिन्हा

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