खुशहाल परिवार की तीनों बहुएँ जब तब गुफ़्तगू करती रहती हैं…
अमीर मायके वाली बड़ी बहू कहती है, ” ये अम्मा जी ने बिस्तर पकड़ लिया है। पर इनकी टाँग तो ऊँची। हमारे पीछे ही पड़ी रहती है। “
मझली कहाँ पीछे रहने वाली, ” हाँ दीदी ! देखो ना लंदन से मेरे भैया ने अम्मा के लिए चलने की मंहगी स्टिक भिजवाई है। और हाँ दमे की खास दवा भी। “
” देख मझली हम कितना भी कर दें पर बुढ़िया का पूरा लाड़ छुटकी पर ही बरसता है। ” बड़की ने भड़ास निकाली।
हाँजी दीदी ! वैसे भी छुटकी गरीब घर से है। उसे तो आदत है पॉटी शॉटी साफ करने की। बाँझ जो ठहरी, काम क्या है। “
बेचारी अम्मा परेशान है। छुटकी दिन भर कोल्हू के बैल की तरह जुटी रहती है। वो घर के बंटवारे का सोचती है। घर पक्का तो था पर टुकड़े करने के हिसाब से नहीं बना था। तीनों भाइयों में इतना प्रेम है कि उन्होंने तीन रसोईघरों का सोचा ही नहीं।
अम्मा अपना हिसाब किताब करके तीनों बहुओं को बुलाकर कहती हैं, ” देखो ये दो थैलियाँ हैं। एक में घर के सारे जेवर व दूसरी में बैंक की पासबुकें हैं। और तीसरा मेरी बंद मुट्ठी में है। तुम लोग सोच समझ कर अपना फ़ैसला देने के लिए आज़ाद हो। “
बड़की व मझली अंदाज़ा लगाने लगी कि जेवर भारी पड़ेंगे कि पैसा। अम्मा की मुट्ठी का क्या ? बंद मुठ्ठी लाख की खुली तो खाक की…इसका क्या भरोसा ?
बड़की ठहरी सोने चाँदी की लालची। इनके भाव जो आसमान छू रहे हैं। मझली को विदेश घूमने के लिए नकदी चाहिए।
छुटकी तो पहले ही ऐलान करके काम निपटाने चली गई थी।
वह अम्मा के लिए अदरक वाली चाय व मूंग का खस्ता चीला बना कर लाती है, ” अम्मा पहले कुछ खाकर दवाई लो। फ़िर चाय पीकर मूड ठीक करो। “
अम्मा मुस्कुराती है, ” अरे मेरी लाड़ो ! मेरी… यह मुट्ठी खोलेगी तभी तो मैं कुछ कर पाऊँगी। “
जैसे ही अम्मा की मुट्ठी खोली छुटकी लिपट कर रोने लगी, ” ओ मेरी अम्मा। ” मुट्ठी में दबे कागज़ पर लिखा था ‘घर और अम्मा’।
बड़की और मझली बेघर होने से रहने का ठिकाना व काम के लिए सेविका के बारे में सोचने लगती है।
सरला मेहता
इंदौर म प्र
स्वचरित