पारखी नज़र – करुणा मलिक : Moral stories in hindi

चलो भाई ! ये तो प्रकृति का नियम है । हम तो बहुत भाग्यशाली है कि हमारे ऊपर माँ- बाप का आशीर्वाद बना रहा 

 हाँ दीदी , अब आप हम दोनों भाइयों के लिए माँ समान है ।घर , खेत इत्यादि का इंतज़ाम कैसे करें ?

 बेच देंगे । किसके पास इतनी फ़ुरसत है कि बार – बार यहाँ आकर देखते रहेंगे – छोटी भाभी तपाक से बोली । 

 रमा , हम सबके ऊपर अभी दीदी हैं वो जो फ़ैसला करेंगी । हम दोनों भाइयों के साथ तुम्हें और सुमन को भी मानना होगा- बड़े भाई ने कहा । 

 हाँ- हाँ भाई साहब, मैं तो बस ये कह रही थी कि कौन देखभाल करेगा , अभी तक तो माँजी थी । घर – ज़मीन की देखभाल में कोई परेशानी नहीं आई पर अब बात दूसरी है – रमा ने अपनी बात पर लीपापोती करते हुए कहा ।

 सुमन ! तुम भी अपनी सलाह दो , तुम तो रमा से पहले इस घर में आई हो – दीदी गंभीरता से बोली ।

 दीदी , आप तीनों का फ़ैसला मुझे स्वीकार होगा । परेशानी कहाँ नहीं है – सुमन बोली । 

 अक्षय ! क्या तुम भी अपनी पत्नी रमा की तरह यहाँ का सब बेचबाचकर जाना चाहते हो । 

 दीदी , मैं तो हमेशा इन सब बातों से दूर रहा हूँ । वैसे अगर रमा की बातों पर गौर करें तो वह भी ठीक कह रही है ।

 तो इसका अर्थ यह है कि अभय और सुमन ने सब कुछ मुझ पर छोड़ दिया । अक्षय और रमा यहाँ की ज़मीन- घर बेचने के हक़ में है । 

 अब दोनों भाई-भाभी और उनकी बहन चुपचाप बैठे थे । शायद अपने- अपने विचारों पर स्वयं ही मंथन कर रहे थे ।

 चलो , अभी हमारे पास तीन दिन हैं । सुमन , रमा ! खाने का समय हो गया है । बच्चों को भी बाहर से अँदर बुला लो , बहुत देर से खेल रहे हैं , ठंड भी बढ़ गई है- दीदी ने कहा ।

 दीदी रात के खाने के बाद माँ के कमरे में आकर लेट गई । तभी उन्होंने अपने पति को फ़ोन लगाया- जी , आप तो हवन के बाद चले गए । क्या करूँ ? छोटे भाइयों को कैसे लावारिस कर दूँ ? दीदी ने दिन में हुई सारी बातें बताई । 

 देखो आशा ! वैसे तो ये तुम्हारा निजी मामला है पर मैं तो केवल इतना कहूँगा कि वही करना जिसमें सबकी ख़ुशी हो क्योंकि ज़िंदगी केवल भावनाओं से नहीं चलती , व्यवहारिकता भी ज़रूरी है । वे सब तुम्हें इतना मान देते हैं तो अपना मान बनाए रखने वाला निर्णय लेना । संबंध बिगड़ने में ज़्यादा समय नहीं लगता । 

 अगले दिन पास- पड़ोस के लोग आए और दीदी ने सबके दिए सुझावों को सुना पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की । 

 सुमन दीदी ! आप दीदी से क्यों नहीं कह रही कि यहाँ की देखभाल करने में आपको भी दिक़्क़त हो जाएगी । 

 अचानक बरामदे से गुजरते समय दीदी के कानों में रमा की आवाज़ पड़ी ।

 हाँ रमा , मुश्किल तो होगी पर दीदी जो भी फ़ैसला लेगी , सोच समझ कर ही लेंगी । 

 आशा को दोनों की बातें सुनकर अच्छा लगा कि कम से कम दोनों के मन की बात तो पता चली । रात के खाने के बाद सभी देर तक बैठे रहे पर दीदी ने अपने फ़ैसले की बात नहीं उठाई हालाँकि सभी को उम्मीद थी कि दीदी बात छेड़ेगी । सुबह होने पर दीदी ने सुमन को कहकर माँ – बाप की पसंद का खाना बनवाया फिर दोनों भाइयों और बच्चों को साथ लेकर गोशाला गई । दोपहर के खाने से पहले उन्होंने सब को बैठक में बुलाया और बोली –

 मुझे बड़ी ख़ुशी है कि तुम सबने मुझे इतना मान दिया वरना आज के जमाने में भाई , भाई को नहीं पूछता । इसमें कोई शंका नहीं कि इस घर से बहुत सी यादें जुड़ी हैं, माँ- बाप की निशानी से सबको प्यार होता है, ख़ासतौर से बेटियों को । पर यह भी सच है कि तुम दोनों का अपना – अपना परिवार है , ज़िम्मेदारी है । बंद रखने से घर धीरे-धीरे खंडहर में बदल जाएगा पर एकदम से बेचने पर ठीक दाम नहीं मिलेंगे । तो मेरा फ़ैसला यह है कि माँ की बरसी तक घर को नहीं बेचेंगे ।खेतों को पहले की तरह ही बटाई पर दिए रखो । इस बीच तुम सब सोचते रहना । फ़िलहाल एक साल के लिए चाचाजी का बड़ा लड़का इस घर में रहना चाहता है क्योंकि उसे अपने पुराने घर की मरम्मत का कार्य करना है । 

 दीदी ने अपनी पारखी नज़रों से देखा कि उन चारों के चेहरों पर संतुष्टि का भाव था । 

करुणा मलिक

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