तभी, सामने खिड़की में प्रतीत हुआ मानो बाहर से कोई झांक रहा हो । चीखते हुए शोभा तेजी से बाहर कमरे की तरफ भागी और आकर ऋतिक की बाहों में आकर छिप गई । …….
…….“क्या हुआ ,क्या हुआ ? ऐसे क्यों चीखी ?” – ऋतिक ने घबराते हुए पूछा।
“व…व…वहां ,खिड़की से कोई झांक रहा था ।” – डरते हुए शोभा ने ऋतिक को बताया ।
ड्रावर से पिस्तौल निकाल एवं हाथों में टॉर्च लिए ऋतिक पहले खिड़की के पास जाकर देखा और फिर घर के बाहर छानबीन किया। पर, दूर-दूर तक कोई न दिखा ।
थककर ऋतिक और शोभा घर के भीतर आ गएं । जया बाथरूम से अपने खून साफ कर आ चुकी थी और विजया के साथ बैठी एक-दूसरे को देखकर मुस्कुरा रहीं थीं, मानो वह इन सब परिस्थितियों का आनंद उठा रही हों ।
विजया ने ऋतिक को बताया – “काफी तेज़ बिजली कड़क रही है । बिजली की रोशनी से किसी पेड़ की छाया खिड़की पर पड़ी होगी और शोभा जी को महसूस हुआ होगा कि बाहर कोई है” ।
उसकी बातों पर ऋतिक भी हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा कि मुझे भी कुछ ऐसा ही लगता है । उन औरतों की बातों पर ऋतिक का हाँ में हाँ मिलाना शोभा को तनिक भी भाया और गुस्से से गुर्रा कर ऋतिक को देखने लगी ।
बातों को बीच में ही काटते हुए विछुब्ध शोभा ने जया से उसके पैर के बारे में पूछा। इसपर, जया बतायी कि अब ठीक है। पट्टी बांध ली हूं और खून भी रुक गया है।
तभी, शोभा ने देखा कि फर्श बिलकुल साफ दिख रहा है। कहीं भी खून का कोई नामोनिशान भी नही है ।
फर्श की ओर निहारती शोभा को देख जया-विजया समझ गईं और जया ने उसे बताया की चिंता न करें । जब आपलोग बाहर गए थें तो मैने फर्श को साफ कर दिया था।
विजया ने ऋतिक से पूछा- “आपने कुत्ता पाल रखा है क्या ? जब मैं बाथरूम में थी तो दूसरे कमरे से कुत्ते के भौकने की बहुत तेज आवाज़ आ रही थी” ।
ऋतिक ने उन्हे बताया कि इस जंगल में वह कुत्ता ही आरव का एकमात्र दोस्त है, जिसका नाम टौमी है । साथ ही, विजया को चेतावनी देते हुए ऋतिक ने यह भी कहा कि भूलकर भी उसे कुत्ता न कहें, नहीं तो आरव हो-हल्ला मचाना शुरू कर देगा । अभी टौमी अंदर सोया है, नहीं तो वह आरव के इर्द-गिर्द ही घूमता-फिरता हुआ दिख जाता आपको ।
पास ही सोफ़े पर लेटा आरव आँखें मूँदे-मूँदे ही उन सबकी बातें सुन मुस्कुरा रहा था ।
“सॉरी, हमलोगों के कारण आपसब की पूरी रात खराब हो गई । आपलोग अंदर जाकर सो जाइए । हमलोग यहीं सुबह तक इंतज़ार कर लेंगे ।”- विजया बोली।
“अरे, नहीं ! तकल्लुफ की कोई जरूरत नहीं, हमलोग ठीक है ।” –शोभा ने उन दोनों से कहा और आरव को झपकी लेते हुए देख उसे कमरे में जाकर सो जाने को बोली ।
टौमी-टौमी पुकारता हुआ आरव सोने के लिए अपने कमरे की ओर चला गया ।
“मम्मा-मम्मा, पापा, देखो खून-खून !” – अंदर के कमरे से आरव के ज़ोरों से चीखने की आवाज़ आयी ।
आरव की चीख सुन शोभा और ऋतिक तेज़ी से उसके कमरे की ओर भागें ।
एक-दूसरे की तरफ अचंभित होकर देखते हुए जया-विजया भी हड़बड़ाकर खड़ी हो गईं ।
अंदर कमरे में टौमी मरा पड़ा था और उसके चारो तरफ खून ही खून बिखरा था । बड़ी ताज़्ज़ूब की बात थी – मृत पड़े टौमी के शरीर पर एक भी खरोच भी न था, पर वह खून से तर-बतर था । वहीं पास ही खड़ा आरव चीत्कार मार- मारकर रोए जा रहा था।
कमरे में प्रवेश करते ही शोभा सबसे पहले भाग कर आरव को अपने गोद में उठाई और उसे लेकर बाहर ले आ गयी ।
रो-रोकर आरव ने पूरा आसमान सिर पर उठा लिया था । बड़ी मुश्किल से शोभा ने उसे शांत किया ।
अचानक से टौमी को क्या हो गया ? कहीं उसने कुछ निंगल तो नही लिया ? –ऋतिक के दिमाग में ढेर सारी बातें घूम रहीं थीं । ऋतिक ने कमरे और खिड़की-दरवाजे का अच्छे से मुआयना किया कि कहीं भीतर कोई साँप-बिच्छू या जंगली जानवर तो छिपा तो नहीं । पर, किसी के होने का कोई नामोंनिशान भी न मिला ।
लेकिन, इतनी रात को किया भी क्या जा सकता था ! इसलिए, टौमी की लाश को वहीं कमरे में पड़ा छोड़ और सुबह कुछ करने की सोचकर कमरे को बंद कर ऋतिक बाहर कमरे में आ गया ।
रात के दो–तीन घंटों में घटी इतनी सारी घटनाओं से ऋतिक परेशान हो गया था । फ्रीज़ के पास आया और ठंडे पानी से भरे बोतल को निकाल एक ही सांस में पूरा गटक गया । फिर, जया-विजया के सामने ही आकर सोफे पर बैठ गया ।
ऋतिक का ध्यान उनलोगों के समीप रखे बड़े से बैग पर जाता है, जो बारिश के कारण गीला पड़ा था । उसने जया-विजया से कहा कि आपलोग चाहे तो इसमे से जरूरी सामान निकाल कर सूखने के लिए दे सकती हैं, यदि ज्यादा भींग गया हो तो ।
इसपर, वे दोनों एक स्वर में हड़बड़ाकर बोलीं “नहीं–नहीं , इसकी कोई जरूरत नहीं। अंदर सब ठीक है”।
इसी बीच, शोभा भी आरव को सुलाकर ऋतिक के पास आकर बैठ जाती है ।
अबतक सुबह के चार बज चुके थें ।
तभी, घर के बाहर से बहुत तीव्र रोशनी चारो तरफ फैलती हुई दिखती है, जो पूरे घर को भी अपने अंदर समा लेती है । रोशनी इतनी तीव्र थी कि सबकी आँखों के सामने बिलकुल अंधेरा छा जाता है । कुछ पल ठहरकर वह रोशनी एक कर्कश कंपन के साथ समाप्त हो जाती है और चारो तरफ एक अजीब सा सन्नाटा फैल जाता है ।
रोशनी के समाप्त होते ही ऋतिक और शोभा गिरते-पड़ते आरव के कमरे के तरफ भागते हैं और उसे आराम से सोता हुआ देख राहत की सांस लेते हैं ।
कमरे से निकल बाहर आते ही जया-विजया को न देख ऋतिक, शोभा से उन लोगों के बारे में पूछता है । घर का मुख्य दरवाजा भी भीतर से ही बंद था । उन्होने इधर- उधर देखा, पर वे दोनों कहीं नहीं थीं । उन दोनों ने पूरे घर को छान मारा, लेकिन जया-विजया कहीं न मिलीं ।
पहले अचानक से तेज़ रोशनी का आना और अब जया-विजया का गायब हो जाना- यह सब ऋतिक और शोभा के लिए एक अबूझ पहेली बना था।
अभी वे दोनों इस बारे में सोच ही रहें थें कि उनका ध्यान सोफ़े के पास पड़ा हुआ जया–विजया के उस भारी भरकम बैग की तरफ पड़ता है जो बारिश के पानी से गीला हो चुका था…………
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मेहमान (भाग 3) अंतिम भाग – श्वेत कुमार सिन्हा : Moral Stories in Hindi
मूल कृति :
श्वेत कुमार सिन्हा