मन की गांठ – संगीता त्रिपाठी   : Moral stories in hindi

 सुबह की खटर -पटर नहीं सुनाई देने से  सुहास की नींद देर से टूटी घड़ी आठ बजा रही, हेमा पर गुस्सा करने वाला था, देखा बगल में हेमा अभी तक सोई पड़ी है। हेमा को हिलाते हुये सुहास बोले “हेमा उठो आज अलार्म नहीं लगाया था क्या…?

मुझे ऑफिस को लेट हो रहा “। तभी उनको अपने हाथ जलते लगे “उफ़्फ़ ये क्या, हेमा को तो तेज बुखार है, आज ही बीमार पड़ना था इसे “भूनभूनाते हुये सुहास जी बाथरूम की ओर भागे। जल्दी -जल्दी तैयार हो रहे थे,

बेटे ने दरवाजे पर दस्तक दी “आज माँ नहीं उठी अभी तक, सब ठीक है “।

“वो तेरी माँ को तेज बुखार है, ऐसा करो माही से बोलो चाय के साथ ब्रेड हेमा को देकर दवाई दे दें, मेरी बहुत इम्पोर्टेन्ट मीटिंग है दस बजे से, मै चला “कह सुहास जी बैग उठा कर चले गये। बेटे ने माँ का बुखार देख, अपनी पत्नी माही को बोला “माँ को बुखार है तुम चाय बना कर ब्रेड के साथ माँ को दें दो, और हाँ बुखार की दवा भी दें देना, माँ शाम तक ठीक हो जायेंगी”।

   “मेरे ऑफिस में आज क्लाइंट के साथ मीटिंग है, मुझे देर हो जायेगी, ऐसा करो मै कैब से चली जाती हूँ तुम थोड़ा लेट चले जाना और माँ को चाय नाश्ता दें देना “कह बहू माही भी अपना बैग लेकर चली गई।

   बेटे हर्ष ने चाय बना कर दो टोस्ट सेंक कर माँ के पास आया “माँ चलो चाय पी कर दवा खा लो “

     पर हेमा को बुखार तेज था, हर्ष ने सहारा दें कर माँ को बैठाया और चाय -टोस्ट खिला कर बुखार की दवा दें कर बोला “माँ आप आराम करो, मै भी ऑफिस जा रहा हूँ,शाम तक आप ठीक हो जाओगी “।कह हर्ष भी ऑफिस चला गया।

हेमा चाय -नाश्ता कर दवा खा फिर लेट गई,परिवार का हर सदस्य  इस तरह कह रहा, शाम तक आप ठीक हो जाओगे, मानो बुखार  कोई मेहमान है।उसे शाम की ट्रेन पकड़नी है।

                 हेमा उदास हो गई, “मेरे बीमार होने से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता “, तभी तो किसी ने भी छुट्टी नहीं ली, ना ये सोचा, उसका बुखार बढ़ गया तो घर में किसी का रहना जरुरी है।

भागदौड़ की इस जिंदगी में किसी के पास,किसी के लिये एक पल नहीं है बैठने की, तिमारदारी तो दूर की बात है।बेटे -बहू को क्या कहे, जब  थोड़ा सा भी समय पति सुहास के पास भी नहीं था,जो हेमा के पास बैठते।और बेटे को देखो, उसे भी अपनी माँ की कोई चिंता नहीं, अब तक माही बीमार होती तो छुट्टी लेकर बैठ जाता।

किसी ने सही कहा “जब तक बीवी नहीं आती तभी तक बेटे माँ के होते है “। और माही को क्या कहूं, मै कितना भी करू,उसे क्या फर्क पड़ेगा,रहूंगी तो सास ही ना, कौन सा वो अपनी माँ समझेगी।उदास मन से हेमा सोने की कोशिश करने लगी। कॉलबेल की तेज आवाज से हेमा की नींद टूटी।

  “कितनी गहरी नींद सोती हो, इतनी देर से कॉलबेल बजा रहा था, मै तो डर गया था “पति सुहास ने दरवाजा खोलते ही हेमा को डांट पिलाई।

        “आप इतनी जल्दी आ गये “हेमा ने हैरानी से पूछा।

      “हाँ… वो क्या, आज तुम्हारा बीमार चेहरा देख ऑफिस में मन नहीं लगा तो मै छुट्टी ले कर घर आ गया “सुहास बोले। अब तक रुका बांध, स्नेह की एक झलक से टूट गया।

“ये क्या, तुम रो क्यों रही हो “सुहास हैरानी से बोले।

  “मुझे लगता था, किसी को मेरे बीमार होने से कोई फर्क नहीं पड़ता है “हेमा ने आँसू पोंछते कहा।

       “हेमा तुम इस घर की धुरी हो, तुमको कुछ होगा तो सबसे ज्यादा मुझे फर्क पड़ेगा, बच्चों को भी पड़ेगा, ये अलग बात है कि मै तुम्हे जताता नहीं, पर तुम्हारी वजह से ही हम सब निश्चिंत होकर काम कर पाते है “सुहास ने हेमा का हाथ प्यार से पकड़ते कहा।

      हेमा के मन का संशय दूर होते ही उसका चेहरा खिल गया, कॉलबेल फिर बजी, “अब कौन आया “बोलते सुहास ने दरवाजा खोला। सामने हर्ष खड़ा था “माँ कैसी है,आप भी आ गये,आज एक इम्पोर्टेन्ट मीटिंग थी, जाना जरुरी था, नहीं तो माँ को इस हाल में छोड़ कर मै नहीं जाता “हर्ष चिंतित स्वर में बोला। दूसरे कमरे में लेटी हेमा सब सुन रही थी, मन की गांठ खुल गई और  नकरात्मक विचार से दूर हो खुशियों की बौछार हेमा का मन भीग  गया।

   “तीसरी बार कॉलबेल की आवाज सुन, हेमा बोल उठी देखो माही भी आ गई, घुसते ही बोली “अरे तुम घर आ गये, मै तो सोची माँ अकेले है, उनको इस समय देखभाल की जरूरत है तो मै छुट्टी लेकर आ गई, पर यहाँ तो सभी लोग छुट्टी लेकर आ गये।”सब को एक साथ अपनी परवाह करते देख हेमा का मन साफ हो गया। मन प्रसन्न हो तो बीमारी भी आधी हो जाती है। शाम तक हेमा का बुखार उतर गया।

      कई बार बीमारी के दौरान हम स्त्रियाँ थोड़े संवेदनशील हो जाते है। पर सखियों अपनों पर विश्वास जरूर रखें, अपवाद हो सकता है पर परवाह कम नहीं होती, बस जताने का तरीका अलग हो सकता है।आप सब क्या कहते हो…. जरूर बताना।

                           —संगीता त्रिपाठी 

#मेरे बीमार होने से किसी को फ़र्क नहीं पड़ता

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