लव मैरिज – डॉ अंजना गर्ग

“दीपक मैं क्या सुन रहा हूँ कि आप प्रीति की शादी रोहित से नहीं करना चाहते।” केशव लाल ने कुर्सी पर बैठते हुए कहा।

“जी पापा, आपने ठीक सुना

यह तुम कह रहे हो , तुम बच्चों की शादी के लिए मना कर रहे हो। जिसने खुद 25 साल पहले लव मैरिज की। जब समाज में इतना विरोध होता था लव मैरिज का। हमने तब भी तुम दोनों को नहीं रोका। तुम्हारी शादी की।’

“आपने पापा जो गलती की वो मैं नही करना चाहता।”

“क्या …?  मैंने गलती की।” केशव का मुंह हैरानी से खुला का खुला रह गया।

” जी पापा, हम तो बच्चे थे। आप तो अच्छा बुरा सोच सकते थे ना ।”दीपक ने अपने ससुर केशव की तरफ देखते हुए कहा।

“हम लोगों ने  तुम दोनों का अच्छा सोचा। सोचा दोनों बच्चे एक दूसरे को प्यार करते हैं ,पंसद करते है । समाज की, रिश्तेदारों की परवाह किए बिना हमने तुम दोनों की शादी करवा दी।”

“यही तो सबसे बड़ी भूल की आप लोगों ने । आपने सोचा ही नहीं की लड़की का भविष्य क्या होगा। पर मैं यह गलती नहीं कर सकता। मैं प्रीति का भविष्य नहीं बिगाड़ सकता।”दीपक ने दृढ़ता से कहा। “यह तुम कह कह रहे हो। मुझे यकीन नही हो रहा।”केशव लाल के शब्दों में अफ़सोस साफ झलक रहा था।




” जी पापा, यही तो मैं आप को समझाना चाहता हूं की आपने एक बार भी नहीं सोचा कि यह बच्चे  तो प्यार के नाम पर पागल है । आप कम से कम यह तो देखते की लड़की यह शादी करके सुखी रह भी पाएगी कि नहीं।”दीपक के शब्दों में अजीब सा दर्द था।

” दीपक हमने तो यही पढा  सुना था कि बच्चे को अपना प्यार मिल जाए तो वह सबसे ज्यादा सुखी रहता है।” ” नहीं पापा, वह केवल पन्द्रह बीस  दिन की खुशी और सुख होता है। उसके बाद जब जिंदगी की तल्खियों से सामना होता है तो सारा प्यार रफू चक्कर हो जाता है और फिर उन्हीं का सामना करते करते न जाने कब दोनों नदी के दो किनारे बन जाते हैं।पता ही नही चलता।  दिखावे के लिए दोनों प्यार दिखाते हैं। अंदर ही अंदर अपनी जवानी की गलती के लिए अपने आप को कोसते है क्योंकि लड़की अगर  बेरोजगार लड़के या अपने परिवार की हैसियत से बहुत कम  हैसियत के लड़के से शादी कर लेती है तो सारी उम्र चाहे मायके जाना हो या बहनों के यहां किसी ब्याह शादी में या किसी अन्य फंक्शन में हमेशा ही एक दबाव में रहती है और वहां जाकर भी कभी खुशी से उसमें शामिल नहीं हो पाती । मानो कोई शादी नही  एक मुसीबत आ गई। अपनी सारी जमा पूंजी लगाकर भी वह और उसका परिवार वैसे  कपड़े गहने  नहीं पहन पाता जो उसकी भाभीयों और बहनों ने पहने होते हैं।  एक बेचारी का टैग परमानेंट उसके माथे पर लग जाता है। पापा सच बताओ, क्या आपको हमेशा सुनीता पर तरस नहीं आता रहता और दिमाग में यह नहीं रहता कि किसी प्रकार इसकी मदद की जाए। आप भी मदद कर कर के थक गए पर मेरे बच्चे और सुनीता कभी भी अपनी बहनों का और उनके बच्चों का मुकाबला नहीं कर पाए । माना मैं उतना पैसा अपनी बेटी की शादी पर नहीं  लगा सकता जितना आप अपनी पोती की शादी पर लगाते हो। पर पापा कम से कम मैं अपने बराबर का लड़का तो ढूंढू ताकि कल को इसको अपनी मां वाली दिक्कत का सामना ना करना पड़े। अपने भाई और बहनो  से भी खुलकर मिल सके। कहीं मन में कोई कांपलेक्स ना हो।”दीपक थोड़ा उतेजना में बोला।

“आप ज्यादा सोच रहे हो दीपक, ऐसा कुछ नहीं है। थोड़ा बहुत उन्नीस इक्कीस तो चलता रहता है।”केशव लाल ने आराम से कहा।




” नहीं पापा यही सच्चाई है । आप सुनीता से पूछो, सुनीता बोलो , क्या मैं गलत बोल रहा हूं ? ” दीपक ने पास बैठी सुनीता से पूछा। सुनीता चुप रहती है ।

“सुनीता तुम्हें मेरी कसम अगर तुम मेरी बात से सहमत हो तो हां कहो और नहीं तो अपने विचार रखो”। दीपक ने फिर जोर देकर कहा। सुनीता की गर्दन का झुकना यह साबित कर रहा था कि दीपक जो कह रहा है वह ठीक ही कह रहा है। “क्या सुनीता यह सच नहीं कि तुम्हारी दोनों बहने बहाने बहाने से तुम्हें कभी अपनी साड़ियां देती तो कभी अपनी ज्वेलरी ताकि तुम भी उनके बराबर ही शादियों में शामिल हो सको । पर पापा इन सारी हेल्प्स के बाद एक कॉन्प्लेक्स आ जाता है। वह कभी नहीं जाता।  कितनी बार  रेनू और मीनू (सुनीता की बहने)हमें कहती कि चलो घूमने का इकट्ठे प्रोग्राम बनाते हैं। सुनीता और बच्चे भी मेरे पीछे लग जाते  कि हां हां इकट्ठे चलते हैं बड़ा मजा आएगा । पर मैं कैसे उनके साथ प्रोग्राम बनाता। उन्होंने जिन होटलों में रुकना होता है या फिर खाना खाते हैं वह मैं अफ़्फोर्ड  कर ही नहीं सकता। बस मैं हमेशा ही आगे पीछे का प्रोग्राम बनाता था। हम कभी सरकारी गेस्ट हाउस में रुकते तो कभी यूथ हॉस्टल में । यह बात नहीं कि मैंने अपने बच्चों को और सुनीता को घूमाया नही पर हमेशा ही फेसबुक पर अपनी मौसियों और मामा के परिवार की फोटोग्राफ्स देखकर बच्चों में एक अजीब सी किस्म की हीन भावना आ जाती है। मैं क्या समझता नहीं  पापा , सुनीता  कैसे घुट-घुट कर मेरे साथ रही है।” दीपक ने एक लंबी सांस छोड़ते हुए कहा।

“नहीं बेटा प्यार भी तो कोई चीज होता है तुम दोनों एक दूसरे को इतना प्यार करते हो ।सुनीता ने कभी कोई शिकायत नही की।”




“करते थे पापा और अब भी करते है। पर इस समाज के बिना अगर आप जंगल में  रहे  तो दो पंछियों की तरह एक दूसरे में खोए  हो ।क्योंकि वहाँ आप और आप का प्यार ही है। पर यहाँ समाज रूपी हथोड़ा रोज आपको पड़ता है।तो प्यार तो किनारे लग जाता है। रह जाती है सिर्फ कड़वाहटे।” यह कहते हुए दीपक ने एक लम्बी सांस ली और सिर पीछे कुर्सी पर टिका लिया। मानो बरसों से भरा लावा बाहर निकाल कर उसको कुछ राहत मिली हो। सभी खामोश थे। एक अजीब सा सन्नाटा पसर गया जिसे प्रीति की आवाज ने तोड़ा। “पापा आप ठीक कह रहे है। मैंने भी मम्मी को तनाव में देखा है। अपने घर का वातावरण अचानक बदल जाता था जब भी नानी या मौसियों के घर कोई कार्यक्रम होता था। हम बच्चों को भी कई बार लगता था कि हम वहां न जाये , अपने कसिनज से दूरी बना ले। पर पापा तब छोटे थे , समझ नही थी। अब समय भी बदल गया। लोगअब समाज की उतनी परवाह भी नही करते।

“कहने से बेटा समाज बीच मे से नही हटता , जब सामना करो तो पता चलता है।”दीपक ने प्रीति को बीच मे ही टोका।

“जी पापा, आप ठीक कह रहे है। पर मैंने और रोहित ने पहले ही सब अच्छे से सोचा है और हर पहलू पर डिस्कस भी विस्तार से किया है। आपकी और मम्मी की लाइफ से भी मैंने बहुत कुछ सीखा और समझा है। रोहित को अपनी कला पर भरोसा है। मेरे से बात करके ही उसने नौकरी छोड़ी है। एक बार भाग्य आजमाना चाहता है। इतना तो पापा मैं कमा रही हूं कि हम ठीक ठाक जीवन जी सके। ज्यादा ख्वाहिशे भी नही।”प्रीति ने अपनी बात बड़े आराम से कही।

“बेटा डरता हूँ कही यह जवानी का जोश न निकले और प्यार के नाम पर मर मिटने का फतूर ……”

“मैं समझती हूँ आपकी चिंता , पर पापा आप मुझ पर भरोसा रखें। अगर मैंने रोहित से प्यार किया है। तो उसे उसका ख्वाब पूरा करने का एक मौका तो देना ही चाहिए।…..

मैं तुम्हारी इस बात से सहमत हूँ बेटा पर आजकल तुम बच्चे छोटी छोटी बात पर अलग हो जाते हो। हमारे समय मे तो जैसे तैसे करके निभा लेते थे। ऊपर से हम लव मैरिज वालों पर तो खास प्रेशर होता था। कि अपनी मर्जी से शादी की है अब जूत बज रहे है।इसलिए किसी के सामने कभी कोई मनमुटाव जाहिर भी नही होने देते थे। पर अब तो बच्चे …….” दीपक बात पूरी किये बिना ही चुप हो गया।

“आपका कहना बिल्कुल सही है दीपक।मैं आपकी बातों से पूर्णतः सहमत हूँ। इतनी कड़वी सच्चाइयां पता चली जिनके बारे मे कभी हमने सपने में भी नही सोचा था।हम तो अपने आपको बड़ा महान समझते थे कि हमने दकियानूसी माँ बाप की तरह नही किया बल्किअपनी बेटी के प्यार को स्वीकार किया। पर दीपक अब समय भी बदल गया और हम सब को आपने इस तरह की शादी के बाद आने वाली मुश्किलों के बारे मे भी अवेयर कर दिया। अब सब मिल कर प्रीति की शादीशुदा जिंदगी को खुशहाल बनाये गे।” केशव लाल ने अपनी बात रखी।

“जी पापा” दीपक के यह कहते ही सभी के चेहरों का तनाव रफूचक्कर हो गया और नानी सबको बर्फी खिलाने लगी।

डॉ अंजना गर्ग

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